प्रेक्षाध्यान : प्राणशक्ति और चक्रों के माध्यम से आंतरिक संतुलन की साधना

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के. सी. जैन

प्रेक्षाध्यान : प्राणशक्ति और चक्रों के माध्यम से आंतरिक संतुलन की साधना

कल्पना कीजिए कि आपके पास एक वायर (तार) है, जिस पर विद्युत धारा प्रवाहित हो रही है। जैसे उस वायर में धारा के प्रवाह से बल और ऊर्जा उत्पन्न होती है, वैसे ही हमारे शरीर में भी एक अदृश्य ऊर्जा प्रवाहित होती है, जिसे प्राणशक्ति कहा जाता है। जब यह प्राणशक्ति ठीक से प्रवाहित होती है, तो हमारे शरीर और मस्तिष्क में संतुलन बना रहता है, और हम मानसिक, शारीरिक और भावनात्मक रूप से स्वस्थ रहते हैं। जैसे एक वायर के माध्यम से विद्युत धारा अपने उद्देश्य को पूरा करती है, वैसे ही हमारे शरीर में प्राणशक्ति सही प्रवाह में होने पर हमारी जीवनशक्ति को संजीवनी मिलती है।
अब, यदि हम उस विद्युत वायर का ध्यानपूर्वक निरीक्षण करें और इसे ठीक से जोड़ें, तो धारा का प्रवाह बहने लगता है और वह ऊर्जा हमें विभिन्न उपकरणों को संचालित करने में मदद करती है। ठीक उसी प्रकार, प्रेक्षाध्यान एक साधना है, जो हमें हमारी आंतरिक प्राणशक्ति को जागृत और सही दिशा में प्रवाहित करने की कला सिखाती है। जब यह प्राणशक्ति सही मार्ग पर प्रवाहित होती है, तो हमारा जीवन संतुलित और समृद्ध बनता है।
प्रेक्षाध्यान: आत्मा की गहरी यात्रा
प्रेक्षाध्यान, जैन परंपरा में ध्यान की एक प्राचीन और शक्तिशाली विधि है, जो शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक संतुलन को स्थापित करने का एक प्रभावी तरीका है। इस साधना का उद्देश्य केवल मानसिक शांति और ध्यान की स्थिति तक पहुंचना नहीं है, बल्कि यह हमें अपनी प्राणशक्ति, यानी जीवन की ऊर्जा को पहचानने और नियंत्रित करने की कला सिखाती है।
हमारे शरीर में सात प्रमुख चक्र होते हैं, जिनका संबंध हमारी शारीरिक और मानसिक स्थिति से होता है। जब इन चक्रों में असंतुलन होता है, तो हम शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक समस्याओं का सामना करते हैं। प्रेक्षाध्यान की विधि इन चक्रों को सक्रिय करने और संतुलित करने में मदद करती है, जिससे हमारी ऊर्जा का प्रवाह सही दिशा में होता है और हम आंतरिक रूप से अधिक संतुलित और स्वस्थ बनते हैं।
प्राणशक्ति और चक्रों का महत्व
प्रेक्षाध्यान का अभ्यास करते समय, हम अपनी प्राणशक्ति पर ध्यान केंद्रित करते हैं। प्राणशक्ति वह अदृश्य ऊर्जा है, जो हमारे शरीर और मस्तिष्क को जीवंत रखती है। भारतीय योग और तंत्रशास्त्र में इसे 'प्राण' कहा जाता है, जो हमारे अस्तित्व का मूल स्रोत है। जब इस ऊर्जा का संतुलन और समन्वय ठीक होता है, तो हम न केवल शारीरिक रूप से स्वस्थ रहते हैं, बल्कि मानसिक और भावनात्मक रूप से भी अधिक स्थिर होते हैं।
प्रेक्षाध्यान के माध्यम से, हम इन सात चक्रों पर ध्यान केंद्रित करते हैं, और इन चक्रों को संतुलित करते हैं, जिससे हमारी प्राणशक्ति सही दिशा में प्रवाहित होती है। इन चक्रों में संतुलन स्थापित होते ही, हमारा जीवन भी समृद्ध और संतुलित बनता है।
प्रेक्षाध्यान और चक्रों का संबंध
प्रेक्षाध्यान के अभ्यास में, हम सात मुख्य चक्रों का ध्यान करते हैं। प्रत्येक चक्र हमारे जीवन के अलग-अलग पहलुओं से जुड़ा होता है। आइए जानते हैं इन चक्रों के बारे में:
1. मूलाधार चक्र (Root Chakra)
यह चक्र रीढ़ की हड्डी के निचले हिस्से में स्थित होता है और हमारी सुरक्षा, अस्तित्व और स्थिरता से जुड़ा होता है। इस चक्र को जागृत कर हम जीवन में स्थिरता और सुरक्षा का अनुभव कर सकते हैं।
2. स्वाधिष्ठान चक्र (Sacral Chakra)
यह चक्र नाभि के निचले हिस्से में स्थित है और रचनात्मकता, भावनाओं और यौन ऊर्जा से जुड़ा है। इस चक्र को सक्रिय कर हम अपनी रचनात्मक क्षमता और भावनात्मक संतुलन को जागृत कर सकते हैं।
3.मणिपुर चक्र (Solar Plexus Chakra)
यह चक्र पेट के ऊपरी हिस्से में स्थित है और आत्म-विश्वास, शक्ति और उद्देश्य से जुड़ा है। इस चक्र पर ध्यान केंद्रित कर हम अपनी आंतरिक शक्ति को महसूस कर सकते हैं और अपने जीवन को उद्देश्यपूर्ण बना सकते हैं।
4. अनाहत चक्र (Heart Chakra)
यह चक्र हृदय के पास स्थित है और प्रेम, करुणा और भावनाओं से जुड़ा है। इस चक्र के जागरण से हम अपने जीवन में प्रेम और करुणा का प्रवाह बढ़ा सकते हैं और आत्मा को गहरी शांति का अनुभव करा सकते हैं।
5. विशुद्धि चक्र (Throat Chakra)
यह चक्र गले के पास स्थित है और संचार, सत्य और आत्म-अभिव्यक्ति से जुड़ा है। इस चक्र को सक्रिय कर हम अपनी आवाज़ में स्पष्टता और सत्य को व्यक्त कर सकते हैं।
6. आज्ञा चक्र (Third Eye Chakra)
यह चक्र भौंहों के बीच में स्थित होता है
और मानसिक स्पष्टता, अंतर्दृष्टि और उच्च चेतना से जुड़ा होता है। इस चक्र को जागृत कर हम अपनी मानसिक क्षमता और स्पष्टता में वृद्धि कर सकते हैं।
7. सहस्रार चक्र (Crown Chakra)
यह चक्र सिर के शीर्ष पर स्थित होता है और दिव्य चेतना और ब्रह्मा के साथ जुड़ा होता है। इस चक्र के जागरण से हम अपनी आध्यात्मिक यात्रा में एक महत्वपूर्ण कदम आगे बढ़ सकते हैं।
प्रेक्षाध्यान का लाभ: प्राणशक्ति का जागरण
प्रेक्षाध्यान का मुख्य उद्देश्य प्राणशक्ति को संतुलित करना है। जब यह प्राणशक्ति संतुलित और नियंत्रित होती है, तो हमारे शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक स्वास्थ्य में सुधार होता है। हम स्वयं के प्रति जागरूक होते हैं और जीवन के प्रत्येक पहलू को अधिक समझदारी से जीने लगते हैं। जब हम अपनी प्राणशक्ति पर नियंत्रण प्राप्त कर लेते हैं, तो हमारी ऊर्जा चक्रों के माध्यम से बहती है, जिससे हमारी इच्छाएं पूरी होती हैं और हम जीवन में सही दिशा में आगे बढ़ते हैं। इसके अभ्यास से न केवल शारीरिक स्वस्थता मिलती है, बल्कि मानसिक शांति और भावनात्मक संतुलन भी मिलता है।
प्रेक्षाध्यान: जागरूकता और अभ्यास से आत्म-शक्ति का संवर्धन
प्रेक्षाध्यान का अभ्यास केवल शांति और ध्यान तक सीमित नहीं रहता, बल्कि यह हमें अपनी प्राणशक्ति को पहचानने, उसे संतुलित करने और उसे सकारात्मक दिशा में प्रवाहित करने का अवसर प्रदान करता है। जब हम अपनी सांस की गति पर ध्यान केंद्रित करते हैं, तो हम अपनी प्राणशक्ति को नियंत्रित कर सकते हैं और इस ऊर्जा का सही उपयोग कर सकते हैं।
एक सरल प्रयोग
आपको बस गहरी श्वास लेनी है, अपनी श्वास को स्थिर करना है, और फिर धीरे-धीरे छोड़ना है। इसे कुछ समय तक करते हुए महसूस करें कि आपकी प्राणशक्ति सक्रिय हो रही है और आपकी आंतरिक ऊर्जा जागृत हो रही है। प्रेक्षाध्यान में समाहित दीर्घ श्वास प्रेक्षा, समताल श्वास प्रेक्षा तथा सम वृत्ति श्वास प्रेक्षा का निरंतर अभ्यास आपके चक्रों को खोलता है और आपको शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक रूप से संतुलित बनाता है।
निष्कर्ष
प्रेक्षाध्यान हमें न केवल मानसिक शांति देता है, बल्कि हमारे भीतर छिपी असीम शक्तियों को जागृत करता है। जब हम अपनी प्राणशक्ति को सही तरीके से नियंत्रित और संतुलित करते हैं, तो हम जीवन के हर पहलू में सशक्त और संतुलित होते हैं। तो, क्या आप अपनी आंतरिक शक्ति को पहचानने और उसे जागृत करने के लिए तैयार हैं? प्रेक्षाध्यान के अभ्यास से आप न केवल अपने जीवन को संतुलित कर सकते हैं, बल्कि अपनी आत्मा की गहराई में जाकर एक नई ऊर्जा का अनुभव कर सकते हैं।
(लेखक अध्यात्म साधना केंद्र छतरपुर दिल्ली के निदेशक हैं।)