आत्मा, धर्म और अध्यात्म की ओर हो आकर्षण : आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

कोबा, गांधीनगर। 19 अक्टूबर, 2025

आत्मा, धर्म और अध्यात्म की ओर हो आकर्षण : आचार्यश्री महाश्रमण

जीवन जीना सापेक्ष होता है। कोई भी व्यक्ति पूर्णतया निरपेक्ष होकर जीवन नहीं जी सकता। चाहे वह स्वाभाविक रूप में हो या स्वीकृत रूप में, किसी न किसी रूप में परापेक्षता जीवन में बनी रहती है। सामूहिक जीवन में किसी के लिए यह कहना कि मैं अकेला जीवन जीऊँगा, व्यावहारिक रूप से कठिन है। कोई व्यक्ति गुफा में जाकर भी अकेले जीवन व्यतीत करे, तो शारीरिक कठिनाई में उसे दूसरों की सहायता लेनी पड़ सकती है। प्राचीन समय में एकल विहार करने वालों को भी किसी न किसी रूप में सहयोग लेना पड़ता था। परापेक्षता के कई स्तर हो सकते हैं, और इसमें दूसरों का सहयोग लेना आवश्यक होता है। उपरोक्त पाथेय परम पूज्य आचार्य श्री महाश्रमण जी ने प्रेक्षा विश्व भारती के वीर भिक्षु समवसरण में श्रद्धालुओं को सम्बोधित करते हुए कहे।
आचार्य प्रवर ने आगे फ़रमाया कि शास्त्र में संग का परित्याग करने और आसक्ति छोड़ने की शिक्षा दी गई है। व्यक्ति को अनुभव करना चाहिए कि उसका कोई नहीं है, वह अकेला है। निश्चय नय और व्यवहार नय के आधार पर व्यक्ति की दृष्टि स्पष्ट रहती है। निश्चय की दृष्टि से 'मैं अकेला हूं, मेरे कर्म मुझे भोगने हैं' सत्य है। व्यवहार नय से देखें तो व्यक्ति अकेला नहीं है। उसका परिवार, समाज, संघ और राष्ट्र उसके साथ होता है। इस प्रकार निश्चय नय और व्यवहार नय दोनों सत्य हैं। संघ की दृष्टि से भी व्यक्ति 'मैं गण का हूं और गण मेरा है' की भावना रखता है। गृहस्थ जीवन में स्वास्थ्य और धन की अपेक्षा होती है। संसार में रहने वाले व्यक्ति को धन के साथ-साथ धर्म बनाए रखना चाहिए। धर्महीन धन का कोई मूल्य नहीं है। गृहस्थ जीवन में धनाकर्षण के साथ-साथ धर्माकर्षण भी होना आवश्यक है। व्यक्ति के जीवन में आत्मा, धर्म और अध्यात्म की ओर आकर्षण होना चाहिए।
आचार्य प्रवर के मंगल प्रवचन से पूर्व साध्वीप्रमुखा श्री विश्रुतविभाजी ने कहा कि व्यक्ति अंधकार से प्रकाश की ओर बढ़ना चाहता है, परन्तु बाहरी प्रकाश अशाश्वत है। वास्तविक प्रकाश भीतर का, आत्मा का प्रकाश है। इसके लिए अज्ञान को दूर करना आवश्यक है। ज्ञान प्राप्ति के लिए मन और वचन को पवित्र रखना, इन्द्रियों और मन का संयम करना आवश्यक है। मंगल प्रवचन के उपरांत समणी मृदुप्रज्ञाजी ने गीत के माध्यम से अपनी भावाभिव्यक्ति प्रस्तुत की। मोटेरा ज्ञानशाला के ज्ञानार्थियों ने भावपूर्ण प्रस्तुति दी। ज्ञानार्थियों ने प्रस्तुति अंग्रेजी में दी, और पूज्य गुरुदेव ने अंग्रेजी में ही मंगल प्रेरणा प्रदान की। बालक पार्थ ने भी प्रस्तुति दी। ज्ञानशाला प्रशिक्षिकाओं ने गीत का संगान प्रस्तुत किया। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।