गुरुवाणी/ केन्द्र
निर्देश को करें ग्रहण, कृतार्थ और क्रियान्वित : आचार्यश्री महाश्रमण
प्रेक्षा विश्व भारती के वीर भिक्षु समवसरण में नवरात्रि के संदर्भ में आध्यात्मिक अनुष्ठान का क्रम हुआ। जैन श्वेतांबर तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशमाधिशास्ता महातपस्वी युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने मंगल मंत्रों के समुच्चारण से उपस्थित जनता को अनुष्ठान करवाया। अनुष्ठान की सम्पन्नता के पश्चात् ‘आयारो’ आगम के माध्यम से अमृत देशना प्रदान करते हुए परम पूज्य आचार्यवर ने फरमाया कि ‘मेधावी निर्देश का अतिक्रमण न करे’। जो तीर्थंकर को मानने वाले हैं, जिनशासन में दीक्षित हैं, उन्हें तीर्थंकर की आज्ञा के अनुसार चलना चाहिए, तीर्थंकर के निर्देश के उल्लघंन से बचना चाहिए।
प्रत्येक व्यक्ति की क्षमता अलग-अलग होती है। संतों के उपदेश, प्रवचन, आदि में श्रोता महाव्रतों की, वीतरागता की, कई बातें सुनते हैं, परन्तु जीवन में सभी बातों को आचरणों में ग्रहण करना कठिन होता है। परन्तु अपना आदर्श वही रखना चाहिए, जिससे उसके निकट जा सकें और कभी स्पर्श भी कर सकें तो यह बहुत अच्छी बात होगी। यदि जीवन में कोई आदर्श नहीं है तो व्यक्ति में पहुंचने की क्षमता होने पर भी वहां पहुंचने का प्रयास नहीं करता। कोई साधु है, मेधावी है तो वह तीर्थंकरों के उपदेश का अनुपालन करे, अतिक्रमण नहीं करे। किसी समुदाय या संगठन में भी प्रमुख, मुखिया निर्देश दें उसका पालन करना चाहिए। तीर्थंकरों के अभाव में जो महात्मा या आचार्य निर्देश दें उस निर्देश को शब्द से ग्रहण करें, आचरण से कृतार्थ करें और कर्म से क्रियान्वित करने का प्रयास करना चाहिए।
जो कार्य करणीय है, उसे करने का तथा जो कार्य अकरणीय हैं, उनसे बचने का प्रयास करना चाहिए। धर्मसंघ में इस बात का बहुत महत्त्व है। विहार, चातुर्मास के संबंध में आचार्य की आज्ञा पर ध्यान देना चाहिए। हमारे धर्मसंघ में यह व्यवस्था बहुत अच्छी प्रकार से चल रही है। आचार्यश्री के मंगल प्रचवन के पश्चात् मुनि मदन कुमार जी ने अपनी भावामिव्यक्ति दी। साध्वी संवरयशा जी ने पूज्य गुरुदेव से अठाई तप का प्रत्याख्यान किया। आचार्यश्री के मंगल सान्निध्य में प्रेक्षाध्यान का मंचीय
उपक्रम हुआ, जिसमें मोना साबद्रा, प्रेक्षा पोरवाल व विनीता बाबेल ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी। आचार्यश्री ने इस संदर्भ में कहा कि प्रेक्षाध्यान शिविर में ज्यादा धर्म-अध्यात्म का माहौल होता है, चारित्रात्माओं का सान्निध्य भी प्राप्त होता है। शिविर के बाद भी दैनिक जीवन में प्रेक्षाध्यान का प्रयोग चले, ऐसा प्रयास होना चाहिए। अखिल भारतीय तेरापंथ महिला मंडल की राष्ट्रीय अध्यक्ष सुमन नाहटा ने अपनी अभिव्यक्ति दी एवं गर्भ शिशु संस्कार ‘अंकुरम्’ के बैनर एवं लोगो को लोकार्पित किया। इस संदर्भ में साध्वीप्रमुखा श्री विश्रुतविभाजी ने अपना उद्बोधन प्रदान करते हुए कहा कि आज पूज्य गुरुदेव ने अपना प्रवचन इस वाक्य से प्रारंभ किया कि मेधावी निर्देश का अतिक्रमण न करें। आज तेरापंथ महिला मंडल की बहनों ने गुरुदेव के थोड़े से इंगित को बहुत कम समय में साकार रूप प्रदान कर एक बहुत अच्छा कार्य किया है। गर्भस्थ शिशु की मां, जिस वातावरण में रहती है, जिस आभा मंडल में रहती है, उसका शिशु पर बहुत प्रभाव पड़ता है। बहनें इन बातों का ध्यान रखते हुए इस कार्य को गति देकर संस्कारों के निर्माण पर चिन्तन करें। आचार्य प्रवर ने इस संदर्भ में कहा कि आज 'अंकुरम्' कार्यक्रम का आगाज हुआ है। मैंने कल्पना नहीं की थी कि इतने थोड़े समय में उस बात को आयाम के रूप में सामने ले आयेंगे। नई टीम द्वारा इस इंगित को व्यवस्थित रूप में लाने का प्रयास किया गया है, जिसकी चर्चा अभी कुछ दिन पूर्व अधिवेशन के समय की गई थी। इस संदर्भ में प्रेक्षाध्यान का भी उपयोग किया जा सकता है। आध्यात्मिकता का लाभ मां और किसी रूप में उसके बच्चे को भी मिले। अच्छे संस्कार को संप्रेषित करने का प्रयास हो और यह उपक्रम अच्छे ढ़ंग से चले। अणुविभा के महामंत्री मनोज सिंघवी ने अणुव्रत लेखक पुरस्कार 2025 के लिए रघुवीर चौधरी के नाम की घोषणा की।