संयति, ज्ञान और अभय दान हैं लोकोत्तर दान : युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

कोबा, गांधीनगर। 05 अक्टूबर, 2025

संयति, ज्ञान और अभय दान हैं लोकोत्तर दान : युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमण

युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने ‘दान – एक विश्लेषण’ विषय पर ‘आयारो आगम’ के माध्यम से अपनी पावन देशना प्रदान करते हुए फरमाया कि दुनिया में कुछ वीर पुरुष होते हैं, वे विशेष पराक्रम करते हैं, संयम की साधना में प्रयत्नशील हो जाते हैं। अहिंसा, तप, संयम की साधना के लिए भी शूरवीरता की आवश्यकता हो सकती है। अहिंसा के साथ अभय हो, संयम के साथ निष्ठा हो और तपस्या के प्रति भी आकर्षण हो, और फिर पराक्रम होता है, तो व्यक्ति कहीं अध्यात्म की दृष्टि से पहुँच सकता है। दो मार्ग हैं – एक अध्यात्म का मार्ग और दूसरा भौतिकता का मार्ग। एक मोक्ष का मार्ग और दूसरा सांसारिकता का मार्ग।
दान एक ऐसा विषय है, जिसे हम आध्यात्मिक परिप्रेक्ष्य में भी देख सकते हैं और सामाजिकता, लौकिकता के संदर्भ में भी देख सकते हैं। वर्तमान में आचार्य भिक्षु का जन्म त्रिशताब्दी वर्ष चल रहा है। इस वर्ष का नाम ‘भिक्षु चेतना वर्ष’ दिया गया है। सामान्यतः दान का अर्थ है – दूसरों को कुछ देना। आगम में दान के दस प्रकार बताए गए हैं। हम संक्षेप में दान को विश्लेषित करें तो दान के तीन भाग बन सकते हैं – एक लोकोत्तर दान, दूसरा लौकिक दान और तीसरा गर्हणीय दान। एक शुद्ध साधु जो साधनाशील है, उसकी साधना में सहयोग के लिए यदि कोई गृहस्थ अपना भोजन, वस्त्र, पात्र आदि देता है, तो इसे धर्मदान के अंतर्गत संयति दान कहा गया है। यह लोकोत्तर दान है।
एक साधु या गृहस्थ किसी को धर्मोपदेश देता है, पापकर्मों से छुटकारा दिलाता है, इस प्रकार का ज्ञान देना भी लोकोत्तर दान है। एक व्यक्ति अभय दान देता है कि “मैं छः काय के किसी भी प्राणी को नहीं मारूँगा”, यह अभय दान है। इस प्रकार धर्मदान के तीन प्रकार – संयति दान, ज्ञान दान और अभय दान – लोकोत्तर दान हैं। किसी भूखे, प्यासे, निराश्रित को रोटी देना, पानी पिलाना, आश्रय देना, कपड़ा देना आदि जो दया-अनुकंपा से दिया जाता है, वह अनुकंपा दान है। इस प्रकार के दान से सामने वाले व्यक्ति को शारीरिक सुख मिल सकता है। यह लौकिक दान है, क्योंकि यह सांसारिक उपकार का कार्य है। यह रागानुबंध है, जो दो व्यक्तियों के बीच होता है और आगे अनेक जन्मों तक यह राग का अनुबंध चल सकता है। सुपात्र को दान देने से धार्मिक लाभ मिल जाएगा, परंतु किसी जरूरतमंद को देंगे तो यह दयालुता होगी। कभी मित्र को कुछ देते हैं, तो आपसी सद्भावना और प्रीति बढ़ती है।
 किसी शत्रु को कुछ देने से वैरभाव खत्म हो सकता है। नौकर-चाकर आदि को कुछ अतिरिक्त देने से उनमें भक्ति की भावना बढ़ सकती है। किसी राजा को कुछ देने से वह प्रसन्न हो सकता है। ये सभी दान व्यावहारिक दान हैं। निश्चय में इनसे पापकर्म का बंध भी हो सकता है। कभी व्यक्ति लज्जावश भी दे सकता है। संस्था को अनुदान देना आदि भी लौकिक दान हैं, परंतु इनमें भी यदि निष्काम भाव हो, नाम-ख्याति आदि की लालसा न हो, तो यह विशेष बात है। यह निष्कामता नितांत आध्यात्मिक चीज़ हो जाती है। लौकिक और लोकोत्तर दान की एक कसौटी यह हो सकती है कि जिस दान को देने से सामने वाले की आत्मा मोक्ष की ओर आगे बढ़ सके, वह दान लोकोत्तर दान है; और जिस दान को देने से सामने वाले को शारीरिक सुविधा या उपकार मिले, बाह्य सुख मिले, वह लौकिक दान होता है। जिस दान से दूसरे का प्रत्यक्ष विनाश होता है या कठिनाई होती है, वह गर्हणीय दान है।
पूज्य प्रवर के मंगल प्रवचन से पूर्व साध्वीप्रमुखा श्री विश्रुतविभाजी ने अपने उद्बोधन में कहा कि हर व्यक्ति सुख चाहता है। सुख के बारे में अलग-अलग मनीषियों ने अलग-अलग मंतव्य प्रस्तुत किए हैं। सुख दो प्रकार का हो सकता है – पौद्गलिक सुख और आत्मिक सुख। पौद्गलिक सुख अशाश्वत होता है, जबकि आत्मिक सुख वास्तविक और शाश्वत है। जो व्यक्ति अपनी इंद्रियों और मन का निग्रह करता है, वही सबसे अधिक सुखी होता है। आचार्यप्रवर के मंगल प्रवचन के उपरांत दीपिका बागरेचा ने अपनी अभिव्यक्ति दी। ज्ञानशाला ऑर्चिड ग्रीन के ज्ञानार्थियों ने अपनी प्रस्तुति दी। आचार्यश्री ने बच्चों को मंगल आशीर्वाद प्रदान किया।
अणुव्रत उद्बोधन सप्ताह के अंतर्गत नशामुक्ति दिवस के आयोजन के साथ ही अणुव्रत लेखक मंच सम्मेलन का भी आयोजन हुआ। इस संदर्भ में बिहार कैडर के एडीजी अमित लोढ़ा ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी। नशामुक्ति के संदर्भ में आचार्यप्रवर ने नशे से मुक्त रहने की प्रेरणा प्रदान की। अणुविभा के महामंत्री मनोज सिंघवी एवं निवर्तमान अध्यक्ष अविनाश नाहर ने अपनी अभिव्यक्ति दी। इस दौरान अणुव्रत लेखक मंच की ओर से वर्ष 2025 का ‘अणुव्रत लेखन पुरस्कार’ पद्मश्री रघुवीर चौधरी को प्रदान किया गया। रघुवीर चौधरी ने कृतज्ञता के भावों की अभिव्यक्ति दी। आचार्यश्री ने उन्हें मंगल आशीर्वाद प्रदान किया। अणुव्रत लेखक मंच के संयोजक जिनेंद्र कोठारी ने भी अपनी अभिव्यक्ति दी।