गुरुवाणी/ केन्द्र
व्यक्ति जैसा करता है, वैसा ही भोगता है : आचार्यश्री महाश्रमण
शक्ति के अजस्र स्रोत युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी की पावन सन्निधि में नवरात्र के संदर्भ में चल रहे आध्यात्मिक अनुष्ठान का क्रम तीसरे दिवस भी जारी रहा। परम पूज्य गुरुदेव ने हजारों श्रद्धालुओं को मंत्र जाप कर आध्यात्मिक अनुष्ठान करवाया। पूज्य गुरुदेव ने आयारो आगम के माध्यम से पावन देशना प्रदान करते हुए फरमाया कि अपना किया हुआ कर्म, अपने को ही भुगतना होता है इसलिए किसी के हनन की इच्छा मत करो। व्यक्ति आक्रोश, द्वेष या लोभ आने से हिंसा में प्रवृत्त हो जाता है। शास्त्र में कहा गया है कि जैसा संवेदन तुमने दूसरे को कराया है, वही संवेदन तुम्हें करना पड़ेगा। व्यक्ति हिंसा करता है तो यह सोचे कि इस जीव के प्राण हनन करने पर इसे कैसा संवेदन होगा? कितना दुःख होगा? यदि मैं आज इस जीव को मारूंगा तो कभी मुझे भी वैसी ही संवेदना करनी पड़ेगी। इसलिए यही श्रेयस्कर है कि मैं इस प्रकार प्राणी की हत्या न करूं। मैं संकल्पजा हिंसा न करूं।
व्यक्ति जैसा करता है, वैसा ही उसे भोगना होता है। इस बात को ध्यान में रखते हुए हिंसा और हत्या से बचने का प्रयास करना चाहिए। छोटे-छोटे कार्य भी हम करते हैं वे रिकॉर्ड होते हैं और उनका परिणाम हमें भुगतना होता है। साधु जिन्दगी भर के लिए अहिंसा महाव्रत स्वीकार करता है। अनजाने में भी किसी प्राणी की साधु से हिंसा न हो जाए, यह जागरूकता रखता है। भोजन पकाना नहीं, पकवाना नहीं, पैदल चलना, मुख वस्त्रिका, रजोहरण, आदि अहिंसा के पालन के लिए ही रखे जाते हैं।
गृहस्थों के लिए हिंसा से पूर्णतया बचना बहुत मुश्किल है, उसे कई ऐसे सांसारिक कार्य करने पड़ते हैं जिनमें हिंसा होती है। कभी आत्म रक्षा या देश रक्षा के लिए भी हिंसा करनी पड़ सकती है। परन्तु गृहस्थों को संकल्पजा हिंसा से बचने का प्रयास करना चाहिए। गृहस्थ जीवन में हिंसा, चोरी, छल-कपट से बचने का प्रयास करना चाहिए। दुःख की उत्पत्ति का एक कारण हिंसा है, जहां अहिंसा होगी वहां शान्ति रहेगी किसी प्रकार का भय नहीं रहेगा। अतः जहां तक हो सके जीवन में ईमानदारी, नैतिकता व अहिंसा के पालन का प्रयास करना चाहिए। न्यायालय में किसी के विरूद्ध झूठी गवाही नहीं देनी चाहिए क्योंकि व्यक्ति जो भी कार्य करता है, उसे वैसा ही फल भोगना होता है। अतः व्यक्ति को अधिक से अधिक पापों से बचने और स्वयं के कल्याण का प्रयास करना चाहिए।
पूज्य प्रवर की अमृत देशना से पूर्व पश्चात् साध्वीवर्या श्री संबुद्धयशा जी ने उद्बोधन प्रदान करते हुए कहा कि आत्म निरीक्षण, अध्यात्म निष्ठा का एक महत्त्वपूर्ण घटक तत्त्व है। आत्म निरीक्षण करना, स्वयं को देखना बहुत कठिन कार्य है। आत्म निरीक्षण से हम हमारा भीतरी सौन्दर्य निखार सकते हैं, अपना स्वयं का परिष्कार कर सकते हैं, अपना आत्म विकास कर सकते हैं। पांच बिन्दुओं से हम अपने दोषों का परिष्कार कर सकते हैं, ये पांच बिन्दु हैं - संकल्प, शमन, संकल्प का स्मरण, प्रतिक्रमण और जागरण। हमें आत्म निरीक्षण के इन बिन्दुओं को जीवन में उतार कर अपने दोषों का परिष्कार करना चाहिए।