शुद्धोपयोग से संभव है साधना का उत्तम अनुभव : आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

कोबा, गांधीनगर। 25 सितम्बर, 2025

शुद्धोपयोग से संभव है साधना का उत्तम अनुभव : आचार्यश्री महाश्रमण

सिद्धसाधक, महातपस्वी, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी की मंगल सन्निधि में नवरात्र के संदर्भ में चतुर्थ दिवस भी आध्यात्मिक अनुष्ठान का उपक्रम हुआ। पूज्य गुरुदेव ने विशाल जन समूह को वीर भिक्षु समवसरण में मंत्र जाप करवाते हुए अनुष्ठान संपन्न करवाया। इसके पश्चात् आचार्यश्री ने ‘आयारो’ आगम के माध्यम से अमृत देशना प्रदान करते हुए कहा— 'जो आत्मा है, वह ज्ञाता है और जो ज्ञाता है, वह आत्मा है। जिस साधन से आत्मा जानती है, वह ज्ञान आत्मा है।' जैन दर्शन में आठ आत्माएं बताई गई हैं, जिनमें एक द्रव्य आत्मा है और शेष सात भाव आत्माएं हैं। द्रव्य आत्मा, उपयोग आत्मा और दर्शन आत्मा हर जीव में प्राप्त होती है। द्रव्य आत्मा और उपयोग आत्मा का अविनाभावी संबंध बताया गया—द्रव्य आत्मा के बिना उपयोग आत्मा और उपयोग आत्मा के बिना द्रव्य आत्मा का अस्तित्व संभव नहीं।
इस प्रकार प्रत्येक जीव में कम से कम चार आत्माएं तो अवश्य होती हैं:
1. द्रव्य आत्मा
2. उपयोग आत्मा
3. ज्ञान आत्मा
4. दर्शन आत्मा
आचार्य प्रवर ने आगे कहा कि हर जीव में न्यूनतम बोध होता ही है। यदि ज्ञानावरणीय कर्म का थोड़ा भी क्षयोपशम न हो तो जीव और अजीव में कोई भेद ही न रहे।
आचार्यश्री ने प्रेक्षाध्यान की साधना पर बल देते हुए कहा—
प्रेक्षाध्यान में उपयोग आत्मा रहनी चाहिए, कषाय आत्मा सक्रिय नहीं रहनी चाहिए।
उपयोग आत्मा निर्मल रहे, उसके साथ कषाय न जुड़े।
प्रिय-अप्रिय की प्रवृत्ति से बचना चाहिए।
ज्ञाता-द्रष्टा भाव से साधना हो तो अध्यात्म की उन्नति संभव है।
पूज्य गुरुदेव ने समझाया कि यदि कषाय प्रबल हो जाए तो उपयोग पर आवरण आ जाता है। साधना का उद्देश्य शुद्धोपयोग में रहना होना चाहिए— 'न शुभ योग, न अशुभ योग और न कषाय—केवल शुद्धोपयोग। साधक जितना अधिक शुद्धोपयोग में रहेगा, उतना ही उत्तम साधना का अनुभव करेगा।' प्रेक्षाध्यान शिविर के संदर्भ में पूज्य गुरुदेव ने कहा— 'शिविर चल रहा है, जितना संभव हो सके शुद्धोपयोग में रहें। ध्यान में विचारों का प्रवाह कम करने का प्रयास करें।' मंगल प्रवचन के पश्चात् आचार्य प्रवर ने समुपस्थित शिविरार्थियों को प्रेक्षाध्यान का प्रयोग भी करवाया।