गुरुवाणी/ केन्द्र
आसक्ति के धागे को तोड़ने का हो प्रयास : आचार्यश्री महाश्रमण
अध्यात्म जगत के महासूर्य जन-जन के हृदय हार युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने आयारो आगम के माध्यम से अपने मंगल प्रवचन में फरमाया कि मनुष्य शब्द, रूप, रस, गंध और स्पर्श जैसे भौतिक विषयों में आसक्त रहता है। यही आसक्ति मनुष्य के जीवन में दुःख का मूल कारण बन जाती है। आचार्यश्री ने कहा कि दुःख दो प्रकार के होते हैं – मानसिक और शारीरिक। अनेक बार शारीरिक पीड़ा का कारण भी आसक्ति ही बनती है। व्यक्ति स्वाद, आकर्षण और आसक्ति के वशीभूत होकर चिकित्सकीय निषेध के बावजूद अनुचित आहार ग्रहण करता है, जिससे शरीर में विकार उत्पन्न होते हैं। यह आसक्ति केवल मनुष्य तक सीमित नहीं, देवगति में भी दुःख का कारण बन सकती है। आचार्यप्रवर ने प्रेरणा दी कि हमें अपने जीवन में आसक्ति को कम करने का प्रयास करना चाहिए। कर्तव्य का निर्वहन तो आवश्यक है, परंतु उसमें मोह या आसक्ति नहीं होनी चाहिए। पदार्थों का उपयोग आवश्यकता अनुसार करें, आसक्ति न रखें। उन्होंने कहा, 'आसक्ति और उपयोग में सूक्ष्म किंतु महत्वपूर्ण भेद है। व्यक्ति को ‘वॉण्ट’ और ‘नीड’ के बीच एक रेखा खींचनी चाहिए।'
साधना और व्यवहार दोनों क्षेत्रों में इच्छाओं का परिसीमन रखने का आह्वान करते हुए आचार्यश्री ने कहा कि मनुष्य जीवन अत्यंत दुर्लभ है, इसका सदुपयोग धर्म की आराधना में होना चाहिए। सम्यक् दर्शन, सम्यक् ज्ञान, सम्यक् चारित्र और सम्यक् तप की आराधना के माध्यम से ही मोक्ष रूपी मंजिल प्राप्त की जा सकती है। हमारा आसक्ति का धागा टूटे और हम अनासक्त भावों में रहें, यही जीवन की समाधि है। मंगल प्रवचन के पश्चात साध्वीप्रमुखा श्री विश्रुतविभा जी ने कहा कि प्रयत्नशील और पुरुषार्थी व्यक्ति सदैव उन्नति को प्राप्त करता है। भाग्य भी उन्हीं का साथ देता है जो कर्मठ और शक्तिशाली होते हैं। भगवान महावीर के भगवती सूत्र का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि 'जो शक्ति संपन्न होता है, वही विजय प्राप्त करता है।'
साध्वीवर्या श्री संबुद्धयशा जी ने अपने दीक्षा दिवस के अवसर पर कहा कि लगभग तेरह वर्ष पूर्व उन्हें आचार्यश्री महाश्रमणजी के करकमलों से दीक्षित होने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। उन्होंने कहा कि आचार्यश्री की शिक्षाएं उनके संयम जीवन का आधार हैं। ज्ञान, दर्शन और चारित्र की आराधना के माध्यम से आत्मकल्याण और संघसेवा का संकल्प दोहराया। इस अवसर पर आचार्यश्री ने साध्वीप्रमुखा श्री विश्रुतविभा जी एवं साध्वीवर्या श्री संबुद्धयशा जी को उनके दीक्षा दिवस पर मंगल आशीर्वाद प्रदान किया। साथ ही 'शासन गौरव' साध्वी राजीमती जी को उनके दीक्षा के 75 वर्ष पूर्ण होने पर शुभाशीष प्रदान किया।
आचार्यश्री की पावन सन्निधि में अखिल भारतीय तेरापंथ युवक परिषद् की नवनिर्वाचित टीम का शपथ ग्रहण समारोह भी संपन्न हुआ। निवर्तमान अध्यक्ष रमेश डागा ने अपनी श्रद्धासिक्त अभिव्यक्ति देकर नवनिर्वाचित अध्यक्ष पवन मांडोत को शपथ दिलाई। नव मनोनीत अध्यक्ष पवन मांडोत ने आचार्य प्रवर के समक्ष अपनी कार्य योजना प्रस्तुत करते हुए, अपनी टीम की घोषणा की एवं उन्हें शपथ ग्रहण करवाई। पूज्य प्रवर ने सभी को मंगल आशीष प्रदान करवाया।