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पर्युषण महापर्व के उपलक्ष्य में विविध आयोजन
साध्वी कुंदनरेखा जी के सान्निध्य में पर्युषण महापर्व की मंगल आराधना त्याग, तप, जप, ध्यान, स्वाध्याय एवं समाधि आदि आध्यात्मिक अनुष्ठानों के द्वारा उल्लासमय वातावरण में सम्पन्न हुई। केंद्र द्वारा निर्धारित विषयों का विस्तार से प्रतिपादन किया गया। महापर्व के प्रथम दिवस साध्वी कुंदन रेखा जी ने कहा— 'साधना का प्रारंभिक द्वार है संयम। संयम की चेतना से साधक आधि-व्याधि और उपाधि से मुक्त होकर समाधि में प्रवेश कर सकता है। पर्युषण महापर्व पर हमें इंद्रियों और मन की चंचलता को रोककर समतामय जीवन का अनुसरण करना चाहिए। खाद्य संयम जीवन के लिए अनिवार्य है। जीभ की लोलुपता न केवल आसक्ति और रोगों को निमंत्रण देती है, बल्कि भवभ्रमण भी बढ़ाती है।' साध्वी सौभाग्ययशा जी ने कहा— 'भोजन हितकर और मितकर होना चाहिए, ताकि वह शरीर को पुष्ट करे, मन को स्वस्थ बनाए और भावधाराओं को पवित्र करे। इस अवसर पर खाद्य संयम गीत का संगान भी किया गया।
स्वाध्याय दिवस पर साध्वी कुंदनरेखा जी ने कहा— 'आत्मा के द्वारा आत्मा की पहचान का प्रवेशद्वार है स्वाध्याय। ‘मैं कौन हूँ, कहाँ से आया हूँ’—यह संज्ञान स्वाध्याय से संभव है। स्वाध्याय मोक्ष तक पहुँचने का साधन है, यह भवभ्रमण मिटाता है और कर्मों को तोड़ गिराता है।' साध्वी कल्याण यशा जी ने कहा— स्वाध्याय ऐसी औषधि है जो सभी रोगों का शमन कर पूर्ण समाधि प्रदान करती है। वाणी संयम दिवस पर साध्वी कुंदन रेखा जी ने कहा— 'वाणी का संयम अनेक समस्याओं को समाप्त कर देता है। व्यक्ति की पहचान उसकी भाषा से होती है। बहुत बोलने वाले यह विवेक खो बैठते हैं कि कैसे, क्या, कितना और क्यों बोलना है। पर्युषण की प्रेरणा है—कम बोलें, मधुर बोलें, विचारपूर्वक बोलें या मौन रहें।'
साध्वी कल्याण यशा जी ने कहा— 'धीरे बोलने वाला स्वस्थ, शांत, सबको प्रिय और वाणी के माधुर्य से संपन्न होता है।' इस अवसर पर 'मधुर बोलें' गीत का संगान हुआ। साध्वी कुंदन रेखा जी ने कहा— 'सामायिक समताभाव में जीना सिखाती है। यह कषायों की अग्नि बुझाती है और योगों की चंचलता मिटाती है। सामायिक अनमोल है—इसे श्रेणिक राजा भी खरीद न सका और नरकगति से बच न सका। सामायिक आत्मा की खरी कमाई है।' साध्वी सौभाग्ययशा जी ने कहा— 'सामायिक युग की समस्याओं—ईर्ष्या, हीनता और संकीर्णता—का एकमात्र समाधान है। भगवान महावीर ने ‘पूर्णिया की सामायिक’ की प्रशंसा की थी।' इस अवसर पर सामायिक गीत का संगान हुआ। जप दिवस पर साध्वी कुंदनरेखा जी ने कहा— 'आत्मशक्ति, मंत्रशक्ति और इष्टशक्ति साधक को साधना के मार्ग पर अग्रसर करती हैं। नवकार महामंत्र आत्मबल को जागृत करता है और अनेक लब्धियों की प्राप्ति कर कर्मों को क्षीण करता है। इसे पूर्ण एकाग्रता से जपना चाहिए।' साध्वी कल्याणयशा जी ने कहा— नवकार मंत्र चौदह पूर्व का सार है। यह आत्मपवित्रता का आधार और संसार-सागर से पार करने का मंगलमय साधन है।
अणुव्रत दिवस पर साध्वी कुंदनरेखा जी ने कहा— 'गुरुदेव तुलसी का अवदान लाखों लोगों तक पहुँचा। छोटे-छोटे नियमों को स्वीकार कर समाज में जीना अणुव्रत का संदेश है। 75 वर्ष पूर्व गुरुदेव ने अणुव्रत का सिंहनाद किया, जिसकी आवाज राष्ट्रपति भवन से लेकर गरीब की झोपड़ी तक पहुँची।' साध्वी सौभाग्ययशा जी ने कहा— 'अणुव्रत आत्मा को शुद्ध करने का सर्वोत्तम उपाय है। यह वैयक्तिक, सामाजिक और राष्ट्रीय समस्याओं का समाधान देता है।' इस अवसर पर अणुव्रत गीत का संगान हुआ। ध्यान दिवस पर साध्वी कुंदन रेखा जी ने कहा— 'ध्यान आत्मा की स्पंदनाओं को पहचानकर उन्हें निरस्त करने का उपाय है। यह निर्विचार अवस्था का जागरण है। प्रेक्षाध्यान शरीर के चैतन्य केंद्रों को जगाकर आत्मा को निर्मल करता है।' साध्वी सौभाग्य यशा जी ने कहा— 'ध्यान अंतर्चेतना को जगाने वाला साधन है। यह उपशांत कषाय और राग-द्वेष का शमन कर कर्मों की निर्जरा करता है।'
सातों दिनों में आचारांग और कल्पसूत्र के आधार पर भगवान महावीर के 27 भवों का विस्तार से वर्णन किया गया। गणाधिपति गुरुदेव श्री तुलसी द्वारा रचित समता से समंदर का वाचन हुआ। संवत्सरी महापर्व पर साध्वी कुंदनरेखा जी ने कहा— 'जैनों का महाकुंभ संवत्सरी भोग से अभोग, राग से विराग और अत्याग से त्याग की ओर ले जाने वाला महापर्व है। यह अनसुनी चेतना के जागरण का आह्वान करता है।' उन्होंने विस्तार से बताया— संवत्सरी कब, क्यों और किसके द्वारा मनाई जाती है; आरे का वर्णन; तथा भगवान महावीर का जन्म, विवाह, दीक्षा, केवलज्ञान और चंदनबाला प्रसंग। साथ ही ग्यारह गणधर और प्रभावक आचार्यों की जीवन-गाथाएँ भी प्रस्तुत कीं। इस अवसर पर लगभग 404 भाई-बहनों ने पौषध अनुष्ठान में भाग लिया और सैकड़ों ने उपवास किया। साध्वी सौभाग्ययशा जी ने भगवान ऋषभदेव का जीवन-वर्णन किया। साध्वी कल्याणयशा जी ने उत्तराध्ययन सूत्र का वाचन तथा आध्यात्मिक गीतों का संगान किया। तेरापंथ महिला मंडल साउथ दिल्ली और गुरुग्राम महिला मंडल ने मंगलाचरण स्वरूप गीत प्रस्तुत किए।