
गुरुवाणी/ केन्द्र
वीतरागता की ओर हो जाए दृष्टि : आचार्यश्री महाश्रमण
आगम वेत्ता युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने ‘आयारो’ आगम के माध्यम से अमृत देशना प्रदान करते हुए फरमाया कि भगवान महावीर के दर्शन में परिषहों को जीतने, अहिंसा, संयम और तप की बात है। उस दर्शन के प्रति आकर्षण हो जाए, इस वीतराग दर्शन के प्रति दृष्टि लग जाए। व्यक्ति की दृष्टि कहां है, यह महत्त्वपूर्ण बात होती है। दृष्टि सम्यक् है या मिथ्या? व्यक्ति का आकर्षण आत्मा की ओर है या पदार्थों की ओर? आध्यात्मिकता की ओर रूझान है या भौतिकता की ओर? सम्यक् दृष्टि होना बड़ी उपलब्धि की बात है। जिस जीव को सम्यक्त्व की प्राप्ति हो गई है, उस जीव का मोक्ष जाना सुनिश्चित हो जाता है। सम्यक्त्व और चारित्र की यदि तुलना करें तो ज्यादा महत्त्व सम्यक्त्व का है, क्योंकि सम्यक्त्व स्वतंत्र रह सकता है, परन्तु चारित्र स्वतंत्र नहीं रह सकता। चारित्र को सम्यक्त्व की अनिवार्यता होती है। बिना सम्यक्त्व के चारित्र नहीं हो सकता, परन्तु चारित्र के बिना सम्यक् दर्शन रह सकता है। चतुर्थ गुणस्थान में चारित्र नहीं है, पर सम्यक् दर्शन होता है और इस गुणस्थान में क्षायिक सम्यक्त्व भी हो सकता है। गृहस्थ जीवन में सावद्य कार्य भी करने पड़ सकते हैं, परन्तु दृष्टि सम्यक् रहे। लक्ष्य मोक्ष है और मोक्ष के लिए पुरुषार्थ करना है। मुमुक्षु भाव होना चाहिए।
पूज्य प्रवर ने फरमाया कि 9 दिसम्बर सन् 2025 को पौष कृष्णा पंचमी के दिन गुरुदेव तुलसी की दीक्षा को एक सौ वर्ष पूरे होने वाले हैं। वि.सं. 1982 में लाडनूं में पूज्य कालूगणी ने बालक तुलसी को मुनि दीक्षा प्रदान की थी। आचार्य तुलसी की दीक्षा के एक सौ वर्ष पूर्ण होने के संदर्भ में साधु-साध्वियां ‘मुमुक्षु के महत्त्व’ को व्याख्यायित करने का प्रयास करें और मुमुक्षु बनने की प्रेरणा भी प्रदान करें। ज्ञानशाला के बच्चों के माध्यम से भी इस विषय पर प्रस्तुतियां की जा सकती हैं कि गुरुदेव तुलसी ने दीक्षा किस प्रकार ली और किस प्रकार विकास किया।
मोक्ष पाने की भावना मुमुक्षा होती है। आगम में कहा गया है कि मोक्ष की ओर दृष्टि हो जाए, वीतरागता और आध्यात्मिकता की तरफ दृष्टि हो जाए, तन्मूर्ति बन जाए, उसी को सामने रखे, उसकी स्मृति में एकरस हो जाए और चित्त को उसमें नियोजित कर दे। बाहर के कार्य करते हुए भी भीतर में मोक्ष की ओर आगे बढ़ने की भावना रहे, ऐसी सम्यक् दृष्टि बन जाए। भौतिकता में रहते हुए भी आध्यात्मिकता की ओर दृष्टि रखें। अखिल भारतीय तेरापंथ महिला मंडल भी मुमुक्षु बनाने की दिशा में प्रयास करे। साधु-साध्वियां, समणियां भी इस दिशा में प्रयास करें। अध्यात्म का जो भी कार्य हाथ में लें, उसके प्रति समर्पण का भाव होना चाहिए तो वह कार्य अच्छा सम्पन्न हो सकता है।
अखिल भारतीय तेरापंथ महिला मंडल अधिवेशन के सहभागीगणों को भी प्रेरणा प्रदान करते हुए गुरुदेव ने फरमाया कि जो भी दायित्व मिले, उसके प्रति पूर्ण रूप से समर्पण और निष्ठा का भाव रखना चाहिए। वर्तमान पदाधिकारियों का कार्यकाल समाप्ति पर है, आगे जिन्हें भी जिम्मेदारी प्राप्त हो, उन्हें धार्मिक-आध्यात्मिक गतिविधियों को आगे बढ़ाने का प्रयास करना चाहिए। जाने वालों में संतोष और आने वालों में उत्साह रहना चाहिए। हमारे भीतर सत्कार्यों, अध्यात्म और आत्मा के प्रति एक समर्पण का भाव रहे ताकि हम मोक्ष की दिशा में आगे बढ़ सकें। साध्वीवर्याजी ने अपने उद्बोधन में कहा कि सबसे बड़ी शक्ति त्याग की शक्ति होती है, क्योंकि त्यागी छोड़ने का प्रयास करता है और भोगी बटोरने का प्रयास करता है। त्याग की शक्ति के सामने अन्य शक्तियाँ टिक नहीं सकतीं। जिस व्यक्ति के भीतर प्रत्याख्यान की चेतना जाग जाती है, वह आश्रव द्वारों को रोक देता है और समर्थ हो जाता है। हमारे भीतर भी प्रत्याख्यान की चेतना जागनी चाहिए। साध्वीवर्याजी ने ‘सुमंगल साधना’ की विस्तृत जानकारी प्रदान की।
परम पूज्य आचार्य प्रवर की सन्निधि में आज अखिल भारतीय तेरापंथ महिला मंडल के 50वें त्रिदिवसीय राष्ट्रीय अधिवेशन ‘ऊर्ध्वारोहण’ का शुभारंभ हुआ। अधिवेशन के मंचीय उपक्रम के संदर्भ में अखिल भारतीय तेरापंथ महिला मंडल की राष्ट्रीय अध्यक्ष सरिता डागा ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी। अखिल भारतीय तेरापंथ महिला मंडल द्वारा रजनी दूगड़ को इस वर्ष का ‘श्राविका गौरव’ अलंकरण प्रदान किया गया। उनके अभिनन्दन पत्र का वाचन ट्रस्टी आरती कठौतिया ने किया। ‘सीतादेवी सरावगी प्रतिभा पुरस्कार’ के अन्तर्गत दिवा जैन बैंगानी तथा निधि राखेचा को सम्मानित किया गया। इनके अभिनन्दन पत्र का वाचन क्रमशः ट्रस्टी ज्योति जैन व ट्रस्टी कल्पना बैद द्वारा किया गया। सभी पुरस्कार प्राप्तकर्ताओं ने अपनी अभिव्यक्ति दी। साध्वीप्रमुखा श्री विश्रुतविभाजी ने इस अवसर पर अपने उद्बोधन में मंगल प्रेरणा प्रदान की।
परम पूज्य गुरुदेव ने इस संदर्भ में पावन आशीष प्रदान करते हुए कहा कि अखिल भारतीय तेरापंथ महिला मंडल की ओर से अलंकरण व पुरस्कार प्रदान किए गए हैं। श्रद्धा, सेवा आदि की भावना बनी रहे। अपने जीवन को त्याग, संयम और साधना से अच्छा बनाने का प्रयास होना चाहिए। त्याग और संयम आदि मोहनीय कर्म के क्षयोपशम से आते हैं, जबकि प्रतिभा ज्ञानावरणीय कर्म के क्षयोपशम से प्राप्त होती है। अपनी बुद्धि का सदुपयोग होना चाहिए। अखिल भारतीय तेरापंथ महिला मंडल खूब धार्मिक-आध्यात्मिक उन्नयन करता रहे। आज के संदर्भित कार्यक्रम का संचालन अभातेममं की महामंत्री नीतू ओस्तवाल ने किया।