पर्युषण महापर्व के उपलक्ष्य में विविध आयोजन

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सिटीलाइट, सूरत

पर्युषण महापर्व के उपलक्ष्य में विविध आयोजन

तेरापंथ भवन में पर्युषण पर्वाराधना का आयोजन साध्वी प्रोफेसर डॉ. मंगलप्रज्ञाजी के सान्निध्य में सम्पन्न हुआ। खाद्य संयम दिवस पर प्रो. साध्वी मंगलप्रज्ञाजी ने कहा—'हम जिस दिन की प्रतीक्षा कर रहे थे, वह आज हमारे समक्ष है। प्रत्येक सम्प्रदाय भाद्रपद माह में उत्सव मनाता है। इस माह में स्वतः ही अध्यात्म के विकिरण प्रकट होते हैं। पर्युषण आत्मजागरण और आत्माराधना की प्रेरणा देता है। हम उन महापुरुषों के प्रति कृतज्ञ हैं, जिन्होंने इस महापर्व को आठ दिनों तक मनाने का विचार किया। प्रदर्शन से आत्मदर्शन की दिशा में प्रस्थान ही पर्युषण है। इसका अर्थ है—चारों दिशाओं से हटकर आत्मा में निवास करना।'
साध्वीश्री ने निर्धारित अष्टदिवसीय साधना से आत्मा को पुष्ट बनाने, उपशान्त कषाय की साधना करने और महावीर वाणी के सार—आसक्ति व मूर्च्छा का त्याग करने का संकल्प लेने का आह्वान किया। उन्होंने आहार संयम के संदर्भ में जैन जीवन शैली अपनाने की प्रेरणा दी। कार्यक्रम का शुभारंभ सिंवाची मालाणी, बालोतरा, पचपदरा, असाडा, कानाना और आसोतरा के सूरत प्रवासी श्रावक-श्राविकाओं के मंगल संगान से हुआ। साध्वीवृन्द ने सहगान प्रस्तुत किया तथा 'पर्युषण आया गाइड्स के साथ' की रोचक प्रस्तुति दी। साध्वी डॉ. चैतन्यप्रभाजी ने नए अंदाज़ में आहार संयम के टिप्स बताए। तेरापंथ सभा सिटीलाइट अध्यक्ष हजारीमल भोगर ने स्वागत भाषण दिया। रात्रिकालीन कार्यक्रम 'इतिहास के बोलते पृष्ठ' में प्रो. साध्वी मंगलप्रज्ञाजी ने 'दिव्य ज्योति साध्वी दीपां जी' का प्रेरक जीवनवृत्त सुनाया। संचालन साध्वी डॉ. राजुलप्रभाजी ने किया।
स्वाध्याय दिवस पर प्रो. साध्वी मंगलप्रज्ञाजी ने कहा—'स्वाध्याय आत्महित की प्रेरणा देता है। इससे भीतर का आनन्द प्रकट होता है और समस्याओं का समाधान मिलता है। आज पद, प्रतिष्ठा और पैसे के मोह में मनुष्य अपना विवेक खो रहा है, जिससे परिवार और समाज में अशान्ति फैल रही है।' साध्वीश्री ने जैन दर्शन, आगम, तेरापंथ दर्शन और आचार्यों द्वारा रचित व सम्पादित ग्रंथों के अध्ययन की प्रेरणा दी। महावीर जीवन दर्शन के संदर्भ में उन्होंने ‘नयसार भाव’ का विस्तृत विवेचन किया। इस अवसर पर वाव, कच्छ, भुज और हरियाणा निवासी सूरत प्रवासी भाई-बहनों ने मंगलाचरण प्रस्तुत किया। डॉ. साध्वी राजुलप्रभा और डॉ. साध्वी शौर्यप्रभाजी ने 'आत्मा-कषाय' विषय पर प्रेरक संवाद प्रस्तुत किया। साध्वी अतुलयशाजी ने कहा—'ज्ञान का प्रकाश जीवन पथ को सहज और निर्बाध बनाता है।' साध्वीवृन्द ने स्वाध्याय पर गीतमय सेमिनार प्रस्तुत किया। संचालन साध्वी शौर्यप्रभाजी ने किया। रात्रि में प्रो. साध्वी मंगलप्रज्ञाजी ने विजय सिंह पटवा की गौरव गाथा सुनाई।
तृतीय दिवस तेरापंथ युवक परिषद, सिटीलाइट द्वारा अभिनव सामायिक का आयोजन हुआ। साध्वी मंगलप्रज्ञाजी ने कहा—'समता की आय ही सामायिक है। केवल बाहरी परिवेश ही नहीं, आंतरिक जागरूकता और मोह-माया का क्षय ही वास्तविक सामायिक है।' चतुर्दशी के अवसर पर साध्वीश्री ने श्रावक समाज से आग्रह किया कि वे चिंतन करें—हमारा सम्यक्त्व और तेरापंथ के सिद्धांत कैसे सुरक्षित रहें? संघ संवर्धन हेतु नियोजित चिन्तन आवश्यक है। इस अवसर पर सभा अध्यक्ष हजारीमल भोगर ने निष्ठा पत्र वाचन किया। साध्वी राजुलप्रभाजी ने अभिनव सामायिक का प्रयोग कराया। मारवाड़ क्षेत्र (जसोल, समदड़ी, टापरा, पारलू, बायतू, बाड़मेर आदि) के सूरत प्रवासी श्रावक-श्राविकाओं ने मंगलाचरण किया। साध्वीवृन्द ने 'कर्मों का प्रहार, उज्ज्वल आत्मा का अवतार' कार्यक्रम प्रस्तुत किया। महास्ती चंदनबाला के तेले करने वाले साधकों का प्रत्याख्यान कराया गया, अश्विनी मेहता ने 25 का प्रत्याख्यान किया। रात्रिकालीन कार्यक्रम में साध्वी मंगलप्रज्ञाजी ने 'वचनसिद्ध संत गुलहजारी' का जीवन दर्शन सुनाया।
वाणी संयम दिवस पर राजसमंद, भीलवाड़ा, चितौड़गढ़ और उदयपुर निवासी सूरत प्रवासी श्रावकों ने मेवाड़ी अंदाज़ में मंगलाचरण प्रस्तुत किया। साध्वी मंगलप्रज्ञाजी ने कहा—'शब्द शक्ति के बिना व्यवहार नहीं चलता, पर विवेक आवश्यक है। समाज की अधिकांश समस्याएँ वाणी से उत्पन्न होती हैं।' उन्होंने कहा —कब बोलना है? क्यों बोलना है? कहाँ बोलना है? और क्या बोलना है?—जीवन व्यवहार में इन प्रश्नों को आधार बनाना चाहिए। साध्वी वृन्द द्वारा ‘पाषाण बना भगवान’ की प्रस्तुति ने वाणी की महत्ता उजागर की। साध्वी शौर्यप्रभाजी ने कहा—'वाणी रूपी आभूषण की सुरक्षा करनी चाहिए।' साध्वी मंगलप्रज्ञाजी ने महावीर के पूर्व भव—मरीचि से विश्वभूति तक की जीवन यात्रा करवाई। रात्रिकाल में उन्होंने 'विदेश यात्रा अनुभव—जिनशासन वैभव' विषय पर प्रेरक प्रवचन दिया।
अणुव्रत चेतना दिवस पर साध्वी मंगलप्रज्ञाजी ने कहा—'भोगवादी संस्कृति बढ़ रही है। इस स्थिति में व्रतों का अंकुश आवश्यक है। सामाजिक कुरीतियों को अपने घर से हटाने की शुरुआत करें। विवाह जैसे अवसरों पर शराब का प्रयोग समाज को गर्त में ले जा रहा है। ऐसी प्रवृत्तियों पर रोक लगनी चाहिए।' इस अवसर पर सरदारशहर, गंगाशहर आदि क्षेत्र के सूरत प्रवासी श्रावक-श्राविकाओं ने थली क्षेत्र का इतिहास दर्शाते हुए मंगलसंगान प्रस्तुत किया। साध्वीवृन्द द्वारा ‘अणुव्रत हॉस्पिटल’ की प्रेरक प्रस्तुति दी गई। रात्रि में किशोर-कन्या मंडल द्वारा 'ओपन टॉक शो विद साध्वीश्री' का आयोजन हुआ।
पर्युषण के छठे दिन जप दिवस के अवसर पर सेराप्रांत के सूरत प्रवासी श्रावकों ने मंगलसंगान किया। साध्वी मंगलप्रज्ञाजी ने कहा—'मंत्र शक्ति को हर परम्परा स्वीकार करती है। यह समस्याओं के समाधान और आत्मशक्ति प्राप्ति का अमोघ उपाय है।' उन्होंने करमाला, मणिमाला, वर्णमाला, ओमवर्त, शंखावर्त और नन्दावर्त की साधनाओं का उल्लेख करते हुए परिषद को मंत्र जप की प्रेरणा दी। साध्वीवृन्द ने ‘सम्यक्त्व लाइन्स’ और साध्वी मंगलप्रज्ञाजी रचित गीत की प्रस्तुति दी। रात्रि में 'मंत्र शक्ति का चमत्कार—गुरु का उपहार' शीर्षक कार्यक्रम में श्रावक समाज बड़ी संख्या में उपस्थित रहा।
ध्यान दिवस पर साध्वी मंगलप्रज्ञाजी ने महावीर के त्रिपृष्ठ भव का वर्णन करते हुए कहा—'महावीर ने साढ़े बारह वर्षों तक ध्यान साधना की।' आचार्य तुलसी और आचार्य महाप्रज्ञ ने विलुप्त ध्यान पद्धति को पुनर्जीवित किया। साध्वीश्री ने कहा—'इस साधना से अनेक लोगों ने शांति, शक्ति और आनंद की प्राप्ति की है।' लाडनू, सुजानगढ़, छापर, बीदासर, मांडवा, रतनगढ़ आदि क्षेत्रों के सूरत प्रवासी श्रावकों ने मंगलाचरण प्रस्तुत किया। साध्वीवृन्द द्वारा 'मोक्ष अपार्टमेंट' कार्यक्रम और 'भक्ति संध्या' का आयोजन हुआ। संवत्सरी की आराधना में लगभग 225 से अधिक बालक-बालिका, किशोर-किशोरी एवं युवाओं ने अठाई से मासखमण तक के विविध तपों का प्रत्याख्यान किया। साध्वी मंगलप्रज्ञाजी ने कहा—'संवत्सरी जैनों का सिरमौर पर्व है। आज क्षमा के पथ को अपनाने की सबसे अधिक आवश्यकता है। इस पर्व के आलोक में साधक आत्मनिरीक्षण कर पवित्रता के मार्ग पर अग्रसर हों।'
इस अवसर पर साध्वीवृन्द ने महासती चंदनबाला का मार्मिक चित्रण प्रस्तुत किया। साध्वी राजुलप्रभाजी, साध्वी अतुलयशाजी, साध्वी चैतन्यप्रभाजी, साध्वी शौर्यप्रभाजी और साध्वी सुदर्शनप्रभाजी ने गणधर परंपरा, आचार्यों और साध्वीप्रमुखाओं के जीवन पर प्रकाश डाला। साध्वीवृन्द ने आचार्य महाप्रज्ञ रचित 'आत्मा की पोथी' गीत का संगान किया। तेरापंथ सभा, तेरापंथ महिला मंडल, युवक परिषद सहित सभी संस्थाओं के पदाधिकारियों ने खम्रतखामणा निवेदन किया। कार्यक्रम का संचालन सभा मंत्री महेन्द्र गांधी मेहता ने किया। हजारों लोगों ने पौषध आराधना और अखंड जप के साथ महापर्व की साधना की। समस्त पर्युषण काल की रात्रियों में साध्वी मंगलप्रज्ञाजी ने 'उपसग्गहर स्तोत्र' की साधना करवाई।