गुरुवाणी/ केन्द्र
पदार्थों के प्रति अनासक्त और नियम में रहें दृढ़ : आचार्यश्री महाश्रमण
अखंड परिव्राजक, महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमणजी ने आयारो आगम के माध्यम से अमृत देशना देते हुए कहा कि शास्त्र में दो महत्वपूर्ण शब्द आए हैं – अप्रलीयमान और दृढ़। अप्रलीयमान का अर्थ है वस्त्र आदि उपकरणों के प्रति अनासक्ति, और दृढ़ का अर्थ है मजबूत। आचार्यश्री ने कहा कि साधु को उपकरणों में अनासक्त रहना चाहिए और किसी स्थान, नगर या गांव के प्रति आसक्ति या ममत्व में फंसना नहीं चाहिए। चातुर्मास की समाप्ति के बाद जहां भी साधु विहार करे, वहां से यथासंभव विचरण करना चाहिए। बहता हुआ पानी निर्मल रहता है, वहीं स्थिर पानी गंदा हो जाता है; उसी प्रकार साधु को विचरते रहना चाहिए।
विभिन्न गांवों में जाने से साधु और समाज दोनों को लाभ होता है। स्थान के लोग ऊबे नहीं और अधिक लोग उपकार प्राप्त कर सकते हैं। दूसरा लाभ यह है कि साधु को किसी एक जगह आसक्ति नहीं होती। साधु को धर्म और नियम में दृढ़ता रखनी चाहिए। धर्म के प्रति दृढ़ रहना और उपकरणों के प्रति अनासक्त रहना आवश्यक है। गृहस्थों को भी धर्म में दृढ़ता और संसार में अनासक्ति का पालन करना चाहिए। जैसे पद्म पानी में रहते हुए भी पानी से प्रभावित नहीं होता, वैसे ही गृहस्थों और श्रावकों को संसार में रहते हुए भी अनासक्त रहना चाहिए।
आचार्यश्री ने ईमानदारी और नैतिकता पर बल देते हुए कहा कि यदि चोरी करने का त्याग किया है, तो केवल कर्म से ही नहीं बल्कि मन में भी चोरी की भावना नहीं लानी चाहिए। दीपावली जैसे पर्वों पर लक्ष्मी की याचना करते समय ईमानदारी और नैतिकता का भी पालन करना चाहिए। सिद्धांतों और नियमों के पालन में दृढ़ निश्चय रखना आवश्यक है। आचार्यश्री ने सभी को प्रेरित किया कि वे अपने धर्म, अध्यात्म और अच्छे नियमों में दृढ़ भी रहें और पदार्थों के प्रति अनासक्त भी।
इस अवसर पर आचार्य श्री भिक्षु जन्म त्रिशताब्दी के उपलक्ष्य में अखिल भारतीय तेरापंथ महिला मंडल द्वारा आयोजित जप अनुष्ठान का आयोजन आचार्य प्रवर की मंगल सन्निधि में किया गया। आचार्यश्री ने आचार्य श्री भिक्षु के जप का क्रम चलाया। चतुर्विध धर्मसंघ ने भी जप में सहभागिता की। साध्वीप्रमुखा श्री विश्रुतविभा जी ने महिला मंडल को प्रेरणा प्रदान की। अखिल भारतीय तेरापंथ महिला मंडल की अध्यक्षा सुमन नाहटा ने जानकारी प्रदान की। समणी कुसुमप्रज्ञाजी और समणी विपुलप्रज्ञाजी ने भावाभिव्यक्ति दी। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेशकुमार जी ने किया।