कर्म निर्जरा का अमोघ साधन है तप

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पूर्वांचल, कोलकाता।

कर्म निर्जरा का अमोघ साधन है तप

मुनि जिनेशकुमार जी के सान्निध्य में मीना सुराणा के मासखमण तप अभिनंदन समारोह का भव्य आयोजन जैन श्वेताम्बर तेरापंथी सभा (कोलकाता - पूर्वांचल) ट्रस्ट द्वारा आयोजित किया गया। उपस्थित धर्मसभा को संबोधित करते हुए मुनि जिनेश कुमार जी ने कहा - भगवान महावीर ने दान, शील, तप भावना को मुक्ति का द्वार बताया है। तप से आत्मा परिशुद्ध होती है। तप कर्म निर्जरा का अमोघ साधन है। तप वह रसायन है जिसके द्वारा शरीर और मन का संतुलन बना रखता है। रसनेन्द्रिय के संयम से ऊर्जा का संचय होता है, विषय तृष्णा के कडे ताप शांत होते है। वृत्तिशोधन के साथ शरीर की अनेक बीमारियां से मुक्त होकर स्वस्थता व समाधि की अनुभूति करता है। तप के द्वारा हाथों की रेखा को बदला जा सकता है।
मुनिश्री ने आगे कहा - वृहत्तर कोलकाता में तप का अच्छा माहौल बना हुआ है। इस प्रवास में अब तक कुल 11 एवं लिलुआ का तीसरा मासखमण आया है। मीना देवी सुराणा ने हिम्मत का परिचय दिया है। कार्यक्रम का शुभारंभ मुनि कुणाल कुमार जी के मंगलाचरण से हुआ। इस अवसर पर साध्वीप्रमुखा श्री विश्रुतविभा जी के संदेश का वाचन परामर्शक सुशील हीरावत ने व तप अभिनंदन पत्र का वाचन उपाध्यक्ष नरेंद्र छाजेड़ ने किया। तेरापंथी सभा पूर्वांचल के अध्यक्ष संजय सिंघी ने 'कृतज्ञोस्मि यात्रा' के बारे में बताते हुए तप अनुमोदना में विचार व्यक्त किये। इस अवसर पर लिलुआ सभा सदस्य द्वारा तप अनुमोदना गीत प्रस्तुत किया गया। नरेंद्र सुराणा व तपस्विनी के पारिवारिक बच्चों ने अपने भाव व्यक्त किये।
कलकत्ता सभा के अध्यक्ष अजय भंसाली एवं प्रेक्षा फाउंडेशन की ईस्ट जोन कोर्डिनेटर मंजू सिपानी ने अपने विचार व्यक्त किये। कार्यक्रम का संचालन मुनि परमानंद जी ने किया। इस अवसर पर मासखमण तपस्विनी मीना सुराणा, 15 की तपस्या करने वाली सुमन लुणिया व अट्ठाई तप करने वाले राजेश दुगड़ को तपस्या के प्रत्याख्यान करवाए। सभा द्वारा तपस्वियों का सम्मान किया गया।