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पर्युषण महापर्व आराधना
पर्युषण का अर्थ – चारों ओर से सिमटकर एक स्थान पर अवस्थित होना, अर्थात् इन्द्रिय जगत से आत्मजगत में वास करना। जिसका फलितार्थ है – कषायों का उपशमन, भौतिक प्रवृत्तियों से अलगाव, आत्म साधना के लिए पुरुषार्थ, अतीत की स्खलनाओं, प्रमाद एवं भूलों का सिंहावलोकन। ये विचार मुनि मोहजीत कुमार जी ने भिक्षु निलयम के महाश्रमणम् सभागार में विशाल जनमेदिनी के समक्ष प्रकट किए।
पर्युषण महापर्व आराधना के प्रथम दिवस ‘खाद्य संयम दिवस’ पर मुनि जयेश कुमार जी ने कहा कि आहार जीवन की अनिवार्यता है। जो अनिवार्य है, उसका विवेक जरूरी है। तीर्थंकर जीवन दर्शन के अंतर्गत मुनि जयेश कुमार जी ने तीर्थ और तीर्थंकर की महत्ता पर विशेष प्रस्तुति दी। मुनि भव्य कुमार जी ने उत्तराध्ययन सूत्र के ‘चित्त संभूति’ प्रसंग को अपनी शैली में प्रस्तुत कर समां बाँधा। दूसरे दिन ‘स्वाध्याय दिवस’ पर मुनि मोहजीत कुमार जी ने कहा कि स्वाध्याय से ज्ञानावरणीय और दर्शनावरणीय कर्म क्षय होते हैं। स्वाध्याय व्यक्ति को हेय, ज्ञेय, उपादेय का बोध कराता है। मुनि जयेश कुमार जी ने कहा कि स्वाध्याय का अर्थ सत् शास्त्रों के अध्ययन के साथ ही स्वयं अपना ज्ञान करना है। कुछ पढ़ने या सुनने के पश्चात उसकी अनुप्रेक्षा करने से मस्तिष्क में नए आइडियाज आते हैं और कल्पनाशक्ति का विकास होता है। तीर्थंकर जीवन दर्शन के परिप्रेक्ष्य में मुनि जयेश कुमार जी ने भगवान ऋषभ द्वारा जीवन की विकासशील अवधारणा को आधुनिक शैली में प्रस्तुत किया। मुनि भव्य कुमार जी ने उत्तराध्ययन सूत्र के ‘चित्त संभूति’ प्रसंग को सरस शैली में प्रस्तुत किया।
पर्युषण महापर्व की आराधना के तीसरे दिन ‘सामायिक दिवस’ के अवसर पर अभिनव सामायिक का प्रयोग मुनि भव्य कुमार जी द्वारा करवाया गया। मुनि मोहजीत कुमार जी ने सामायिक शब्द का प्रतिपादन करते हुए कहा कि सामायिक संवर और शोधन की प्रक्रिया है। इस अवधि में क्रियात्मक पाप रुकता है और कृत पापों का शोधन होता है। मुनि जयेश कुमार जी ने कहा कि सामायिक आत्माराधना का महान पथ है। विकृति से संस्कृति की ओर गतिमान होने का अर्थ सामायिक है। तीर्थंकर दर्शन के अंतर्गत मुनि जयेश कुमार जी ने प्रभु सुमतिनाथ के जीवन चित्र को उकेरा।
‘वाणी संयम दिवस’ के अवसर पर मुनि मोहजीत कुमार ने कहा कि भाषा का प्रयोग मानव-मानव में संबंध स्थापित करता है। बोलना एक कला है, परंतु मौन एक तप है। वाणी का संयम दीनता नहीं, साधना है। मधुर वाणी, सुसंस्कृत वाणी का श्रृंगार सारे संसार को अपनी ओर खींच लेता है। मुनि जयेश कुमार ने घटना प्रसंग के माध्यम से अयाचित वाणी के दुष्प्रभाव का चित्रण करते हुए कहा कि अभिमानी व्यक्ति सुनना नहीं, केवल बोलना चाहता है। तीर्थंकर दर्शन की कड़ी में मुनि जयेश कुमार जी ने 16वें प्रभु शांतिनाथ का जीवनवृत्त प्रस्तुत किया। मुनि भव्य कुमार ने आगम सूत्रों के माध्यम से वर्तमान के संदर्भ में सामाजिक और व्यावहारिक गतिविधियों पर सटीक टिप्पणी कर सामाजिक क्रियाकलापों के सुधार पर बल दिया।
व्रत की चेतना का जागरण स्वयं से जुड़ने की एक दिव्य प्रेरणा है। व्रत मन की तृप्ति का सर्वोत्तम उपाय है। व्रत व्यक्ति की जीवन शैली में संयम और अध्यात्म के प्रति आस्था का निर्माण करता है। ये स्वर मुनि मोहजीत कुमार जी ने ‘व्रत चेतना दिवस’ पर प्रकट किए। इस दिवस की पृष्ठभूमि को प्रकट करते हुए मुनि जयेश कुमार जी ने कहा कि व्रत का अर्थ है संयम। आज का मानव त्याग को नहीं, भोग को महत्व देता है। आवश्यकता है दो समय रोटी की, कुछेक वस्त्रों की, किंतु करोड़ों के संग्रह के लिए दिन-रात एक करता है। तीर्थंकर दर्शन के अंतर्गत मुनि जयेश कुमार जी ने 19वें प्रभु मल्लिनाथ की जीवन कथा का संक्षिप्त वर्णन किया। मुनि भव्य कुमार जी ने आगम सूक्तों की व्याख्या करते हुए जनजीवन को व्रत की संस्कृति को आत्मसात् करने की प्रेरणा प्रदान की।
पर्वाधिराज पर्युषण पर्व के अंतर्गत ‘जप दिवस’ पर मुनि मोहजीत कुमार ने कहा कि जप शक्ति जागरण, विघ्नशमन और मनोबल के विकास का साधन है। जप शरीर, मन और विचार तंत्र को प्रभावित करता है। जप शब्द की मीमांसा करते हुए मुनि ने कहा – ‘ज’ से जन्म का विच्छेद और ‘प’ से पापों का नाश होता है। मुनि जयेश कुमार जी ने कहा कि भक्ति रस से भरी किसी भी पंक्ति को मंत्र बनाया जा सकता है। उस मंत्र को भावों से भावित कर दिया जाए तो उसकी शक्ति अपरिमित हो जाती है। तीर्थंकर दर्शन के अंतर्गत मुनि जयेश कुमारजी ने 22वें तीर्थंकर भगवान अरिष्टनेमि के जीवन प्रसंग को सरसता के साथ प्रस्तुत किया। मुनि भव्य कुमार जी ने उत्तराध्ययन सूत्र में वर्णित ‘चित्त संभूति’ के कथानक को प्रस्तुत किया। मुनि मोहजीत कुमार ने भगवान महावीर की अध्यात्म यात्रा का प्रभावी वर्णन किया।
ध्यान का अर्थ – अपने आपको देखना; अपने शरीर, मन, भाव और आत्मा के सूक्ष्म स्पंदनों को केवल देखना और जानना। आचार्य महाप्रज्ञ ने इस ध्यान की पद्धति को ‘प्रेक्षाध्यान’ की अभिधा से अभिहित किया। प्रेक्षाध्यान का उद्देश्य है – चित्त और मन की निर्मलता। ये विचार पर्युषण महापर्व आराधना के छठे दिन ‘ध्यान दिवस’ पर मुनि मोहजीत कुमार ने प्रकट किए। मुनि जयेश कुमार जी ध्यान की उपयोगिता समझाते हुए कहा कि आज का युग वैज्ञानिक युग है। वैज्ञानिक युग की विशेषता है कि कसौटी और परीक्षण के बाद ही किसी सच्चाई को स्वीकार किया जाता है। ध्यान एक ऐसा प्रयोग है जो धर्म के क्षेत्र में अन्वेषण को स्थान देता है। केवल इंद्रियों के स्तर पर धर्म को नहीं समझा जा सकता; उसे समझने के लिए अतींद्रिय चेतना के स्तर पर जाना होता है। तीर्थंकर दर्शन के अंतर्गत मुनि जयेश कुमार जी ने तीर्थंकर पार्श्वनाथ के जीवनवृत्त के गूढ़ रहस्यों को प्रकट किया। मुनि भव्य कुमार जी ने उत्तराध्ययन सूत्र के ‘चित्त संभूति’ प्रसंग को सरसता से प्रस्तुत किया। मुनि मोहजीत कुमार ने भगवान महावीर की अध्यात्म यात्रा को 26वें भव तक कर्मों के उतार-चढ़ाव का वर्णन कर जनमानस को संबोध प्रदान किया। इस अवसर पर तपस्या के क्रम में 50 से अधिक जनों ने बड़ी तपस्या का प्रत्याख्यान किया।
जैन धर्म का सर्वोच्च महान पर्व ‘संवत्सरी’ त्याग, तप, आराधना के भावों से भावित है। यह मन की पवित्रता और अतीत के प्रतिलेखन का महान दिन है। इस आध्यात्मिक पर्व पर व्यक्ति आत्मकेन्द्रित होकर अतीत की भूलों का सिंहावलोकन करता है। ये विचार मुनि मोहजीत कुमार जी ने पर्युषण पर्व आराधकों के मध्य कहे। संवत्सरी महापर्व का शुभारंभ नमस्कार महामंत्र के सस्वर संगान से हुआ। मुनि भव्य कुमार जी ने ‘चित्त संभूति’ के रोमांचक सफर को पूर्णाहुति दी। मुनि जयेश कुमार जी ने संवत्सरी को शाब्दिक परिभाषा देते हुए कहा कि ‘वत्सर’ का अर्थ है वर्ष, और सम्पूर्ण वर्ष को एक दिन में समेटने का नाम है संवत्सरी। व्यक्ति सोचता है, एक दिन सारा धर्म-ध्यान करके मैं पूरे साल की भरपाई कर लूँ, पर जीवन के हर क्रम में निरंतरता आवश्यक होती है। आत्मचिंतन करें कि अब तक मैंने क्या हासिल किया और क्या करना शेष है? फिर संकल्पित हो शेष को अशेष बनाने की दिशा में कदम बढ़ा दें। मुनि मोहजीत कुमार जी ने भगवान महावीर की अध्यात्म यात्रा के परिप्रेक्ष्य में जन्म, साधना, परिषहों के वर्णन के साथ उत्तरवर्ती आचार्य जम्बूस्वामी की गेय कथा को प्रस्तुत कर संयम की भावना को जागृत किया। मुनि भव्य कुमार जी ने आगम युग, उत्कर्ष युग और नवीन युग के आचार्यों के जीवन प्रसंगों को प्रकट किया। मुनि जयेश कुमार जी ने संवत्सरीक प्रवचन क्रम का उपसंहार करते हुए तेरापंथ के 11 आचार्यों का संक्षिप्त जीवनवृत्त प्रस्तुत किया। संवत्सरी महापर्व के दिन साढ़े नौ घंटे चले प्रवचन क्रम को तीनों संतों ने पूर्ण किया। इस अवसर पर हजारों उपवास के साथ सैकड़ों पौषध हुए। बड़ी तपस्या की संख्या भी उत्कृष्ट रही।