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मृत्यु को महोत्सव मनाने की कला है जैन दर्शन में
संथारा साधिका तारा देवी बैद की स्मृति सभा में उद्बोधन देते हुए उग्रविहारी तपोमूर्ति मुनि कमल कुमार जी ने कहा कि संसार में जैन धर्म ही ऐसा धर्म है जो जीने की कला के साथ मरने की भी कला सिखाता है। मृत्यु को महोत्सव मनाने की कला केवल जैन दर्शन में ही है। मुनि श्री ने कहा कि जब व्यक्ति शरीर की नश्वरता को समझकर समता और शांति के साथ मृत्यु का वरण करता है, तब वह संथारे के माध्यम से जीवन का परम लक्ष्य प्राप्त करता है। इसमें न जीने की कामना होती है, न मरने की—केवल समभाव से आत्मा की उन्नति की भावना रहती है। संथारा वास्तव में मृत्यु की सर्वोत्तम कला है, जिससे मृत्यु भी महोत्सव बन जाती है। उन्होंने कहा कि तारा देवी धार्मिक, सेवाभावी, सादगीपूर्ण और कषाय रहित जीवन जीने वाली महिला थीं। उन्होंने उच्च मनोबल, समता और सहिष्णुता के साथ संथारा की साधना पूर्ण की। मुनि श्री ने उनकी आत्मा की मोक्षगामिता की कामना करते हुए एक लोगस्स का ध्यान करवाया।
बीकानेर निवासी माणकचन्द जतनदेवी आरी की सुपुत्री गंगाशहर निवासी रतनलाल केशर देवी बैद के सुपुत्र एवं मुनि कमलकुमार जी के संसार पक्षीय छोटे भाई विजयकुमार बैद की धर्मपत्नी संथारा साधिका श्राविका तारादेवी का अनशन दिनांक 29 सितम्बर 2025, सोमवार प्रातः 3:38 बजे सानंद संपन्न हुआ। उन्होंने 54 दिन की संलेखना तपस्या और 23 दिन के तिविहार अनशन की साधना की। 14 जुलाई 2025 को उन्होंने तपस्या का आरंभ किया था। 6 सितम्बर 2025 को उग्रविहारी तपोमूर्ति मुनि कमल कुमार जी ने सेवाकेन्द्र व्यवस्थापिका साध्वी विशदप्रज्ञा जी, साध्वी लब्धियशा जी तथा श्रावक-श्राविकाओं की उपस्थिति में तिविहार संथारे का प्रत्याख्यान करवाया था। मुनि श्री ने कहा कि तारादेवी ने अपने जीवन को धर्ममय बनाया। उन्होंने अपने सास-ससुर और 'शासनश्री' साध्वी सोमलता जी की अंतिम समय तक सेवा की, परिवार का आदर-सम्मान बनाए रखा और आत्मीय संबंधों की मिसाल कायम की।
मुनि श्री ने उनके जीवन को आदर्श बताते हुए कहा कि 'जीवन जीना एक कला है, तो मृत्यु भी अपने आप में एक कला है।' उन्होंने विजय कुमार जी बैद के धैर्य और श्रद्धा की प्रशंसा करते हुए कहा कि उन्होंने स्वाध्याय और प्रतिक्रमण के सहारे संथारे में निरंतर साधना का वातावरण बनाए रखा। इस अवसर पर मुनि श्रेयांस कुमार जी ने मुक्तकों के माध्यम से तारादेवी के संथारे की अनुमोदना की, तथा मुनि विमलविहारी जी ने मंगल भावना व्यक्त की। कार्यक्रम में परम पूज्य आचार्य श्री महाश्रमण जी एवं साध्वीप्रमुखा श्री विश्रुतविभा जी के पावन संदेश भी का भी वाचन किया गया। देशभर से साधु-साध्वियों के मंगल संदेश पहुंचे।
जैन श्वेताम्बर तेरापंथी सभा गंगाशहर से पवन छाजेड़, तेरापंथ न्यास से जैन लूणकरण छाजेड़, तेयुप से मांगीलाल बोथरा, महिला मंडल से प्रेम बोथरा, टीपीएफ से रतन छल्लाणी, अणुव्रत समिति से कन्हैयालाल बोथरा, नागरिक समिति से जतनलाल दूगड़ तथा शांति प्रतिष्ठान से धर्मेन्द्र डाकलिया ने अपने विचार व्यक्त किए। गायक मंडली ने भक्ति गीतों के माध्यम से श्रद्धा सुमन अर्पित किए। परिवार की ओर से ललिता देवी बोथरा, कान्ता देवी नाहटा, पुत्री वर्षा बेताला, नेमचंद जी चोपड़ा सहित अन्य सदस्यों ने तारा देवी के संथारे की अनुमोदना करते हुए सभी का आभार व्यक्त किया।