पर्युषण महापर्व के उपलक्ष्य में विविध आयोजन

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पर्युषण महापर्व के उपलक्ष्य में विविध आयोजन

साध्वी संघप्रभा जी के सान्निध्य में पर्वाधिराज पर्युषण महापर्व का कार्यक्रम उल्लासपूर्ण वातावरण में आयोजित किया गया। केंद्र द्वारा निर्धारित दिवसों एवं विषयों के आधार पर प्रतिदिन साध्वीवृंद के क्रमशः प्रेरक प्रवचन एवं महिला मंडल द्वारा प्रस्तुत किए गए सुमधुर भावपूर्ण गीत सराहनीय रहे। खाद्य संयम दिवस एवं जयाचार्य निवारण दिवस पर साध्वी संघप्रभा जी ने अपने उद्बोधन में कहा कि पर्युषण उत्कृष्ट धर्म आराधना, आत्म प्रक्षालन एवं ग्रंथि विमोचन का ऐसा महापर्व है जो मानव मन को नई दिशा देता है। उन्होंने कहा कि खाद्य संयम के बिना कोई भी साधक आत्मशुद्धि के पथ पर अग्रसर नहीं हो सकता। जयाचार्य ने इसी तप के बल पर अपनी प्रज्ञा जगाकर साढ़े तीन लाख पद्यों की रचना की। साध्वी प्रांशुप्रभा जी ने खाद्य संयम की महत्ता को उजागर करते हुए कहा कि भोजन हमारे जीवन की अनिवार्य आवश्यकता है, किन्तु हित, मित, ऋत और अनासक्त भाव से शांत मन रखकर प्रकाशयुक्त स्थान में भोजन करने वाला व्यक्ति जीवों की विराधना से बच जाता है और स्वस्थ भी रह सकता है। साध्वी सोमश्री जी ने जयाचार्य के जीवन के कई प्रभावक प्रसंग सुनाए।
स्वाध्याय दिवस पर साध्वी संघप्रभा जी ने कहा कि केवल पुस्तकें पढ़कर डिग्रियां हासिल करना ही पर्याप्त नहीं है, वास्तविक स्वाध्याय वही है जिससे विवेक चेतना का जागरण होता है। साध्वी सोमश्री जी ने स्वाध्याय को मुक्ति का द्वार बताते हुए कहा कि इसके माध्यम से भटकता हुआ इंसान अपनी मंजिल प्राप्त कर लेता है। साध्वी प्रांशुप्रभा जी ने मुक्तकों द्वारा स्वाध्याय को स्वदर्शन का अमोघ उपाय बताया। साध्वीश्री ने भगवान महावीर के सत्ताईस भवों की रोमांचक यात्रा का वर्णन भी प्रारंभ किया।
सामायिक दिवस पर साध्वी संघप्रभा जी ने कहा कि सामायिक में सर्व सावद्ययोग का प्रत्याख्यान वस्तुतः निषेधात्मक भावों से विरत होकर सकारात्मकता की ओर अग्रसर होना है। साध्वी प्रांशुप्रभा जी ने अभिनव सामायिक का प्रयोग कराते हुए श्रुत, सम्यक्त्व एवं चारित्र सामायिक का वर्णन किया। वाणी संयम दिवस पर साध्वी संघप्रभा जी ने अपने प्रवचन में कहा कि गम्भीर, उत्कृष्ट और महान व्यक्तित्व का परिचायक है वाणी संयम। वाणी संसार की वह अद्भुत शक्ति है जो परिवार, समाज और राष्ट्र को जोड़ने का आधार बनती है। साध्वीश्री ने वाणी के सम्यक उपयोग पर बल देते हुए भगवान महावीर के पूर्व भवों के जीवन प्रसंगों का रोमांचक वर्णन किया। साध्वी सोमश्री जी ने वाणी को व्यक्ति के चरित्र की पहचान बताते हुए अल्पभाषी, मधुरभाषी और सत्यभाषी बनने की प्रेरणा दी।
अणुव्रत चेतना दिवस पर साध्वी संघप्रभा जी ने कहा कि भारतीय संस्कृति व्रतों की संस्कृति रही है। हर धर्म में किसी न किसी रूप में व्रतों की आराधना का विधान है। जैन धर्म में श्रावक के बारह व्रत बताए गए हैं, जिनका मूल ध्येय असीमित भोगाकांक्षाओं का परिसीमन कर संयममय जीवनशैली को अपनाना है। साध्वी प्रांशुप्रभा जी ने अणुव्रत के ग्यारह नियमों की व्याख्या करते हुए श्रावक समाज को चरित्रनिष्ठ, प्रभाणिक, नशामुक्त और नैतिक जीवन जीने का सरल मार्ग बताया।जप दिवस पर साध्वी संघप्रभा जी ने कहा कि जीवन में बदलाव लाने का महत्वपूर्ण सूत्र है जप। जप करते समय साधक को अपने इष्ट और लक्ष्य के साथ तादात्म्य जोड़ना चाहिए तथा धनीभूत श्रद्धा, दृढ़ संकल्प और मन की एकाग्रता के साथ जप करना चाहिए। साध्वी प्रांशुप्रभा जी ने वाचिक और मानसिक जप की व्याख्या करते हुए विशेष रूप से नमस्कार महामंत्र और लोगस्स के जप को कठिन परिस्थितियों से उबरने का माध्यम बताया।
ध्यान दिवस पर साध्वी संघप्रभा जी ने कहा कि ध्यान बाहरी चंचलता से हटकर अंतर्मुखी होने का विशिष्ट प्रयोग है, जिससे आत्मशक्तियों का विस्फोट और अतीन्द्रिय चेतना का जागरण होता है। साध्वी प्रांशुप्रभा जी ने आत्मसाक्षात्कार प्रेक्षाध्यान को गीत के मधुर स्वर में प्रस्तुत कर वातावरण को ध्यानमय बना दिया। साध्वी सोमश्री जी ने ध्यान का प्रयोग कराते हुए आगम का उपदेश दिया। साध्वी संघप्रभा जी ने भगवान महावीर की भवयात्रा की अंतिम कड़ी का वर्णन करते हुए तीर्थंकर गोत्र उपार्जन के बीस कारणों का उल्लेख किया।
संवत्सरी महापर्व के अवसर पर स्थानीय तेरापंथ महिला मंडल भवन में कार्यक्रम का शुभारंभ साध्वीश्री द्वारा मंगल सूत्रों के संगान से हुआ। साध्वी संघप्रभा जी ने अपने उद्बोधन में भगवान महावीर के 27वें भव के साधनाकाल के भीषण उपसर्गों का रोमांचकारी वर्णन किया और संवत्सरी के इतिहास सहित इस दिन को उपवास, पौषध और प्रतिक्रमण द्वारा आत्मनिरीक्षण के पर्व के रूप में मनाने की प्रेरणा दी। अपराह्न सत्र में उन्होंने जैन धर्म के आचार्यों और जैन शासन के गौरवशाली इतिहास को प्रस्तुत किया। साध्वी सोमश्री जी ने तीर्थंकरों के जीवन चरित्र एवं आचार्य अकलंक और आचार्य जिनदत्तसूरी के प्रसंग सुनाए। साध्वी प्रांशुप्रभा जी ने महासती चंदनबाला का जीवन वृत्त भावपूर्ण शैली में प्रस्तुत करते हुए शील की महिमा का गायन किया और तेरापंथ के ग्यारह आचार्यों तथा प्रमुख साध्वियों की जीवन गाथा का वर्णन किया। महिला मंडल की बहनों ने 'यह संवत्सर का पर्व सुहाना सबको भाया रे' गीत प्रस्तुत कर कार्यक्रम को और भव्य बनाया।
क्षमापना दिवस पर साध्वी संघप्रभा जी ने कहा कि क्षमा चित्त की निर्मलता, हृदय की सरलता और आत्मा की उज्ज्वलता की महत्वपूर्ण निष्पत्ति है। क्षमा वह औषधि है जो भीतर के गहरे घावों को भी भर सकती है। खमत-खामणा महज शब्द उच्चारण नहीं, बल्कि भावों की पवित्रता का झरना है जिसमें जन्म-जन्मांतरों का वैर भी घुल जाता है। साध्वी प्रांशुप्रभा जी ने क्षमा को वीरों का आभूषण बताया और साध्वी सोमश्री जी ने इतिहास के कई उदाहरण प्रस्तुत किए। इस अवसर पर तेरापंथ सभा अध्यक्ष लक्ष्मीपत सुराना, महिला मंडल की ओर से प्रभा देवी सुराना व मंजुदेवी दुग्गड़ तथा ब्राह्मण समाज की ओर से बजरंगलाल जोशी ने अपने विचार व्यक्त किए। कार्यक्रम में साध्वी वृंद और श्रावक समाज ने परस्पर सामूहिक क्षमायाचना कर वातावरण को मंगलमय बना दिया। विशेष आध्यात्मिक उपक्रमों के अंतर्गत साध्वीश्री की प्रेरणा से घर-घर नमस्कार महामंत्र का जप तथा 'ॐ भिक्षु' का सवा लाख जप सम्पन्न हुआ।
पर्युषण में भाईयों द्वारा रात्रिकालीन तथा बहनों द्वारा दिवसकालीन अखंड जप उल्लेखनीय रहा। प्रतिदिन सामूहिक प्रतिक्रमण में भी अच्छी उपस्थिति रही। इसके अतिरिक्त जयाचार्य वर्णाक्षरी, गीताक्षरी, अंताक्षरी, काव्य संध्या, संस्मरण गोष्ठी और कथा गोष्ठी जैसे विविध सांस्कृतिक एवं आध्यात्मिक कार्यक्रम आयोजित हुए। तपस्या एवं पौषध-आवास, मौन साधना, ध्यान साधना, सामायिक साधना आदि के अनेक उपक्रम भी संपन्न हुए।