तप अनुमोदना का सामूहिक कार्यक्रम

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जसोल।

तप अनुमोदना का सामूहिक कार्यक्रम

तप अनुमोदना का सामूहिक कार्यक्रम आयोजित हुआ, जिसमें साध्वी रतिप्रभा जी ने कहा कि तपस्या हमारी आत्मा का श्रृंगार और तेज है। तप के सामने राजा-बादशाह भी शीश झुकाते हैं। बारह प्रकार की निर्जरा में तप बाह्य तप है। जब तप के साथ गहरा उत्साह, जप, स्वाध्याय हो और आडंबर का प्रयोग न किया जाए तो तप सोने पर सुहागा है। दशवैकालिक में कहा गया है कि तप क्यों करें? न इहलोक के लिए, न परलोक के लिए, केवल निर्जरा के लिए हमारा तप होना चाहिए। हमारा तप आगे से आगे बढ़ता रहे, यह प्रयास होना चाहिए। तप ऐसे कर्मों को तोड़ देता है जो गहरे बंधे हुए हों। बारह प्रकारों में से यथाशक्ति तप का प्रयोग चलता रहना चाहिए।
साध्वी कलाप्रभा जी ने कहा कि जसोल तप के मामले में आगे रहता है। इस बार भिक्षु चेतना वर्ष में यहाँ तप की बहुत ही अच्छी खेती निपजी है। एक साथ इतनी तपस्या होना अत्यंत सराहनीय है। साध्वी मनोज्ञयशा जी ने कहा कि तप के कारण मानो जसोल में बहार आ गई है। गुरु-सन्निधि में भी जसोल की तपस्या अत्यंत सराहनीय रही और साध्वीश्री की सन्निधि में भी अनूठा रंग खिला है। तप का बल इतना है कि एक चक्रवर्ती भी विजययात्रा से पहले तेले का अनुष्ठान करने जाता है। साध्वी पावनयशा जी ने कहा कि जसोल मेरी जन्मभूमि है और मैंने चातुर्मास प्रवेश पर मांग की थी कि मेरी खोल अच्छी भरे। सबसे पहले मेरी संसार पक्षीय मां ने अठाई का उपहार दिया और बाद में सभी ने बहुत अच्छी भेंट दी। इस अवसर पर सभा अध्यक्ष भूपतराज कोठारी, मंत्री धनपत संखलेचा, महिला मंडल मंत्री जयश्री सालेचा, युवक परिषद, महिला मंडल, कन्या मंडल आदि अनेक भाई-बहनों ने गीत, भाषण और कविताओं से तप की अनुमोदना की। कई भाई-बहनों ने इस अनुमोदना में तेला, चोला, पंचोला आदि करने का संकल्प लिया।कार्यक्रम का कुशल संचालन साध्वी मनोज्ञयशा जी ने किया।