तेरह दिवसीय प्रवास रहा प्रभावक

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हांगकांग।

तेरह दिवसीय प्रवास रहा प्रभावक

डॉ. समणी निर्देशिका ज्योतिप्रज्ञा जी एवं डॉ. समणी मानसप्रज्ञा जी का त्रयोदश दिवसीय प्रवास हांगकांग में अत्यंत प्रभावक रहा। समणी ज्योतिप्रज्ञा जी का प्रथम कार्यक्रम सकल जैन समाज के बीच भव्य स्टार हाउस में आयोजित हुआ। आपने ‘चतुर्विंशति स्तव’ अर्थात चौबीस तीर्थंकरों की स्तुति पर प्रवचन दिया और कहा कि तीर्थंकर धरती की सर्वोत्कृष्ट पुण्यात्मा का नाम है। चतुर्विंशति स्तवना से सम्यक्त्व की विशुद्धि होती है। आपने लोगस्स पाठ का गूढ़ विश्लेषण करते हुए बताया कि 'आरोग्गबोहिलाभं समाहिवरमुत्तमं दिंतु' इस एक चरण के जप से आठों कर्मों का क्षय संभव है।
डॉ. समणी मानसप्रज्ञा जी ने पर्युषण के अवसर पर बाह्य शुद्धि से अधिक अंतरंग शुद्धि पर बल देते हुए कहा कि वास्तविक सफाई आत्मा की आंतरिक मलिनताओं से होती है। पर्युषण महापर्व का प्रथम दिवस खाद्य संयम दिवस के रूप में मनाया गया। समणी ज्योतिप्रज्ञा जी ने आहार शुद्धि के महत्व पर प्रकाश डालते हुए कहा— 'गुड फूड, गुड मूड।' भोजन सात्विक होगा तो विचार भी सात्विक होंगे। आपने विशेष रूप से रात्रि भोजन त्याग की प्रेरणा दी। द्वितीय दिवस स्वाध्याय दिवस पर समणी ज्योतिप्रज्ञा जी ने आगम स्वाध्याय की प्रेरणा दी और कहा कि आगम श्रवण व पठन महानिर्जरा का हेतु है। आपने आवश्यक सूत्र प्रतिक्रमण की महत्ता बताते हुए समझाया कि यह अशुभयोग से शुभयोग की ओर, और विज्ञान से स्वभाव की ओर ले जाने वाला साधन है। भाई-बहिनों ने पंचरंगी स्वाध्याय किया।
तृतीय दिवस सामायिक दिवस के रूप में मनाया गया। स्थानकवासी समाज के मध्य आयोजित कार्यक्रम में समणी ज्योतिप्रज्ञा जी ने कहा— 'समता ही धर्म है, समता ही कर्म है।' क्रोध तन-मन को असंतुलित कर अधोगति का कारण बनता है, जबकि समता में ही जीवन का संतुलन संभव है। रात्रिकालीन कार्यक्रम में आपने बताया कि एक सामायिक से आठों कर्मों का क्षय संभव है। चतुर्थ दिवस वाणी संयम दिवस पर समणी ज्योतिप्रज्ञा जी ने कहा—'शब्द यात्रा करते हैं। पवित्र शब्द शत्रु को भी मित्र बना सकते हैं।' सॉरी कहने से ग्लोरी बढ़ती है और आत्मपरक गीतों की धुन जीवन को अंतर्मुखी बनाने में सहायक हो सकती है।
पंचम दिवस अणुव्रत दिवस पर आपने जैन धर्म की आधारशिला 'नव तत्व' का सुंदर विवेचन किया। आपने कहा कि संवर और निर्जरा ही आत्मकल्याण के हेतु हैं। संवर कर्मागमन को रोकता है और अणुव्रती बनना संवर की साधना का ही रूप है। जप दिवस पर 40 से अधिक भाई-बहिनों ने आचार्य भिक्षु की 300वीं जयंती के उपलक्ष्य में ‘भिक्खू स्याम’ के सवा लाख जप का संकल्प लिया। समणी ज्योतिप्रज्ञा जी ने ‘उपसर्गहर स्तोत्र’ का अनुष्ठान करवाया और उसका अर्थ व रहस्य समझाया।
सप्तम दिवस ध्यान दिवस पर कई तपस्वियों ने अठाई की तपस्या कर नया कीर्तिमान स्थापित किया। समणी जी ने दीर्घश्वास प्रेक्षा का महत्व बताते हुए कहा कि श्वास भोजन और जल से भी अधिक महत्वपूर्ण है। दीर्घश्वास प्रेक्षा तन को स्वस्थ, मन को प्रसन्न और आत्मा को निर्मल बनाती है। संवत्सरी के दिन पैंसठिया छंद का अनुष्ठान हुआ। आचार्य महाप्रज्ञ द्वारा रचित 'आत्मा की पोथी' का संगान हुआ। आपने कहा कि यह दिन आत्मचिंतन और क्षमायाचना का है। समणी मानसप्रज्ञा जी ने आचार्य वज्रस्वामी का रोचक इतिहास सुनाया, जबकि समणी ज्योतिप्रज्ञा जी ने सुलसा महासती का प्रसंग प्रस्तुत करते हुए प्रियधर्मा और दृढ़धर्मा बनने की प्रेरणा दी। समणी जी के प्रवास के दौरान लगभग सभी कार्यक्रम प्रोजेक्टर की सहायता से हुए, जो विशेष आकर्षण का केंद्र बने, प्रतिदिन ध्यान की कक्षाएं भी चली। प्रवास के अंतिम दिन अनेक श्रावक-श्राविकाओं ने समणीद्वय के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित की। प्रवास के सफल प्रबंधन में विकास बेगवानी एवं मंत्री धनपत बोरड़ का विशेष योगदान रहा।