भगवान महावीर थे मानवीय एकता के समर्थक

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जयपुर।

भगवान महावीर थे मानवीय एकता के समर्थक

मुनि तत्त्व रुचि जी तरुण ने कहा — भगवान महावीर मानवीय एकता के समर्थक थे। उन्होंने दलितों, वंचितों, पतितों और पीड़ितों का कल्याण किया। ये विचार मुनिश्री ने श्यामनगर स्थित भिक्षु साधना केंद्र में 'भगवान महावीर और विश्व मानव' विषय पर आयोजित कार्यक्रम को संबोधित करते हुए व्यक्त किए। मुनिश्री ने भगवान महावीर स्वामी के मानवीय एकता को दर्शाने वाले प्रेरक प्रसंगों का उल्लेख करते हुए कहा — भगवान महावीर की दृष्टि में जाति, वर्ण, वर्ग, भाषा, प्रांत और संप्रदाय भेद का कोई स्थान नहीं था। वे मानवीय एकता में विश्वास करते थे। उन्होंने अपने संघ में हर वर्ग के व्यक्ति को दीक्षित किया। उनके प्रथम शिष्य इंद्रभूति गौतम ब्राह्मण थे, प्रथम शिष्या चंदनबाला क्रीत दासी थी, और उनके प्रमुख दस श्रावकों में प्रथम श्रावक एक किसान था।
भगवान महावीर ने अपनी शरण में आए अर्जुन माली जैसे हत्यारे को भी तारा, चांडाल पुत्र हरिकेश बल को दीक्षित होने का अवसर दिया, और पाँच सौ चोरों के मुखिया प्रभव को भी सुधारा। मुनि संभव कुमार जी ने कहा — व्यक्ति जन्म से नहीं, कर्म से महान होता है। हमारा जन्म चाहे जिस कुल में हुआ हो, हमारे आचरण पवित्र होने चाहिए। भगवान महावीर ने जातिवाद को अतात्विक बताया और कहा कि कोई भी व्यक्ति जाति और जन्म से नहीं, बल्कि सद्कर्म और सदाचार से महान बनता है। प्रवचन से पूर्व आध्यात्मिक अनुष्ठान का आयोजन हुआ जिसमें श्रद्धालुओं ने बड़े उत्साह से भाग लिया।