संवर और निर्जरा से संभव है मोक्ष : आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

कोबा, गांधीनगर। 11 अक्टूबर, 2025

संवर और निर्जरा से संभव है मोक्ष : आचार्यश्री महाश्रमण

युवा मनीषी युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने ‘आयारो आगम’ के माध्यम से अमृत देशना प्रदान करते हुए फरमाया कि इस संसार में दुःख भी हैं और प्राणियों को नाना प्रकार के कष्टों का सामना करना पड़ता है। जहाँ दुःख है, वहाँ उसका कारण भी है, और दुःख से मुक्ति के उपाय भी हैं। प्रतिकूल संवेदन ही दुःख का रूप है। 'जैन दर्शन में नव तत्त्व बताए गए हैं। उनमें से ‘पाप तत्त्व’ के उदय से प्राणी दुःख का अनुभव करता है। आठ कर्मों में से चार कर्म एकान्त पापात्मक हैं और शेष चार उभयात्मक अर्थात् पुण्य-पाप दोनों फल देने वाले हैं। इस प्रकार ‘पाप’ सभी कर्मों से किसी न किसी रूप में जुड़ा हुआ तत्त्व है। जीव के परिणामों से उत्पन्न आश्रव दुःख का कारण है। संसार में जन्म-मरण और दुःख का कारण आश्रव है, जबकि पुण्यजन्य सुख का कारण भी वही आश्रव है। अतः नव तत्त्वों में आश्रव को दुःख के मूल कारण के रूप में देखा जा सकता है।'
जीव को संपूर्ण दुःख-मुक्ति मिल सकती है, और उसी स्थिति को मोक्ष कहा गया है। मोक्षावस्था में शरीर, वाणी, मन, कल्पना, स्मृति आदि कुछ भी नहीं रहते। मोक्ष प्राप्ति का प्रमुख कारण संवर है, और निर्जरा तत्त्व के माध्यम से पूर्वार्जित कर्मों का क्षय होता है। संवर और निर्जरा से पूर्ण दुःख-मुक्ति अर्थात् मोक्ष संभव है। संसार में सभी प्राणी विभिन्न रूपों में दुःख भोगते हैं। मनुष्य जीवन में शारीरिक समस्याओं के रूप में दुःख उत्पन्न हो सकता है। रोग-व्याधियों से व्यक्ति की सेवा, श्रम और साधना बाधित हो सकती है। इसलिए शास्त्र में कहा गया है — 'जब तक बुढ़ापा, व्याधि या इन्द्रिय-दुर्बलता न आए, तब तक धर्म का सम्यक् आचरण करो।' शरीर की सक्षमता, चित्त की प्रसन्नता और मनोबल — इन तीनों के संतुलन से व्यक्ति उत्तम परोपकार और साधना कर सकता है।
आचार्यश्री ने कहा कि आचार्य भिक्षु त्रिशताब्दी वर्ष में हम उनके शरीर-बल, मनोबल और अध्यात्म-बल — तीनों का सुंदर संगम देख सकते हैं। आचार्यश्री तुलसी में भी शरीर-बल और कार्यशक्ति का अद्भुत मेल था, जिसका उन्होंने सदुपयोग किया। आचार्य महाप्रज्ञजी ने ज्ञान और साधना के क्षेत्र में अमूल्य योगदान दिया। युवावस्था में यदि व्यक्ति अपनी शक्ति का सदुपयोग करे तो वह महान कार्य कर सकता है।
मंगल प्रवचन के उपरांत समणी ज्योतिप्रज्ञाजी ने श्रद्धासिक्त अभिव्यक्ति दी। आचार्य प्रवर की मंगल सन्निधि में अखिल भारतीय तेरापंथ युवक परिषद् का त्रिदिवसीय अधिवेशन भी आयोजित हुआ। अभातेयुप के राष्ट्रीय अध्यक्ष रमेश डागा ने अपने विचार रखे तथा महामंत्री अमित नाहटा ने कार्यकाल की रिपोर्ट प्रस्तुत की। इसके पश्चात् परिषद् सदस्यों ने अधिवेशन गीत का संगान किया। इस संदर्भ में आचार्य प्रवर ने पावन पाथेय प्रदान करते हुए कहा कि अखिल भारतीय तेरापंथ युवक परिषद् के अधिवेशन का अवसर है। तेरापंथ समाज में अनेक केन्द्रीय संस्थाएं हैं उनमें युवाओं व किशोरों की संस्था अभातेयुप है। आगे योगक्षेम वर्ष आयोज्य है, इसमें युवक परिषद् के इतिहास और पृष्ठभूमि पर आधारित कोई सामग्री तैयार की जा सकती है। अभातेयुप का कोई चिंतन शिविर लगे कि क्या नया उन्मेष लाया जा सकता है? अभातेयुप द्वारा अनेक कार्य किए जा रहे हैं। अभातेयुप भारत की एक उभरती हुई संस्था लग रही है। रास्ते की सेवा आदि का अच्छा कार्य हो रहा है। किशोरों को सही राह पर चलाने का भी कार्य युवक परिषद् को करने का प्रयास करना चाहिए। अच्छा धार्मिक कार्य होता रहे।