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आत्मा को कुंदन बनाती है तपस्या
साध्वी काव्यलता जी के सान्निध्य में एक साथ 45 अट्ठाई का प्रत्याख्यान सम्पन्न हुआ। अपने उद्बोधन में साध्वी काव्यलता जी ने कहा— 'भगवान ने मोक्ष के चार मार्ग बताए हैं—ज्ञान, दर्शन, श्रद्धा और तप। हर व्यक्ति अपनी प्रवृत्ति के अनुसार किसी न किसी मार्ग का चयन करता है। आज मेरे सामने छोटे-छोटे तपस्वी भाई-बहन उपस्थित हैं, यह दृश्य अत्यंत प्रेरणादायी है। हर धर्म-संप्रदाय ने तप के महत्व को स्वीकार किया है। जैन शासन में तप का बहुत बड़ा महत्व है। तप जीवन का श्रृंगार है, जीवन की सफलता का आधार है। तपस्या वह ज्योति है, जो आत्मा को शुद्ध कर कुंदन के समान उज्ज्वल बना देती है।' उन्होंने तपस्वी साधु-संतों के ऐतिहासिक प्रसंगों का उल्लेख करते हुए कहा कि 'हर तपस्वी की शक्ति का मूल आधार गुरु का आशीर्वाद होता है। गुरुशक्ति से तपस्वी का मनोबल बढ़ता है और तप साधना में निखार आता है।' तत्पश्चात उन्होंने कविता 'कल-कल करती तप सरिता आई' के माध्यम से तपस्वियों का मनोबल बढ़ाया। सभा में साध्वी ज्योतियशा जी ने आचार्य भिक्षु के तपस्वी जीवन का उल्लेख करते हुए बताया कि 'आचार्य भिक्षु ने पाली में सात-सात चातुर्मास किए थे। यह वर्ष आचार्य भिक्षु का त्रिशताब्दी वर्ष है। इस पुण्य वर्ष में पाली की भूमि पर नया तप इतिहास रचा जा रहा है।' साध्वी सुरभिप्रभा जी एवं साध्वी राहतप्रभा जी ने भी तप की महिमा पर अपने विचार व्यक्त किए। सभा में साध्वी मधुस्मिता जी द्वारा रचित गीत का सामूहिक संगान किया गया। अनुमोदना में तेरापंथ युवक परिषद् अध्यक्ष पीयूष चौपड़ा, मंत्री राजेश मरलेचा आदि ने भी अपने विचार व्यक्त किए।