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पर्युषण महापर्व के उपलक्ष्य में विविध आयोजन
सोडाला, श्यामनगर स्थित भिक्षु साधना केंद्र में मुनि तत्त्व रुचि जी ‘तरुण’ के सान्निध्य में संवत्सरी महापर्व मनाया गया। कार्यक्रम में संतों ने उपस्थित लोगों को सहज और सरल बन अपने आप को देखने, स्वयं को सुधारने की बात कही। उन्होंने बताया कि संवत्सरी का पर्व आत्मालोचन, आत्मशोधन और ग्रन्थि विमोचन का महापर्व है। संतों ने कहा - सम्यक्त्व अनमोल रतन है इसकी सुरक्षा के लिए भीतर की गांठें खोलना जरूरी है। जीवन में कभी किसी के प्रति कलुष भाव आया हो अथवा अनुचित व्यवहार हो गया हो तो सरल हृदय से खमतखामणा करना स्वयं को तनाव और भार मुक्त करने का मार्ग है। मुनिश्री ने भगवान महावीर के जीवन को सरल और सरस ढंग से व्याख्यायित किया। संवत्सरी के पावन अवसर पर लगभग 131 से अधिक व्यक्तियों ने उपवास एवं पोषध व्रत की उपासना की। 12 श्रावक-श्राविकाओं ने अठ्ठाई तप का प्रत्याख्यान किया। तेरापंथ महिला मंडल (सी-स्कीम) की बहिनों ने संवत्सरी गीत का संगान किया। कार्यक्रम में मारवाड़ जंक्शन के विधायक केसाराम चौधरी सहित बड़ी संख्या में श्रावक-श्राविकाएं उपस्थित थे।
मैत्री दिवस पर आयोजित कार्यक्रम को संबोधित करते हुए मुनि तत्त्व रुचि जी ‘तरुण’ ने कहा - मैत्री का अर्थ है किसी से वैर-विरोध का भाव नहीं रखना। सब प्राणियों को क्षमा करना और सब प्राणी मुझे क्षमा करें यही है मैत्री की भावना। वास्तव में क्षमा उत्तम धर्म है। मुनि श्री ने आगे कहा - क्षमा वीरों का भूषण है। इससे मन का प्रदूषण भी मिटता है। बाह्य और आंतरिक वातावरण स्वच्छ और पवित्र बन जाता है। क्षमा देना और क्षमा मांगना कायरों का नहीं, वीरों का काम है। महान वे होते हैं जो अपने अहंकार को छोड़ झुकना जानते हैं। मुनि संभव कुमार जी ने कहा - क्षमापना का पर्व पर्युषण पर्व का हृदय है। इसमें व्यक्ति अपनी गलतियों की क्षमा मांगता है और दूसरों की भूलों को भूल कर उसे क्षमा करता है। क्षमापना की शुरुआत हमेशा अपनों से होनी चाहिए। कार्यक्रम के प्रारंभ में आचार्य तुलसी द्वारा रचित मैत्री गीत का संगान किया गया। इस अवसर पर समाज की सभी सभा संस्थाओं द्वारा सामूहिक खमतखामणा का कार्यक्रम भी रखा गया। खमतखामणा परिपत्र का वाचन सभा के उपाध्यक्ष सुरेंद्र सेठिया ने किया। सभा के मंत्री सुरेंद्र सेखानी व सुशीला नखत ने भी विचार रखे।