मीडिया का व्यक्ति हो निर्भीक : आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

कोबा, गांधीनगर। 28 सितम्बर, 2025

मीडिया का व्यक्ति हो निर्भीक : आचार्यश्री महाश्रमण

जैन श्वेतांबर तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशम अधिशास्ता, महातपस्वी, शान्तिदूत, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी की मंगल सन्निधि में गुजरात व महाराष्ट्र के राज्यपाल आचार्य देवव्रत, गुजरात के मुख्यमंत्री भूपेन्द्र भाई पटेल और इंडिया टीवी के अध्यक्ष व प्रधान संपादक रजत शर्मा का पदार्पण हुआ। मुख्य प्रवचन कार्यक्रम में सर्वप्रथम साध्वीप्रमुखा श्री विश्रुतविभाजी ने अपने उद्बोधन में कहा कि जैन आगमों में प्रवृत्ति के तीन स्रोत बताए गए हैं – मन, वचन और काय। इस प्रवृत्ति को जैन दर्शन में योग कहा जाता है। इन तीनों में सबसे अधिक प्रवृत्ति मन की होती है। मन तीन कार्य संपादित करता है – स्मृति, चिंतन और कल्पना। चिंतन नकारात्मक और सकारात्मक हो सकता है। नकारात्मक चिंतन हमें विनाश की ओर, और सकारात्मक चिंतन विकास की ओर ले जाने वाला होता है। अतः जीवन और साधना के क्षेत्र में हमें अपने चिंतन को सकारात्मक बनाए रखना चाहिए।
तत्पश्चात् नवरात्रि के संदर्भ में आचार्य प्रवर द्वारा आध्यात्मिक अनुष्ठान का प्रारंभ मंगल मंत्रों के समुच्चारण से हुआ। इसी बीच गुजरात के मुख्यमंत्री भूपेन्द्र भाई पटेल गुरुदेव की मंगल सन्निधि में उपस्थित हुए। अनुष्ठान संपन्न होने तक श्री पटेल बैठे रहे और संपन्नता पर आचार्यश्री के दर्शन कर मंगल आशीर्वाद प्राप्त किया।तदुपरान्त आचार्य प्रवर की मंगल सन्निधि में गुजरात व महाराष्ट्र के राज्यपाल आचार्य देवव्रत तथा इंडिया टीवी के अध्यक्ष व प्रधान संपादक रजत शर्मा उपस्थित हुए।
परम पूज्य आचार्यश्री महाश्रमणजी ने पावन संबोध प्रदान करते हुए कहा कि धर्म उत्कृष्ट मंगल है। अहिंसा, संयम और तप धर्म हैं। यह अहिंसा, संयम और तप रूपी धर्म सम्प्रदायातीत हैं। जिसके जीवन में धर्म है, उसके साथ मंगल है। भारत में अनेक संत और महर्षि हुए हैं, और यह संत परंपरा चल रही है – यह सौभाग्य की बात है। साधुओं का अभाव दुनिया में कभी भी नहीं होता। बीसवीं शताब्दी में आचार्यश्री तुलसी हुए। बाल्यावस्था में वे संत बने और उसके बाद आचार्य बने। उन्होंने अणुव्रत आंदोलन शुरू किया, जिसमें छोटे-छोटे संकल्पों को स्वीकार कर व्यक्ति अच्छा बन सकता है।
आचार्यश्री तुलसी के उत्तराधिकारी आचार्यश्री महाप्रज्ञजी हुए। उन्होंने प्रेक्षाध्यान का क्रम प्रारंभ किया। आज इन्हीं दोनों के नाम से आचार्य तुलसी–महाप्रज्ञ विचार मंच है, जिसके द्वारा आचार्यश्री तुलसी सम्मान प्रदान किया जाना है। यह सम्मान मीडिया से जुड़े श्री रजत शर्मा को दिया जाना है। मीडिया का व्यक्ति निर्भीक होना चाहिए और उसमें निर्लोभता भी होनी चाहिए। समाज को मीडिया के माध्यम से पथदर्शन प्राप्त होता है। आचार्य प्रवर ने सद्भावना, नैतिकता व नशामुक्ति की प्रेरणा दी, साथ ही आचार्यश्री भिक्षु जन्म त्रिशताब्दी वर्ष व प्रेक्षाध्यान कल्याण वर्ष के संदर्भ में भी प्रेरणा पाथेय प्रदान किया।
आचार्य प्रवर के पावन संबोध के पश्चात् आचार्य तुलसी–महाप्रज्ञ विचार मंच की ओर से रजत शर्मा को 'आचार्यश्री तुलसी' सम्मान प्रदान किया गया। रजत शर्मा ने अपनी भावाभिव्यक्ति में कहा कि आचार्यश्री महाश्रमणजी ऐसे व्यक्तित्व हैं, जिन्होंने अपना जीवन मानवता की सेवा के लिए समर्पित कर दिया है। मेरा सौभाग्य है कि आपकी सन्निधि में राज्यपाल महोदय के हाथों से यह सम्मान प्राप्त हुआ है। गुजरात व महाराष्ट्र के राज्यपाल आचार्य देवव्रतजी ने संबोधन में कहा कि मैं आचार्यश्री महाश्रमणजी को सादर प्रणाम करता हूं। जब व्यक्ति सृष्टि के नियमों को तोड़ता है, तो वह दुःखी बन जाता है। अहिंसा और सत्य ऐसे शाश्वत सिद्धांत हैं, जो सुख और निर्भयता प्रदान करते हैं।
इसी प्रकार अचौर्य, ब्रह्मचर्य, संयम और अपरिग्रह भी शाश्वत नियम हैं। मैं रजत शर्माजी को बधाई देता हूं कि आज भी हमारे बीच ऐसे लोग हैं, जो निर्भीक होकर पत्रकारिता कर रहे हैं और मीडिया के माध्यम से समाज निर्माण का कार्य कर रहे हैं। मीनाक्षी भूतोड़िया द्वारा गीत की प्रस्तुति दी गई। आचार्य तुलसी–महाप्रज्ञ विचार मंच के अध्यक्ष राजकुमार पुगलिया व नवभारत टाइम्स के पूर्व संपादक विश्वनाथ सचदेव ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी। अमराईवाड़ी ज्ञानशाला की मुख्य प्रशिक्षिका संगीता सिंघवी ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी। अमराईवाड़ी ज्ञानशाला के ज्ञानार्थियों ने मुनि अतिमुक्तक के संदर्भ में अपनी प्रस्तुति दी। आचार्यश्री ने ज्ञानशाला के ज्ञानार्थियों को आशीर्वचन एवं प्रेरणा प्रदान की। श्रीचंद दूगड़ ने आभार ज्ञापित किया। तदुपरान्त राष्ट्रगान के गायन के साथ कार्यक्रम संपन्न हुआ।