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ज्योतिर्मय जीवन का प्रेरणास्पद पर्व है-'दीपावली'
दीपावली का पर्व ज्योति का पर्व है, प्रकाश का पर्व है। भारतीय परम्परा में एक मात्र दीवाली का ऐसा पर्व है जो जन जीवन को अन्धकार से प्रकाश की ओर ले जाने वाला पर्व है। यद्यपि अन्धकार में कोई भी रहना नहीं चाहता, सबको ही प्रकाश प्रिय है। यह प्रकाश का पर्व सबको ज्योतिर्मय बनने की प्रेरणा देता है। जिस दिन हमारी अन्तर आत्मा पर आई हुई कर्मों की कालिमा दूर हट जाएगी, उस दिन शाश्वत और अन्तहीन आलोक जगमगा उठेगा। आज पूरा संसार अज्ञान के अन्धकार में भटक रहा है। "अज्ञानं खलु कष्टं" - अज्ञान कष्टकर है। आंतरिक अंधकार आदमी को चौरासी लाख जीव योनि में भटकाता रहता है।
दीपावली के अवसर पर लोग दीपकों की कतार से घरों को रोशन करते हैं। परन्तु मिट्टी के दीप जले तो क्या, न जले तो क्या, जीवन के दीप जलाओ तो दीवाली है। सचमुच मोह-माया के सघन अंधकार को मिटाकर ही आलोक प्रसारित किया जा सकता है। मिट्टी का एक प्रज्ज्वलित दीप सैकड़ों-हजारों दीपक जला सकता है, बशर्ते उसमें स्नेह (तेल) और बाती हो। यदि जीवन में ज्ञान का स्नेह और श्रद्धा की बाती हो तो वह आत्मदीप जलते ही भीतर का परमात्मा ज्योतित हो उठेगा।
भगवान महावीर का दिव्य भव्य जीवन चरित्र हर बार सुनने को मिलता है। राजमहलों में जन्म लेने वाला एक बालक राज्य वैभव को त्यागकर साधना के बीहड़ पथ पर चल पड़ता है। मौन तप और ध्यान साधना के द्वारा अज्ञान का पर्दा दूर हट जाता है और कैवल्य ज्ञान को प्रकट कर लेता है। वह अलौकिक पुरुष जनता-जनार्दन में धर्म ज्ञान के बीजों को वपन कर शान्ति का मार्ग प्रशस्त करता है। असीमित संग्रह वृत्ति, सत्ता प्राप्ति की लोलुपता, शस्त्रास्त्र की अंधी दौड़ में मानव खतरनाक मोड़ पर खड़ा है। इससे मानव जीवन को सुरक्षित रह पाना असंभव प्रतीत हो रहा है। यदि मानव को सुरक्षित और शान्तिमय जीवन जीना है तो उसे महावीर की अहिंसा और निःशस्त्रीकरण की नीति को अपनाना ही होगा।
कार्तिक कृष्ण अमावस्या की रात्रि अंधकार से प्रकाश, मृत्यु से अमरत्व, असत से सत् की ओर ले जाने वाली रात्रि है। भगवान महावीर निर्वाण, गणधर गौतम के केवलज्ञान वाली शुभ रात्रि है। सनातन परम्परा के श्रीराम के वनवास पूर्णता के पश्चात अयोध्या आगमन की रात्रि है। जीवन में आनन्द, हर्ष, उल्लास और आमोद-प्रमोद का संचार करने वाला दीपावली का पर्व अविद्या-अज्ञान के मूलोच्छेदन का पर्व है। किंतु जो लोग अनाप-शनाप अर्थ को खर्च कर आतिशबाजी करते हैं, वे असंख्य जीवों की हिंसा का कारण बनते हैं। वे वातावरण को प्रदूषित करते हैं। स्वास्थ्य की दृष्टि से शारीरिक, मानसिक व भावनात्मक नुकसान कर आत्मा को कर्मों से भारी बनाते हैं।
आज अपेक्षा है उस महाज्योति महावीर की स्मृति, स्तुति करें, उनके आदर्शों को जीवन में आत्मसात करें। जिससे व्यक्तिगत जीवन, पारिवारिक व स्वास्थ्य की दृष्टि से अच्छा रह सकेगा। प्यार व सौहार्द का वातावरण निर्मित होगा। सद्भाव व स्नेह बढ़ेगा। चैतन्य जागरण का दीप जलेगा। त्याग-वैराग्य भावना को बल मिलेगा। हमारे पर्व की आराधना का यही उद्देश्य है। अन्यथा दीप न जलता, लौ जलती है, आदर्शों की छाया में ही पापों की दुनिया पलती है - दीप न जलता, लौ जलती है। दीपावली का पर्व मानव मात्र, प्राणी मात्र के लिए सुख, शान्ति, आनन्द का हेतु बने।