गुरुवाणी/ केन्द्र
मन को संयम में रखने का हो प्रयास : आचार्यश्री महाश्रमण
वीतराग साधक महातपस्वी युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने नवरात्र के आध्यात्मिक अनुष्ठान के संदर्भ में मंगल मंत्रों का जप करवाया। आज मुख्य प्रवचन कार्यक्रम के दौरान पंजाब के राज्यपाल एवं चण्डीगढ़ के उपराज्यपाल गुलाबचन्द कटारिया पूज्य गुरुदेव की सन्निधि में उपस्थित हुए। राज्यपाल महोदय के आगमन के पश्चात राष्ट्रगान का संगान हुआ। तत्पश्चात् ज्ञान की धारा बहाते हुए आचार्यश्री महाश्रमणजी ने ‘आयारो’ आगम के माध्यम से अमृत देशना प्रदान करते हुए कहा कि हमारे जैन श्वेतांबर तेरापंथ धर्मसंघ में बत्तीस आगम मान्य हैं। इनमें ग्यारह अंग हैं और अंग आगमों में प्रथम आगम है – आचारंग। इस आगम में भगवान महावीर की अति संक्षिप्त जीवनी है और फिर दर्शन, सिद्धांत और अध्यात्म की बातें हैं। आयारो आगम के पांचवें अध्याय में कहा गया है कि मन को असंयम में नहीं ले जाना चाहिए। दुनिया में दो तत्त्व हैं – जीव और अजीव। हमारे जीवन में दो ही तत्त्व हैं: एक जीव अर्थात् आत्मा और दूसरा अजीव अर्थात् शरीर। आत्मा जब तक शरीर में रहती है, तब तक जीवन होता है और आत्मा के शरीर से पृथक हो जाने की प्रक्रिया ही मृत्यु कहलाती है। इस प्रकार आत्मा और शरीर का संयुक्त रूप हमारा जीवन है।
इस जीवन में शरीर के साथ-साथ वाणी और मन भी होते हैं। मन एक ऐसा तत्त्व है जो सामने स्पष्ट दिखाई नहीं देता, जबकि वाणी स्पष्ट हो जाती है, ज्ञात हो जाती है। यद्यपि मन:पर्यव ज्ञानी दूसरों के मन के पर्यायों को भी जान सकता है। मन भी सब प्राणियों के पास नहीं होता; संज्ञी प्राणियों, देवताओं, नारकों के पास मन होता है। यहां शास्त्र में कहा गया है कि आदमी को अपने मन को बुरे कार्यों में लगने से बचाने का प्रयास करना चाहिए। जितने भी अपराध या गलत कार्य होते हैं, उनमें मन का भी बड़ा महत्वपूर्ण योगदान होता है। इसलिए आदमी को अपने मन को संयम में रखने का प्रयास करना चाहिए। मन को सर्वाधिक गतिशील कहा गया है। मन में बुरे विचार न आएं, चंचलता ज्यादा न आए, इसका प्रयास करना चाहिए।
प्रेक्षाध्यान की साधना में भी मन की चंचलता कम करने और मन को राग-द्वेष से मुक्त रखने का प्रयास करना चाहिए। दूसरों के साथ हमारा व्यवहार अहिंसात्मक हो, सद्भावनापूर्ण होना चाहिए। आदमी जो भी कार्य करे, उसमें ईमानदारी रखने का प्रयास करना चाहिए। इसके साथ ही नशीली चीजों के सेवन से बचना चाहिए।आचार्यश्री के पास बैठे राज्यपाल महोदय श्री कटारिया एवं उनके सुरक्षा अधिकारी द्वारा मुखवस्त्रिका लगाई गई थी। आचार्यप्रवर ने इस संदर्भ में कहा कि राज्यपाल महोदयों का अनेकों बार आगमन हुआ है, परन्तु कार्यक्रम के दौरान मुखवस्त्रिका लगाकर बैठने का यह संभवतः पहला अवसर है और यह बहुत बड़ी बात है। हम सभी आत्मकल्याण की दिशा में आगे बढ़ें।
पंजाब के राज्यपाल गुलाबचंद कटारिया ने अपनी श्रद्धासक्ति भावाभिव्यक्ति देते हुए कहा कि मैं परम पूज्य आचार्यश्री महाश्रमणजी को सादर वंदन करता हूं। आज मेरे पुण्य का उदय है जो आपकी वाणी सुनने का अवसर प्राप्त हुआ और आपने कम समय में ही आत्मा, मन, संयम और वाणी के तत्त्व को समझा दिया। साधु-साध्वियां भगवान महावीर की वाणी को जन-जन तक पहुंचाने का कार्य कर रहे हैं। मेरा सौभाग्य रहा है कि मुझे आचार्यश्री तुलसी और आचार्यश्री महाप्रज्ञजी के चरणों में बैठने का अवसर मिला। ये राज्यपाल, मंत्री पद तो जीवन में आएगा, जाएगा, लेकिन मैं ऐसे गुरुओं का श्रावक हूं, यह मुझे अगले जीवन में मिलेगा या नहीं, मैं नहीं जानता। आपकी वाणी बहुत ही प्रभावशाली होती है और दिल को छूने वाली है।
मैं आपसे ऐसा आशीर्वाद मांगता हूं कि मैं राजनीति के रास्ते पर हूं, लेकिन मरते दम तक आपके श्रावक के रूप में अपने धर्म का पालन करता रहूं। राज्यपाल महोदय ने आचार्य प्रवर से चण्डीगढ़ में चातुर्मास हेतु प्रार्थना की। पूज्य प्रवर के मंगल प्रवचन से पूर्व और जप अनुष्ठान के पश्चात् साध्वीवर्या श्री सम्बुद्धयशाजी ने अपने उद्बोधन में कहा कि हम धर्म की क्रियाएं तो कर रहे हैं, परन्तु हमारे भीतर अहिंसा, करुणा, सत्यनिष्ठा आदि मूल्य हैं या नहीं, यह विचारणीय है। हमारी धार्मिकता में वास्तविकता हो, इसके लिए हमें भगवान महावीर के तीन मुख्य सिद्धांतों – अहिंसा, अपरिग्रह और अनेकान्त को आत्मसात करना होगा। अहिंसा के संदर्भ में जानकारी देते हुए कहा कि जीवों का प्राण-हनन ही हिंसा नहीं है, बल्कि अनेक ऐसे कार्य हैं जो हिंसात्मक होते हैं। हमें जागरूकता रखते हुए अहिंसा का पालन करने का प्रयास करना चाहिए। तेरापंथ प्रोफेशनल फोरम द्वारा 9वें डॉक्टर सम्मेलन का आयोजन किया गया। इस संदर्भ में डॉ. धीरज मरोठी, डॉ. चेतन, डॉ. अनिल जैन ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी। आचार्यश्री ने मंगल आशीष प्रदान किया। राष्ट्रगान के साथ कार्यक्रम का समापन हुआ। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेशकुमार जी ने किया।