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पर्युषण महापर्व के उपलक्ष्य में विविध आयोजन
साध्वी संयमलता जी के सान्निध्य में पर्वाधिराज पर्युषण महापर्व अत्यंत श्रद्धा और उल्लास के साथ मनाया गया। महापर्व का शुभारंभ ‘खाद्य संयम दिवस’ से हुआ। साध्वी संयमलता जी ने कहा कि आहार जीवन के लिए आवश्यक है, किंतु क्या, कितना और कैसे खाना है, यह और भी महत्वपूर्ण है। अति भोजन हानिकारक है। यह पर्व हमें आहार में संयम और सीमाकरण की प्रेरणा देता है। साध्वीजी ने सभी को रात्रि भोजन वर्जन और नवरंगी से जुड़ने का संदेश दिया। साध्वी रौनकप्रभा जी ने कहा कि तप शरीर के विकारों को बाहर निकालने का साधन है, वहीं साध्वी मनीषाप्रभा जी ने ध्यान प्रयोग करवाते हुए पर्युषण को आत्मजागरण का महापर्व बताया। दूसरे दिन साध्वी संयमलता जी ने कहा कि स्वाध्याय का अर्थ है – स्वयं का अध्ययन। भगवान महावीर ने स्वाध्याय को आत्मशुद्धि और संसार सागर से पार उतरने का साधन बताया। उन्होंने मरीचि कुमार के भव का उल्लेख करते हुए अहंकार के परिणामस्वरूप हुए कर्म बंध का विशद वर्णन किया। साध्वी रौनकप्रभा जी ने कहा कि केवल पढ़ना या सुनना ही नहीं, बल्कि उसके अर्थ का चिंतन करना भी आवश्यक है। तीसरे दिन ‘सामायिक दिवस’ पर अभिनव सामायिक का आयोजन हुआ। साध्वी संयमलता जी ने कहा कि सामायिक समता की साधना है और यह मन की अशांति व तनाव को दूर करने का श्रेष्ठ उपाय है। उन्होंने कहा कि कई बार जो कर्म तप से क्षीण नहीं होते, वे एक शुद्ध सामायिक से क्षीण हो जाते हैं।
चतुर्थ दिन साध्वी संयमलता जी ने कहा कि वाणी व्यक्तित्व का आईना है। असंयमित वाणी रिश्तों और समाज को तोड़ती है, जबकि मधुर वाणी शांति और सौहार्द का आधार है। महाभारत युद्ध को उन्होंने असंयमित वाणी का परिणाम बताया। साध्वी रौनकप्रभा जी ने मार्दव धर्म का विवेचन किया और साध्वी मार्दवश्री जी ने कहा कि वाणी संयम का अर्थ मौन नहीं, बल्कि मधुर और नियंत्रित बोल है। इस अवसर पर महिला मंडल ने ‘पर्युषण संयम एक्सप्रेस’ की मनोरंजक प्रस्तुति दी और 175 श्रद्धालुओं ने चंदनबाला तेला तपो महायज्ञ में सहभागिता की। पांचवें दिन साध्वी संयमलता जी ने कहा कि अणुव्रत जीवन में नैतिकता और प्रामाणिकता का विकास करता है। उन्होंने भगवान महावीर के ‘विश्वभूति’ भव का वर्णन किया। साध्वी मार्दवश्री जी ने कहा कि आचार्य श्री तुलसी ने अणुव्रत आंदोलन से नए मानव का निर्माण किया। साध्वी रौनकप्रभा जी ने जीवन में नियम पालन को आवश्यक बताया, जबकि साध्वी मनीषाप्रभा जी ने दान को बारहवां व्रत बताते हुए उसके महत्व पर प्रकाश डाला। छठे दिन साध्वी संयमलता जी ने कहा कि जप मानसिक शांति, एकाग्रता और संकल्प शक्ति का साधन है। उन्होंने कहा कि मंत्रों की ध्वनि तरंगें सकारात्मक ऊर्जा का संचार करती हैं। साध्वी रौनकप्रभा जी ने सत्य धर्म का विवेचन किया और साध्वी मनीषाप्रभा जी ने ध्यान प्रयोग के साथ 63 शलाका पुरुषों की जानकारी दी। कन्या मंडल की कन्याओं ने ‘ओम भिक्षु’ के सवा लाख जप का अनुष्ठान किया। सातवें दिन ‘ध्यान दिवस’ पर साध्वी संयमलता जी ने कहा कि ध्यान आत्मा को जागृत करने का सर्वोत्तम उपाय है। उन्होंने भगवान महावीर की भव यात्रा के 26वें भव का वर्णन करते हुए बताया कि तपस्या से उन्होंने तीर्थंकर गोत्र का बंध किया। साध्वी मार्दवश्री जी ने कहा कि ध्यान मन के विकारों से मुक्ति का सरल मार्ग है, जबकि साध्वी रौनकप्रभा जी ने तप धर्म और साध्वी मनीषाप्रभा जी ने मोक्ष मार्ग के चार आधार – दान, शील, तप और भावना – पर प्रकाश डाला।
अंतिम दिन ‘भगवती संवत्सरी’ का आयोजन हुआ। साध्वी संयमलता जी ने भगवान महावीर के जीवन प्रसंगों का भावपूर्ण वर्णन करते हुए इसे आत्मावलोकन और आत्मशुद्धि का दिन बताया। साध्वी मार्दवश्री जी ने कहा कि बाहरी पदार्थ क्षणिक सुख देते हैं, किंतु आत्मज्ञान ही स्थायी सुख का स्रोत है। साध्वी मनीषाप्रभा जी ने आगम वाणी का श्रवण कराया और साध्वी रौनकप्रभा जी ने गणधर वाद का विवेचन किया। सैकड़ों श्रद्धालुओं ने उपवास, पौषध और तप का प्रत्याख्यान किया। क्षमापना दिवस पर साध्वी संयमलता जी ने कहा कि क्षमा ही ज्ञान है, जो मनुष्य को मनुष्य से जोड़ती है। उन्होंने कहा कि गलती होना स्वाभाविक है, किंतु उसे सुधारना और दिल की ठेस को भरना ही क्षमा का वास्तविक रूप है। साध्वी मार्दवश्री जी ने प्रमोद भावना के विकास पर बल दिया और साध्वी मनीषाप्रभा जी ने कहा कि क्षमा याचना शब्दों से नहीं, बल्कि अंतरमन से होनी चाहिए। इस पूरे महापर्व में साध्वी वृंद के सान्निध्य में सभा, महिला मंडल, युवक परिषद, कन्या मंडल सहित समाज की विभिन्न संस्थाओं ने सक्रिय भूमिका निभाई।