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32वें विकास महोत्सव पर सजीव हुयी आचार्य श्री तुलसी की स्मृतियां
विकास महोत्सव के अवसर पर 'शासनश्री' साध्वी कंचनप्रभाजी ने अपने उद्गार व्यक्त करते हुए कहा कि 31 वर्ष पूर्व आज के ही दिन आचार्य श्री तुलसी ने फरमाया था – 'मुझे संत तुलसी कहें, आचार्य तुलसी नहीं, क्योंकि मैंने आचार्य पद का विसर्जन कर युवाचार्य महाप्रज्ञजी को आचार्य पद पर प्रतिष्ठित कर दिया है।' इस पर आचार्य महाप्रज्ञजी ने निवेदन किया – 'नहीं गुरुदेव! हम आपका पाट महोत्सव विकास महोत्सव के रूप में मनाएंगे।' साध्वीश्री ने कहा कि यह प्रसंग तेरापंथ धर्मसंघ के गौरवशाली इतिहास का स्वर्णिम अध्याय है। उन्होंने आगे कहा कि आचार्य श्री तुलसी ने पूरे भारतवर्ष की यात्रा कर जन-जन को नैतिकता और प्रामाणिकता का संदेश दिया। उनके द्वारा प्रदत्त अणुव्रत आचार संहिता के माध्यम से असाम्प्रदायिक धर्म की प्रतिष्ठा हुई, जो भारत की गरिमामय जीवनशैली का प्रतीक है। 'शासनश्री' साध्वी मंजुरेखाजी ने अपने विचार रखते हुए कहा कि आज जो विकास हम देख रहे हैं, वह महामना तुलसी की ही देन है। उन्होंने समय से पहले समय को पहचाना और आचार्यश्री महाप्रज्ञजी के विनय से एक नया इतिहास रचा। इस अवसर पर तेरापंथ युवक परिषद, महिला मंडल, साध्वी चेलनाश्रीजी, साध्वी उदितप्रभाजी और साध्वी निर्भयप्रभाजी ने भी दोनों गुरुओं के प्रति अपनी श्रद्धा व्यक्त की। महिला मंडल, युवक परिषद के सदस्यों, ख्याली भाई तातेड़, चन्द्रप्रकाश बोहरा, प्रकाश पोखरणा, राकेश बड़ाला, स्नेहलता पोखरणा, नरेन्द्र तातेड़ तथा हस्तीमल डांगी ने सुमधुर गीतों के माध्यम से भावनाएँ व्यक्त कीं। सभा में तपस्वी नीलेश मेहता के तप की अनुमोदना की गई। कार्यक्रम के अंत में आभार ज्ञापन सभा के मंत्री संजय सोनी ने किया।