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पर्युषण महापर्व के उपलक्ष्य में विविध आयोजन
संवत्सरी आत्मोत्थान का एक महान महापर्व है। यह पर्व आत्म-अनुशासन, आंतरिक शांति, क्षमायाचना और आध्यात्मिक शुद्धि का प्रतीक है। संवत्सरी पर्व ऐसा अवसर है जिसमें मैत्री, वात्सल्य और आत्मीयता के संबंध जोड़ने का प्रयास करना चाहिए। यह दिन स्वयं का आत्मविश्लेषण करने और अपनी आंतरिक स्थिति को समझने का भी अवसर प्रदान करता है। जब हम अपने आत्म गुणों को विकसित करते हैं, तो जीवन में स्वतः ही सुख और संतोष का संचार होने लगता है। उपरोक्त विचार मुनि विनय कुमार जी 'आलोक' ने संवत्सरी के पावन अक्सर पर व्यक्त किये। मुनि श्री ने आगे कहा कि इस दिन साधु-साध्वी और श्रावक-श्राविकाएं अधिक से अधिक धर्म-ध्यान, त्याग और तपस्या में लीन होती हैं। एक-दूसरे से क्षमा मांगते हैं और दूसरों को क्षमा करते हुए मैत्रीभाव की ओर कदम बढ़ाते हैं। संवत्सरी का सर्वाधिक महत्वपूर्ण संदेश क्षमापना है। इसका अर्थ है कि यदि किसी ने आपके प्रति गलती की है, तो उसे माफ कर दें, और यदि आपने किसी के प्रति दुव्र्यवहार किया है, तो उनसे क्षमा मांगें। क्षमा देने के लिए क्रोध का त्याग करना और क्षमा मांगने के लिए अहंकार का त्याग करना आवश्यक है। आज के दिन प्रतिक्रमण का भी विशेष महत्व है। प्रतिक्रमण का अर्थ है अपने द्वारा किए गए अतिक्रमणों से पीछे हटना।