अप्रमत्त व्यक्तित्व के धनी थे आचार्य कालूगणी

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जसोल।

अप्रमत्त व्यक्तित्व के धनी थे आचार्य कालूगणी

साध्वी रतिप्रभा जी के सान्निध्य में तेरापंथ के अष्टम आचार्य श्री कालूगणी का महाप्रयाण दिवस पुराणा ओसवाल भवन के सभागार में आयोजित हुआ। कार्यक्रम का शुभारंभ साध्वीश्री द्वारा मंत्रोच्चार के साथ हुआ। साध्वी रतिप्रभा जी ने कहा कि कालूगणी, जिनका शासनकाल तेरापंथ के लिए स्वर्णिम काल कहा जा सकता है, उन्होंने शिक्षा पर विशेष ध्यान दिया। संस्कृत के विकास के प्रति उनके मन में गहरी उत्कंठा थी और उन्होंने अपने उत्तराधिकारी आचार्य श्री तुलसी को इस दिशा में कार्य आगे बढ़ाने की प्रेरणा दी, जिसके परिणामस्वरूप उल्लेखनीय विकास हुआ और आज भी हो रहा है। कालूगणी ने अप्रमत्त जीवन जिया। संपूर्ण मुनिकाल में उन्हें कभी किसी का उपालंभ सहन नहीं करना पड़ा। उनके सामने अनेक विरोध आए, परंतु उनके आभामंडल से धीरे-धीरे सब विरोध शांत हो गए।
साध्वी कलाप्रभा जी ने कहा कि कालूगणी पुण्यशाली व्यक्तित्व थे, जिनके कारण तेरापंथ का अपूर्व विकास हुआ। उनके समय में पुस्तकों से संघ समृद्ध हुआ तथा साधु-साध्वियों की संख्या में उल्लेखनीय वृद्धि हुई। कार्यक्रम का संचालन करते हुए साध्वी मनोज्ञयशा जी ने कहा कि कालूगणी उस महान व्यक्तित्व का नाम है, जिन्होंने अपनी सूझबूझ से मुनि तुलसी जैसे विलक्षण व्यक्तित्व को छोटी उम्र में ही युवाचार्य पद पर आसीन करा दिया। आपने अपनी मां छोगाजी के साथ संयम ग्रहण किया और संघ का उत्तरदायित्व संभालने के बाद सर्वांगीण विकास पर ध्यान दिया। साध्वी पावनयशा जी ने मधुर गीत द्वारा अपनी भावनाएं व्यक्त कीं। इस अवसर पर आठ भाई-बहनों के तप की अनुमोदना भी की गई। तेरापंथ महिला मंडल द्वारा गीत की प्रस्तुति दी गई। इसके अतिरिक्त कन्या मंडल, माणकचंद संकलेचा, प्रवीण भंसाली, पुष्पादेवी बुरड़, संतोषदेवी वडेरा आदि ने गीत, कविता और मुक्तक प्रस्तुत कर तपस्वियों की अनुमोदना की।