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सबसे बड़ी समाधि है स्वयं का बोध
साध्वी पुण्ययशाजी ने कहा- कोऽहं से सोऽहं की यात्रा का नाम है तप। स्वयं की खोज सबसे बड़ा तप है। स्वयं का बोध सबसे बड़ी समाधि है। निज की अनुभूति ही सर्वोत्तम साधना है। जिस दिन 'मैं कौन हूँ?' की खोज प्रारंभ होती है उस दिन संसार सीमित हो जाता है और सोऽहं अर्थात 'वह मैं हूं' की खोज (आत्मा) की पहचान होती है। अरिहंत और सिद्धों की जो आत्मा है वही मेरी आत्मा है। ऐसा दृढ़ निश्चय ही एक दिन मुक्ति का द्वार खोलता है। उक्त विचार व्यक्त करते हुए साध्वीश्री ने कहा- जैन दर्शन में तपस्या दिखाने के लिए नहीं निर्जरा के लिए की जाती है। साध्वीश्री के सान्निध्य में नेहा चौरड़िया ने पन्द्रह दिन की तपस्या के प्रत्याख्यान किये। सभाध्यक्ष राकेश छाजेड़ ने सम्पूर्ण समाज की ओर से तपस्वी बहन नेहा के तप की अनुमोदना एवं अभिन्दन किया। तप अभिनंदन के पश्चात आगम मंथन प्रतियोगिता के प्रभारी विकास दुगड़ ने आगम मंथन प्रतियोगिता का परिणाम बताते हुए सभी प्रतियोगियों को पारितोषिक देकर सबके उत्साह का वर्धन किया। साउथ कर्नाटक प्रभारी कंचन छाजेड़ ने सभी प्रतिभागियों को उत्साहित करते हुए आगे बढ़ने की प्रेरणा दी। राजराजेश्वरी नगर से तीन बहनों ने अखिल भारतीय स्तर पर तृतीय स्थान प्राप्त किया।