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‘अणुव्रत डिजिटल डिटॉक्स व एलिवेट - एक्सपीरियंस द रियल हाई’ शिविर का आयोजन
अखिल भारतीय अणुव्रत न्यास द्वारा आयोजित 'अणुव्रत डिजिटल डिटॉक्स व एलिवेट एक्सपीरियंस: द रियल हाई' शिविर में जिला शैक्षणिक शिक्षण संस्थान (डीआईईटी), दरियागंज, नई दिल्ली के 150 से अधिक शिक्षकों को संबोधित करते हुए आचार्य श्री महाश्रमण जी के विद्वान शिष्य डॉ. मुनि अभिजित कुमार जी ने कहा कि शिक्षा ही जीवन की अधिष्ठात्री है। शिक्षा केवल पुस्तकीय ज्ञान का माध्यम नहीं है, बल्कि श्रेष्ठ संस्कारों के जागरण का भी माध्यम है। शिक्षा के क्षेत्र में बदलाव के लिए अणुव्रत एक महत्वपूर्ण अवदान है। इसके प्रयोगों से अच्छे चरित्र सम्पन्न व्यक्तित्व के विकास की कमी दूर की जा सकती है।
चरित्र निर्माण के लिए ध्यान और योग नितांत आवश्यक हैं। आज की जीवन शैली पर भौतिकता हावी हो रही है, जिसके कारण व्यक्ति भटकन का जीवन जी रहा है। व्यक्तित्व निर्माण के लिए सही लक्ष्य का चयन और उसके अनुरूप कार्य करना आवश्यक है। उन्होंने कहा कि जो संस्कारवान होता है, वह अपने जीवन में हर कदम पर सफलता को प्राप्त करता है, जबकि जो मूढ़ता का जीवन जीता है, उसके जीवन में सम्यक् संस्कारों का सिंचन नहीं हो सकता। वर्तमान शिक्षा प्रणाली में कुशल डॉक्टर, वकील, इंजीनियर बन रहे हैं, किंतु अच्छे व्यक्ति का निर्माण नहीं हो पा रहा है। प्रत्येक विद्यार्थी जीवन में नशे से मुक्त रहे, यह सदा प्रयास किया जाना चाहिए। इस अवसर पर मुनि श्री ने सभी शिक्षकों को आजीवन नशा मुक्त रहने का संकल्प दिलाया। सभी विद्यार्थियों ने भी आजीवन नशा न करने का संकल्प लिया।
मुनि जागृत कुमार जी ने कहा कि डिजिटल डिटॉक्स वह समयावधि है, जब कोई व्यक्ति स्वेच्छा से स्मार्टफोन, कंप्यूटर और सोशल मीडिया प्लेटफार्म जैसे डिजिटल उपकरणों का उपयोग करने से परहेज करता है। डिजिटल उपकरणों का अत्यधिक उपयोग हमारे मानसिक स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचाता है। इसके माध्यम से बेहतर नींद पैटर्न, स्मृति और एकाग्रता में सुधार किया जा सकता है। साथ ही शारीरिक गतिविधियों जैसे व्यायाम, योग और ध्यान के लिए अधिक समय मिल सकता है। यह व्यक्तिगत रूप से लोगों से जुड़ने और तनाव मुक्त होने का भी एक तरीका है।
मुनि जी ने कहा कि अणुव्रत विधायक भावों के निर्माता हैं। इनके प्रयोग से व्यक्ति के स्वभाव में परिवर्तन और बुरी आदतों का परिष्कार होता है। उन्होंने ध्यान को जीवन का एक अनिवार्य हिस्सा बताते हुए कहा कि इसे सभी शिक्षा केंद्रों में लागू किया जाना चाहिए।
प्रत्येक शिक्षक आभा सम्पन्न, तेजस्वी और ओजस्वी बने, इसके लिए आचार्य महाप्रज्ञ जी द्वारा प्रतिपादित प्रेक्षाध्यान पद्धति के प्रयोग कारगर सिद्ध हुए हैं। डीआईईटी की प्रधानाचार्या अंजुल शर्मा ने मुनिवृन्द सहित सभी महानुभावों का स्वागत करते हुए कहा कि यह कार्यक्रम अपने आप में अति महत्वपूर्ण है। इस तरह के कार्यक्रमों का आयोजन समय-समय पर आवश्यक है। इस अवसर पर अणुव्रत न्यास के न्यासी शांति कुमार जैन ने सभी का स्वागत करते हुए कार्यक्रम को शिक्षक वर्ग के लिए महत्वपूर्ण माना। अणुव्रत न्यास के पूर्व न्यासी विजयवर्धन डागा, अणुव्रत समिति ट्रस्ट के अध्यक्ष बाबूलाल गोल्छा ने कहा कि अणुव्रत आंदोलन आचार्य श्री तुलसी का महान अवदान है, जिसके माध्यम से व्यक्ति का चरित्र निर्माण होता है। कार्यक्रम के संयोजक, अखिल भारतीय अणुव्रत न्यास के वरिष्ठ प्रशिक्षक रमेश काण्डपाल ने शिक्षकों को जीवन में संस्कारों के साथ-साथ अहिंसा और जीवन विज्ञान योग के प्रयोग कराए।