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पर्युषण महापर्व के उपलक्ष्य में विविध आयोजन
पर्युषण महापर्व के अवसर पर मुनि आकाशकुमार जी ने भगवान ऋषभदेव के बारे में विस्तार से जानकारी दी तथा बताया कि सृष्टि के आदिक्रम में लोग कल्पवृक्ष पर आश्रित थे। उस समय भगवान ने लोगों के लिए असि, मसि और कृषि का प्रवर्तन किया, लिपि और ज्ञान का विकास किया। मुनिश्री ने भगवान महावीर के 27 भवों का भी विस्तार से विवेचन करते हुए कहा कि उन्हें नयसार के भव में सम्यक्त्व की प्राप्ति हुई और उनके जीवन में अनेक उतार-चढ़ाव आए। कभी वे वासुदेव बने, कभी चक्रवर्ती, कभी सिंह, कभी नरक या देव गति में रहे। अंततः प्रवर पुरुषार्थ से समस्त कर्मों का क्षय कर वे सिद्ध, बुद्ध और मुक्त बने।
मुनि हितेन्द्रकुमार जी ने तेरापंथ के आचार्यों के बारे में रोचक जानकारी दी। उन्होंने बताया—आचार्य भिक्षु की क्रांति और अनुशासन, आचार्य भारमल जी की विनम्रता, आचार्य रायचंद जी की साधना, आचार्य जीतमल जी की स्थिरता, साधना और रचनाएँ, आचार्य मघवा की कोमलता, आचार्य माणक की निष्पृहता, आचार्य डालचंद की तेजस्विता, आचार्य कालूगणी का वात्सल्य, आचार्य तुलसी की विकासमुखी दृष्टि और संघर्षों में तपकर स्वर्णवत निखरने की क्षमता, आचार्य महाप्रज्ञ की करूणा और ज्ञान, तथा आचार्य महाश्रमण जी में पूर्वाचार्यों के सभी गुणों का समावेश। कार्यक्रम में गंगावती की दीक्षार्थी प्रेक्षा कोचर ने दिवस के गीत प्रस्तुत किए और संस्था के बारे में विस्तार से जानकारी दी। उन्होंने संस्था के उद्भव से लेकर अब तक के सर्वांगीण विकास पर प्रकाश डाला। संवत्सरी के उपलक्ष्य में तेरापंथ सभा अध्यक्ष महावीर बागेरचा, तेयुप और तेरापंथ महिला मंडल आदि ने अपनी-अपनी प्रस्तुतियाँ दीं। पर्युषण के दौरान तपस्याओं की विशेष बहार रही। सकल जैन समाज ने मिलकर लगभग 50 से 100 से अधिक उपवास किए। 15 से अधिक अठाई और नौ की तपस्याएँ हुई। पौषध करने वालों की संख्या लगभग 30 रही।