पर्युषण महापर्व के उपलक्ष्य में विविध आयोजन

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नाथद्वारा

पर्युषण महापर्व के उपलक्ष्य में विविध आयोजन

नाथद्वारा। साध्वी रचनाश्री जी के सान्निध्य में पर्युषण महापर्व हर्ष और उल्लास के साथ मनाया गया। पर्युषण महापर्व के आठों दिनों में तेरापंथ महिला मंडल, तेरापंथ सभा, तेरापंथ युवती मंडल, ज्ञानशाला की प्रशिक्षिकाएँ तथा तेरापंथ युवक परिषद द्वारा क्रमशः प्रतिदिन कार्यक्रमों का आयोजन हुआ। प्रत्येक दिन का शुभारंभ मंगलाचरण के साथ हुआ।
प्रथम दिवस – खाद्य संयम दिवस पर साध्वी श्री जी ने कहा— 'भोजन करना सीखें। तेज रफ्तार की जिंदगी में आजकल चबा-चबा कर नहीं, दबा-दबा कर खाया जा रहा है, जिससे असद्विचार बढ़ रहे हैं। खाद्य संयम से तन-मन और चिंतन स्वस्थ रहता है।' उन्होंने बताया कि पर्युषण की यह द्वादशी चतुर्थ आचार्य जयाचार्य से जुडी हुई है। आचार्य जयाचार्य का व्यक्तित्व ओजस्वी रहा और अनुशासन प्रवर्तक के रूप में प्रकट हुआ। इस विषय पर साध्वी गीतार्थ प्रभा जी ने भी अपने विचार रखे। साध्वी श्री ने आगे भगवान महावीर के 27 भवों का विवरण प्रारंभ किया।
द्वितीय दिवस साध्वी श्री ने कहा— 'चिड़िया अपने पंखों को फड़फड़ाकर धूल को विसर्जित करती है, ठीक वैसे ही स्वाध्याय करते-करते कर्मरज का विसर्जन किया जा सकता है। सलक्ष्य किया गया स्वाध्याय व्यक्ति के लिए विशेष और महत्वपूर्ण हो जाता है।' भगवान महावीर के जीवन-वर्णन में उन्होंने नयसार के भव में सम्यक्त्व की प्राप्ति का उल्लेख किया। इस विषय पर साध्वी प्राज्ञप्रभा जी ने प्रस्तुति दी।
सामायिक दिवस पर साध्वी श्री जी ने कहा— 'सामायिक समता की साधना है। जैसे असली सिक्का मूल्यवान होता है, नकली नहीं; वैसे ही शुद्ध और निर्मल सामायिक ही मूल्यवान है।' भगवान महावीर की आध्यात्मिक यात्रा में उन्होंने सम्यक्त्व के महत्व को स्पष्ट किया। इस दिन साध्वी गीतार्थ प्रभा जी ने विषय पर प्रस्तुति दी तथा अभिनव सामायिक का प्रयोग व्यवस्थित और सुंदर रूप में आयोजित किया गया।
वाणी संयम दिवस पर साध्वी श्री जी ने कहा— 'वाणी का प्रयोग किसी के घर में आग लगाने के लिए नहीं, बल्कि आग शांत करने के लिए होना चाहिए।'
उन्होंने एक कवि की पंक्तियाँ उद्धृत कीं—
'शब्द संभाले बोलिए, शब्द के हाथ न पांव।
एक शब्द औषधि करे, एक करे है घाव।।'
साध्वीश्री ने भगवान महावीर की आध्यात्मिक यात्रा में सुपात्र दान के महत्व को भी उजागर किया। इस विषय पर साध्वी नमन प्रभा जी ने प्रस्तुति दी।
पंचम दिवस प्रवचन में साध्वी श्री जी ने कहा— 'व्रत को स्वीकार वही करता है जिसका हृदय संयम के प्रति आकृष्ट होता है। व्रत चेतना का जागरण, बुराई रूपी परावैगनी किरणों को पास आने से रोकता है। व्रत हेय और आदेय की चेतना को जागृत कर संयम के महत्व को बढ़ाता है।' भगवान महावीर की आध्यात्मिक यात्रा में उन्होंने तीसरे भव मरीचि के जीवन को सरस शैली में प्रस्तुत किया। विषय प्रस्तुति साध्वी गीतार्थ प्रभा जी ने दी।
जप दिवस पर साध्वी श्री ने परिषद को संबोधित करते हुए कहा— 'जप मात्र दो अक्षरों का छोटा सा शब्द है, किंतु इसके भीतर महान लाभ निहित है। जप हस्ताक्षर है किंतु अत्यंत शक्तिशाली। जप आत्मा को पुष्ट करता है। जब जप करने वाला एकाग्र होकर तल्लीन हो जाता है, तब सफलता स्वयं उसके द्वार पर दस्तक देती है।' भगवान महावीर के 17वें भव विश्वभूति और 19वें भव वासुदेव त्रिपृष्ठ का वर्णन साध्वी श्री ने किया। विषय प्रस्तुति साध्वी प्राज्ञ प्रभा जी ने दी।
सप्तम दिवस साध्वी श्री ने कहा— 'ध्यान वह साधन है जिसमें व्यक्ति स्वयं को साध सकता है, स्वयं का साक्षात्कार कर सकता है। ध्यान ऐसा सीसीटीवी कैमरा है जिससे भीतर की तस्वीर ली जा सकती है। यह कर्मों को मांजने की श्रेष्ठ प्रवृत्ति है।' भगवान महावीर का जीव 25वें भव में तप और अर्हत-भक्ति द्वारा तीर्थंकर नामकरण का उपार्जन कर देव बने। विषय प्रस्तुति साध्वी प्राज्ञ प्रभा जी ने दी।
अष्टम दिवस – संवत्सरी महापर्व हर्षोल्लास के साथ मनाया गया। साध्वी रचनाश्रीजी ने विशाल धर्मपरिषद को संबोधित करते हुए कहा— 'संवत्सरी पर्व एक अनूठा पर्व है, जिसमें सदिया, भदिया और कदिया श्रावक भी मिल-जुलकर इस पर्व की आराधना करते हैं। यह पर्व चेतना के ऊर्ध्वारोहण का विशिष्ट पर्व है और आत्मशुद्धि का महान अनुष्ठान है। यह हमें अपने घर में रहने की जानकारी देता है।' प्रभावक आचार्य परंपरा में साध्वी गीतार्थप्रभा जी ने आचार्य व्रजस्वामी और आचार्य श्याम का जीवन वर्णन प्रस्तुत किया तथा साध्वी नमन प्रभा जी ने आचार्य स्थूलिभद्र के जीवन का वर्णन किया। साध्वी रचनाश्री जी ने भगवान महावीर के पश्चात जैन धर्म के विभाजन से लेकर तेरापंथ के उद्भव और उसकी यशस्वी आचार्य परंपरा का विस्तृत वर्णन किया तथा वर्तमान आचार्य श्री महाश्रमण जी तक के आचार्यों के अनेक रोचक प्रसंग प्रस्तुत किए। तत्पश्चात साध्वी प्रज्ञाप्रभा जी ने साध्वी प्रमुखाओं के जीवन प्रसंगों का सुंदर वर्णन किया। सभा में उपस्थित विशाल जन-समूह ने सामूहिक रूप से उपवास का प्रत्याख्यान किया। अनेक श्रद्धालुओं ने अष्टप्रहरी, षट्प्रहरी और चतु:प्रहरी पौषध का भी प्रत्याख्यान किया।
आठों दिनों के विषयों पर आधारित गीत साध्वी गीतार्थ प्रभा जी, साध्वी प्राज्ञ प्रभा जी और साध्वी नमन प्रभा जी द्वारा प्रस्तुत किए गए। रात्रिकालीन कार्यक्रम में प्रतिक्रमण और अर्हत वंदना के पश्चात साध्वी श्री जी ने 'तेरापंथ को जानिए इतिहास के आईने में' विषय पर अश्रुत घटनाओं के रोचक संस्मरण प्रस्तुत किए, जिससे श्रावक समाज लाभान्वित हुआ।