आत्मलीन और इन्द्रियजयी ही कर सकता है आत्मा में रमण : आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

कोबा, गांधीनगर। 01 अक्टूबर, 2025

आत्मलीन और इन्द्रियजयी ही कर सकता है आत्मा में रमण : आचार्यश्री महाश्रमण

नव निधि के धारक युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी की मंगल सन्निधि में नवरात्रि के संदर्भ में आयोजित आध्यात्मिक अनुष्ठान की जप के साथ संपन्नता हुई। अनुष्ठान के उपक्रम के पश्चात् पूज्य प्रवर ने आयारो आगम के माध्यम से अमृत देशना प्रदान करते हुए फरमाया कि व्यक्ति आराम को जाने और आराम को जानकर आत्मलीन और इन्द्रियजयी रहे। आराम का एक अर्थ विश्राम भी होता है, परन्तु यहां आराम का अर्थ है तप, नियम, संयम, वैराग्य, परीषहोपसर्ग विजय में चारों ओर से अच्छी तरह रमण करना। सारांश रूप में आराम का अर्थ है - आत्मा में रमण करना।
व्यक्ति का पदार्थों में भी रमण होता है, लेकिन रुझान आत्मा में रमण का होना चाहिए। आत्मलीन और इन्द्रियजयी ही आत्मा में रमण कर सकता है। पांच ज्ञानेन्द्रियां हैं। इनके पांच विषय और पांच व्यापार हैं। इंद्रिय संयम के लिए अनावश्यक कार्यों से निवृत्ति और इन्द्रियों का आवश्यक उपयोग करना हो तो राग-द्वेष में नहीं जाना चाहिए। इस प्रकार हम इन्द्रियजयी बनने की साधना कर सकते हैं और इन्द्रिय विजयी बन सकते हैं। मनोज्ञ में राग और अमनोज्ञ में द्वेष की भावना आती है तो उससे कर्मों का बंधन होता है। खाने में अनुकूल मिल जाए तो प्रशंसा करना और अनुकूल न मिले तो उसकी निंदा करना क्रमशः राग और द्वेष की प्रवृत्ति होती है। यह रसनेन्द्रिय की साधना में कमी है। जैसा मिल जाए उसे सहजता से खा लेना रसनेन्द्रिय की साधना है।
जो व्यक्ति आत्मलीन होता है वह पदार्थों में आसक्त नहीं होता ओर पदार्थों में अनासक्ति होने से आत्मरमण की साधना में सहयोग मिल सकेगा। जैसे-जैसे हम आत्मरमण की ओर बढ़ते हैं, इन्द्रिय विषयों से आकर्षण समाप्त हो जाता है। ज्यों-ज्यों अनाकर्षण होता है त्यों-त्यों हमें उत्तम तत्त्व-आत्मरमण की उपलब्धि हो सकती है। रसनेन्द्रिय की भांति श्रोतेन्द्रिय का भी संयम करना चाहिए। जिन चीजों को सुनने से अलाभ हो, उनका संयम करना चाहिए, जिन चीजों को सुनने से लाभ मिले उसे सुनने का प्रयास करना चाहिए, इस प्रकार सुनने का संयम हो सकता है।
व्यक्ति को चक्षुरिन्द्रिय का भी संयम करना चाहिए। जो आवश्यक नहीं, उसे नहीं देखना चाहिए। आंखों से गुरु दर्शन हो, ग्रंथों को पढ़ने का प्रयास हो। ईर्या समिति में अच्छी प्रकार देख-देख कर चलना भी आंखों का अच्छा उपयोग है। घ्राणेन्द्रिय का भी संयम रखने का प्रयास करना चाहिए। कहीं सुगंध हो अथवा दुर्गन्ध, राग और द्वेष के भाव नहीं आने चाहिए। इसी प्रकार स्पर्श के प्रति भी समता का भाव होना चाहिए। हवा ठंडी या गर्म हो तो द्वेष का भाव नहीं लाना चाहिए। ज्यादा अनपेक्षित वैषयिक सुख पाने की कामना भी नहीं रखनी चाहिए। इस प्रकार आत्मा में रमण करना ही आराम है, इसे जानकर इन्द्रियों पर विजय पाने का प्रयास करना चाहिए।
परम पूज्य आचार्य प्रवर की मंगल सन्निधि में अणुव्रत उद्बोधन सप्ताह का शुभारंभ हुआ। इसका प्रथम दिवस अणुव्रत प्रेरणा दिवस एवं अणुव्रत गीत महासंगान के रूप में आयोजित हुआ। इस संदर्भ में अणुव्रत समिति की अध्यक्षा डिम्पल ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी। अणुव्रत समिति अहमदाबाद के सदस्यों ने गीत का संगान किया। अणुव्रत अनुशास्ता आचार्यश्री महाश्रमणजी ने कहा कि आज से अणुव्रत उद्बोधन सप्ताह प्रारंभ हुआ है। एक अक्टूबर से सात अक्टूबर का समय मानो अणुव्रत के लिए आरक्षित किया हुआ है। आचार्य तुलसी के समय अणुव्रत को व्यापकता प्राप्त हुई। यह आंदोलन 75 वर्ष पूर्ण कर आगे बढ़ रहा है। इस सप्ताह में अणुव्रत का खूब अच्छा प्रचार-प्रसार करने का प्रयास होना चाहिए। तेरापंथ सभा बैंगलोर से अध्यक्ष पारसमल भंसाली, मंत्री विनोद छाजेड़, माणकचंद संचेती और दीपक कातरेला ने अपनी अभिव्यक्ति दी। बैंगलोर ज्ञानशाला के ज्ञानार्थियों एवं प्रशिक्षिकाओं ने अपनी प्रस्तुति दी। बेंगलुरू ज्ञानशाला ने ज्ञानार्थियों ने भिक्षु अष्टकम की प्रस्तुति दी। आचार्य प्रवर ने ज्ञानार्थियों को मंगल आशीष प्रदान किया।