इंद्रियों की गुलामी न करते हुए आत्मदर्शन करने का रहे प्रयास : आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

कोबा, गांधीनगर। 20 सितम्बर, 2025

इंद्रियों की गुलामी न करते हुए आत्मदर्शन करने का रहे प्रयास : आचार्यश्री महाश्रमण

जैन श्वेतांबर तेरापंथ धर्मसंघ के देदीप्यमान महासूर्य, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने ‘आयारो’ आगम के माध्यम से अमृत देशना प्रदान करते हुए फरमाया कि कहीं-कहीं पहले दंड मिलता है और पीछे स्पर्श यानी इंद्रिय सुख मिलते हैं, कहीं-कहीं पहले स्पर्श (इंद्रिय सुख) मिलते हैं और बाद में दंड मिलता है। हमारी दुनिया में आध्यात्मिकता और भौतिकता दोनों हैं। आध्यात्मिकता का संबंध आत्मा से है, जबकि भौतिकता का संबंध बाह्य जगत-पौद्गालिक जगत के साथ है। दो विचारधाराएं हैं - एक आस्तिक जगत की और दूसरी नास्तिक जगत की। आस्तिक दर्शन की विचारधारा में आत्मा-परमात्मा, स्वर्ग-नरक, पूर्वजन्म-पुनर्जन्म, पुण्य-पाप का फल आदि विषयों को स्वीकार किया गया है। आत्मा शाश्वत है, जैसा करोगे वैसा पाओगे, कर्मों का फल भोगना पड़ता है आदि बातें आस्तिक दर्शन में प्राप्त होती हैं। अर्थात् आस्तिक दर्शन आत्मा पर आधारित है।
दूसरी विचारधारा नास्तिक दर्शन की है, जिसमें चार्वाक दर्शन है, जहां कहा गया है कि यह दुनिया उतनी ही है जितनी इंद्रियों द्वारा देखी जा रही है, जानी जा रही है। परलोक, स्वर्ग-नरक आदि कुछ भी नहीं है। इसलिए नास्तिक दर्शन का संदेश है कि आगे-पीछे कुछ नहीं है। जब तक यह जीवन है, खूब वैषयिक सुख भोगो। इस शरीर के भस्मीभूत होने के बाद आत्मा आदि कुछ भी नहीं है। इस प्रकार, एक दृष्टि से भौतिकता का आधार नास्तिक दर्शन बन जाता है और आध्यात्मिकता का आधार आस्तिक विचारधारा बन जाती है। आस्तिक दर्शन में पूर्वजन्म और पुनर्जन्म को स्वीकार किया गया है, परंतु बहुलतया व्यक्ति को याद नहीं रहता कि मैं कहां से आया हूं। कुछ-कुछ मनुष्यों को अपने पूर्वजन्म की स्मृति हो जाती है, बहुतों को नहीं होती। पिछले जन्म में जब मृत्यु होती है तो एक आवरण-सा आ जाता है और पिछली स्मृति का लोप हो जाता है। स्मृति नहीं होने से अस्तित्व नहीं है, यह सिद्धांत सही नहीं है, क्योंकि इस जन्म में भी जब मनुष्य को दो दिन या दो घंटे के आयु के समय की स्मृति नहीं रहती है तो पूर्वजन्म की स्मृति तो बहुत दूर की बात है।
आयारो में कहा गया है कि जो व्यक्ति इंद्रियों का गुलाम है, वह व्यक्ति धर्म, समाज या राजनीति के क्षेत्रों में ज्यादा कार्य नहीं कर सकता। समाज और राजनीति के क्षेत्र में भी व्यक्ति को कुछ अंशों में त्यागी होना आवश्यक है, इसलिए शासक में भी कुछ इंद्रिय संयम होना चाहिए। कार्यकर्ताओं में भी संयम और सहिष्णुता होती है तो वे सफलता के एक आयाम को प्राप्त कर लेते हैं। कार्यकर्ता सुख-दुख की परवाह नहीं करता है। उसे कैसी भी परिस्थिति मिले, वह सहनशीलता रखता है। निंदा-आलोचना से दुखी नहीं बनता, बल्कि यदि निंदा-आलोचना में कोई सार है तो उससे अपेक्षानुसार अपना परिष्कार करने की भावना रखता है। चतुर्दशी को हाजरी के संदर्भ में मर्यादाओं की जानकारी देते हुए आचार्य प्रवर ने कहा कि साधु का जीवन साधना का जीवन होता है। संविधान महत्त्वपूर्ण होता है, उसके अनुसार साधुचर्या चलनी चाहिए। संविधान के नियमों के प्रति जागरूकता रखनी चाहिए।
कई बार भौतिक सुखों को पाने के लिए व्यक्ति को पहले दंड पाना पड़ सकता है। इंद्रिय सुख मिलने के बाद भी कभी तकलीफ-दंड मिल सकता है, अतृप्ति हो सकती है। किसी वस्तु के प्रति आसक्ति हो जाए तो उसके जाने पर दंड भी मिल सकता है। इसलिए इंद्रियों का संयम रखने का प्रयास करना चाहिए। साधु-साध्वियों, समणियों को इंद्रिय संयम रखना चाहिए। गृहस्थों को भी पांच बातों पर ध्यान देना चाहिए - बुरा देखना नहीं, बुरा सुनना नहीं, बुरा बोलना नहीं, बुरा सोचना नहीं और बुरा किसी का करना नहीं। सब अच्छा करने का प्रयास करें तो हमारा जीवन अच्छा रह सकता है। आचार्यश्री तुलसी प्राकृत पुरस्कार - जैन विश्व भारती व के.बी.डी. फाउंडेशन के संयुक्त तत्वावधान में आचार्यश्री की मंगल सन्निधि में आचार्यश्री तुलसी-प्राकृत समारोह का आयोजन किया गया। इस संदर्भ में के.बी.डी. फाउंडेशन की मधु दूगड़ ने अपनी अभिव्यक्ति दी। वर्ष 2024 का आचार्यश्री तुलसी प्राकृत पुरस्कार डॉ. सुषमा सिंघवी को प्रदान किया गया। डॉ. सुषमा सिंघवी ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी। आचार्यश्री ने मंगल आशीर्वाद प्रदान किया। समारोह का संचालन जैन विश्व भारती के मंत्री सलिल लोढ़ा ने किया।
अखिल भारतीय तेरापंथ महिला मंडल द्वारा पूज्य गुरुदेव की सन्निधि में कार्यक्रम समायोजित हुए। तेरापंथ महिला मंडल अहमदाबाद ने गीत का संगान किया। अभातेममं की निवर्तमान अध्यक्ष सरिता डागा ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी। इस दौरान अभातेममं द्वारा आचार्यश्री तुलसी कर्तृत्व पुरस्कार 2025 राष्ट्रीय महिला आयोग की अध्यक्ष विजया रहाटकर को प्रदान किया गया। उनके प्रशस्ति पत्र का वाचन राष्ट्रीय निर्देशिका सूरज बरडिया ने किया। विजया रहाटकर ने अपनी श्रद्धासिक्त अभिव्यक्ति दी। साध्वीप्रमुखा श्री विश्रुतविभाजी ने रहाटकर एवं अखिल भारतीय तेरापंथ महिला मंडल की नवीन टीम को प्रेरणा एवं आशीर्वचन प्रदान किए।
आचार्यश्री महाश्रमणजी ने इस संदर्भ में मंगल आशीर्वाद प्रदान करते हुए कहा कि जैन श्वेतांबर तेरापंथ की परंपरा लगभग 265 वर्ष पूर्व प्रारंभ हुई और तेरापंथ के आद्य प्रवर्तक आचार्य भिक्षु हुए। उनकी आचार्य परंपरा में नवम आचार्य श्री तुलसी हुए, जिन्होंने महिला समाज की उन्नति की नींव रखी। आज महिलाओं में शिक्षा व ज्ञान का विकास हुआ है और वे संस्था का भी प्रतिनिधित्व कर रही हैं। अखिल भारतीय तेरापंथ महिला मंडल द्वारा आचार्यश्री तुलसी कर्तृत्व पुरस्कार भी प्रदान किया गया है। महिलाओं के पास परिवार को संभालने और संवारने की विशेष जिम्मेदारी होती है, अतः इनमें सहिष्णुता, संस्कार, शिक्षा व शक्ति रहे तो अच्छी बात हो सकती है। आचार्यश्री ने निवर्तमान अध्यक्ष सरिता डागा व नव मनोनीत अध्यक्ष सुमन नाहटा को मंगल पाठ सुनाया। इस दौरान अ.भा.ते.म.मं. के नए नेतृत्व का शपथ ग्रहण समारोह भी हुआ। इन समस्त कार्यक्रमों का संचालन निवर्तमान महामंत्री नीतू ओस्तवाल ने किया।