यूनाइटेड किंगडम की यात्रा से हुई धर्म प्रभावना

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बर्मिंघम।

यूनाइटेड किंगडम की यात्रा से हुई धर्म प्रभावना

महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमण जी की शिष्याएं समणी सन्मतिप्रज्ञा जी और समणी जयन्तप्रज्ञा जी सात सप्ताह की बर्मिंघम (यूके) यात्रा पूर्ण कर लौट आईं। इस यात्रा का उद्देश्य था—जैन आश्रम में पर्युषण और दसलक्षण महापर्वों की आराधना कराना। समणीजी के सान्निध्य में 18 दिनों तक धर्म, तपस्या, प्रवचन, प्रतिक्रमण और ध्यान के कार्यक्रमों से जैन समाज में अध्यात्म की अलख जगी। विशेष रूप से ‘श्रावक प्रतिक्रमण’ और प्रेक्षाध्यान में लोगों की बड़ी रुचि रही।
इंग्लिश समाज में जैन वर्कशॉप
31 अगस्त 2025 को जैन आश्रम में स्थानीय इंग्लिश लोगों के बीच एक वर्कशॉप आयोजित हुई, जिसमें समणी सन्मतिप्रज्ञा जी और सुरेश राजपुरा (पूर्व शिक्षा अधिकारी, हिन्दू स्टडीज) मुख्य वक्ता रहे। समणीजी ने जैन धर्म की विशेषताओं और आचार पर प्रकाश डाला। उपस्थितजनों ने उत्साहपूर्वक प्रश्न किए और जैन जीवनशैली अपनाने के उपाय पूछे।
मैनचेस्टर में प्रवचन
7 सितम्बर को मैनचेस्टर जैन सेंटर में समणीद्वय ने लौकिक और लोकोत्तर दान, अहिंसा और दया पर प्रवचन दिया तथा अगले वर्ष जैन विश्व भारती में होने वाले योगक्षेम वर्ष में आने की प्रेरणा दी।
बर्मिंघम काउंसिल ऑफ फेथ्स सभा 8 सितम्बर को बर्मिंघम काउंसिल ऑफ फेथ्स की वार्षिक सभा जैन आश्रम में हुई। विभिन्न धर्मों के प्रतिनिधियों और गणमान्य व्यक्तियों की उपस्थिति में समणी सन्मतिप्रज्ञा जी ने कहा कि जैन धर्म सभी धर्मों की अहिंसा, सत्य और संयम की भावना का आदर करता है तथा अनेकांत दर्शन सम्मानजनक सह-अस्तित्व की प्रेरणा देता है। भारतीय वाणिज्य दूतावास के प्रतिनिधि ने भी सहभागिता की।
जैन दर्शन पर विश्वविद्यालय कांफ्रेंस
12 सितम्बर को बर्मिंघम यूनिवर्सिटी में जैन दर्शन पर अंतरराष्ट्रीय कांफ्रेंस के दूसरे सत्र का शुभारंभ समणीजी के नमस्कार महामंत्र से हुआ। समणीजी ने तेरापंथ परंपरा में साध्वी दीक्षा पर दृश्य प्रेजेंटेशन दिया। अमेरिका और यूरोप से आए विद्वानों ने जैन साध्वी जीवनशैली की सराहना की।
अहिंसा और अनेकांत पर प्रवचन
13 सितम्बर को समणीजी ने जैन धर्म के दो प्रमुख सिद्धांत—अहिंसा और अनेकांत—पर प्रवचन दिया। जामुन के पेड़ और हाथी-छः दृष्टा चित्रों के माध्यम से उन्होंने गहन विचार रखे। 150 से अधिक लोगों ने सहभागिता की।
अभिनव सामायिक और तप साधना
14 सितम्बर को बर्मिंघम जैन समाज के लिए अभिनव सामायिक का आयोजन हुआ। श्वेताम्बर और दिगम्बर दोनों समाजों के लोगों ने इसमें भाग लिया। समणी सन्मतिप्रज्ञा जी ने ‘नमस्कार महामंत्र: महामंत्र क्यों?’ विषय पर प्रवचन दिया, जिससे प्रेरित होकर कई लोगों ने मंत्रजप का संकल्प लिया। इस अवधि में अनेक तपस्याएं भी हुईं—ग्यारह उपवास, अठाई, तेला और एकासन सहित कुल लगभग 25 उपवास और 60 से अधिक एकासन हुए।
जैन समाज लेस्टर और लंदन प्रवास
लेस्टर जैन समाज के मध्य समणीजी ने ‘धर्म के दो रूप—सामान्य और विशेष धर्म’ पर विचार रखे। उन्होंने समाजोपयोगी और आत्मोपयोगी दान के महत्व को स्पष्ट किया। 21 सितम्बर को जैन विश्व भारती, लंदन में आयोजित मैत्री मिलन में समणी सन्मतिप्रज्ञाजी, समणी जयन्तप्रज्ञाजी, समणी मलयप्रज्ञाजी और समणी नीतिप्रज्ञाजी एक साथ उपस्थित हुईं, जिससे जैन समाज में उल्लास का वातावरण रहा।
समणीद्वय की सेवा भावना
समणीद्वय ने प्रवास के दौरान कई जैन और जैनेत्तर परिवारों से भेंट की, बीमारों को अस्पताल जाकर दर्शन दिए और धर्म की प्रेरणा दी। उन्होंने ग्लासगो, एडिनबर्ग और लीड्स में भी प्रवचन किए। ‘दैनिक जीवन में धर्म का आचरण कैसे करें’ विषय पर उनका प्रवचन विशेष रूप से प्रभावी रहा। जैन आश्रम, बर्मिंघम के चेयरमैन अरविंदर जैन ने कहा कि समणीद्वय के प्रवचन विषयों की नवीनता, शैली की सरलता और अंग्रेजी माध्यम की सहजता से जैन धर्म का प्रभाव अत्यंत बढ़ा है। हम आचार्य श्री महाश्रमण जी के प्रति कृतज्ञ हैं जिन्होंने समणीजी का यह प्रेरणादायी प्रवास बर्मिंघम के लिए प्रदान किया।