अनाग्रह का अभ्यास करने से हो सकती है सत्य की आराधना : आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

कोबा, गांधीनगर। 22 सितम्बर, 2025

अनाग्रह का अभ्यास करने से हो सकती है सत्य की आराधना : आचार्यश्री महाश्रमण

आश्विन शुक्ला प्रतिपदा, सोमवार का दिन, शारदीय नवरात्रा का प्रारंभ। अहमदाबाद के कोबा स्थित प्रेक्षा विश्व भारती परिसर में जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्म संघ के वर्तमान अधिशास्ता अखण्ड परिव्राजक, महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमणजी की पावन सन्निधि में नवरात्र के संदर्भ में नवाहिक आध्यात्मिक अनुष्ठान का प्रारंभ हुआ। परम पूज्य आचार्यश्री ने विशाल जन समूह के बीच मंगल मंत्रों का समुच्चारण करते हुए जप किया। जप अनुष्ठान के पश्चात् आचार्यवर ने ‘आयारो’ आगम के माध्यम से अमृत देशना प्रदान करते हुए फरमाया कि जो व्यक्ति मध्यस्थ होता है, अनाग्रही होती है, निष्पक्ष होता है, वही व्यक्ति सच्चाई की अच्छी आराधना करने में सफल हो सकता है। जहां पक्षपात और आग्रह का भाव आ जाता है, वहां व्यक्ति सच्चाई से दूर रह सकता है। संस्कृत में कहा गया कि मध्यस्थ व्यक्ति का मन रूपी बछड़ा युक्ति रूपी गाय के पीछे-पीछे चलता है। दुराग्रह रूपी बन्दर उस बछड़े की पूंछ खींचता है। अर्थात् मध्यस्थ व्यक्ति का मन जो न्यायपूर्ण है, युक्ति संगत है, उसका अनुगमन करता है, परन्तु जहां दुराग्रह आ जाता है, वह उस युक्ति को भी अपनी बात को सिद्ध करने के लिए, अपनी ओर खींचता है। अतः यदि किसी मध्यस्थ भाव रखने वाले व्यक्ति को कोई दुराग्रही व्यक्ति मिल जाए तो उसे भी मध्यस्थ भाव, सच्चाई का भाव रखने के लिए प्रेरित करना चाहिए।
सच्चाई के प्रति निष्ठा रखने वाले व्यक्ति, मध्यस्थ भाव रखने वाले व्यक्ति महान होते हैं। वे युक्ति संगत बात का समर्थन करते हैं, किसी प्रकार का आग्रह नहीं रखते। अपनी मान्यता अपने स्थान पर है, परन्तु जो विचार समीक्षापूर्वक सही की स्थिति में आए, औचित्य की स्थिति में आए, उसे सम्मान देना चाहिए। मध्यस्थ भाव रखते हुए अपनी प्रतिभा का सदुपयोग करने का प्रयास करना चाहिए। अनाग्रह भाव से किया गया चिन्तन और निर्णय फलदायी हो सकता है। आचार्यश्री ने कहा कि आध्यात्मिक अनुष्ठान का यह क्रम गणाधिपति गुरुदेव श्री तुलसी के समय से लगातार चल रहा है। व्यक्ति को इसके माध्यम से, मुख्य रूप से अपनी आत्मा के कल्याण का प्रयास करना चाहिए।
पूज्य गुरुदेव की पावन सन्निधि में आज अमृतवाणी के वार्षिक अधिवेशन का मंचीय उपक्रम हुआ। इस संदर्भ में अमृतवाणी के अध्यक्ष ललित दूगड़ व मंत्री अशोक पारख ने अपनी अभिव्यक्ति दी। अमृतवाणी के उपाध्यक्ष पन्नालाल पुगलिया ने अमृतवाणी द्वारा आयोजित ‘स्वर संगम’ के ग्रान्ड फिनाले के सम्बन्ध में जानकारी दी। इस संदर्भ में आचार्यश्री ने पावन प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि परम पावन आचार्यश्री तुलसी के समय में हमारे धर्म संघ में कई नवीन उन्मेष आए थे। जैन विश्व भारती में अमृतवाणी का भवन है। जहां हमारे गुरुओं की वाणियां सुरक्षित है। गुरुकुल वास में अमृतवाणी बारह ही महीने साथ चलता है। इस संस्था के द्वारा अच्छा धार्मिक-आध्यात्मिक कार्य होता रहे। डॉ. प्रेमसुख मरोठी ने अपनी कविता संग्रह की पुस्तक ‘ब्रह्मकमल’ आचार्यश्री के समक्ष लोकार्पित करते हुए अपनी भावाभिव्यक्ति दी। आचार्यश्री ने इस संदर्भ में मंगल आशीर्वाद प्रदान किया। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेशकुमार जी ने किया।