223वाँ आचार्य श्री भिक्षु चरमोत्सव के उपलक्ष्य में विविध आयोजन

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223वाँ आचार्य श्री भिक्षु चरमोत्सव के उपलक्ष्य में विविध आयोजन

साध्वी रतिप्रभा जी के सान्निध्य में 223वां भिक्षु चरमोत्सव पुराना ओसवाल भवन में संपन्न हुआ। कार्यक्रम का शुभारंभ साध्वीवृंद द्वारा प्रस्तुत सुमधुर गीत से हुआ।साध्वी रतिप्रभा जी ने अपने प्रवचन में कहा कि सत्य का सूर्योदय तो हुआ, किंतु लोगों में उसके प्रति रुचि दिखाई नहीं दी। तब आचार्य भिक्षु ने स्वयं साधना में मन लगाया। बाद में मुनि थिरपाल जी और मुनि फतेहचंद जी की प्रेरणा से उन्होंने जनजागृति के प्रयास किए। आचार्य भिक्षु महासेतु थे। दृढ़ सिद्धांतवादी होने के बावजूद वे आग्रही प्रवृत्ति से मुक्त थे। निश्चय और व्यवहार दोनों को आधार मानकर उन्होंने सत्य और संगठन को जोड़ा और महावीर वाणी में सत्य की खोज की।
साध्वी कलाप्रभा जी ने कहा कि आचार्य भिक्षु जीवनभर कठिनाइयों के मार्ग पर चलते रहे और हमारे लिए सुंदर राजपथ का निर्माण कर गए, जिससे आज हम संयम के मार्ग पर साधना कर रहे हैं। वे जिनवाणी के पुजारी और तर्कशील वृत्ति के धनी थे, इसी कारण मार्ग आगे से आगे बनता गया। साध्वी मनोज्ञप्रज्ञा जी ने कहा कि आचार्य भिक्षु सत्य सिंधु थे। उन्होंने अपने जीवन को सत्य के लिए समर्पित कर दिया। कठिनाइयों और आंधी-तूफानों के बावजूद वे कभी सत्य मार्ग से विचलित नहीं हुए। अपने पौरुष से उन्होंने तेरापंथ संघ को ज्योतिर्मय किया। साध्वी पावनयशा जी ने कुशलतापूर्वक मंच संचालन करते हुए कहा कि आचार्य भिक्षु का जीवन सत्य, त्याग, तपस्या, संयम और आत्मानुशासन का अनुपम उदाहरण है। तेरापंथ महिला मंडल द्वारा समूह गीत प्रस्तुत किया गया। उपासक शांतिलाल भंसाली, सरिता, जिज्ञासा डोसी, मंडल अध्यक्ष ममता मेहता, मंत्री जयश्री सालेचा, मीना गोलेच्छा आदि ने मुक्तक, कविता और भाषणों के माध्यम से अपने आराध्य आचार्य भिक्षु के प्रति श्रद्धा व्यक्त की। रात्रि में 'एक शाम भिक्षु के नाम' धम्म जागरण का विशाल आयोजन हुआ।