गुरुवाणी/ केन्द्र
सर्व प्रवृत्ति संयम पूर्वक रहे : आचार्यश्री महाश्रमण
जैन श्वेतांबर तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशमाधिशास्ता, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने अमृत देशना प्रदान करते हुए फरमाया कि साधु संयम पूर्वक चर्या करने वाला होना चाहिए। चलने में, खड़े होने में, बैठने में, सोने में, बोलने में, आदि प्रत्येक कार्य में संयम रखने वाला हो। समिति हो, सम्यक् प्रवृत्ति हो। जिस प्रवृत्ति के साथ संयम जुड़ जाता है, वह प्रवृत्ति समिति बन सकती है। जहां संयम नहीं है, वह प्रवृत्ति हो सकती है अथवा उसे दुष्प्रवृत्ति की कोटि में रखा जा सकता है। उसे समिति अथवा सत्प्रवृत्ति कहना ठीक नहीं लग रहा है। प्रवृत्ति के साथ संयम का भाव जुड़ गया तो सत्प्रवृत्ति और प्रमाद, मोह, आदि जुड़ जाते हैं तो वह दुष्प्रवृत्ति हो जाती है। अतः साधु को संयमपूर्वक चर्या करने वाला होना चाहिए।
नवदीक्षित साधु-साध्वियों, समणियों को प्रेरणा प्रदान करते हुए पूज्य प्रवर ने कहा कि संयम में जागरूकता रखनी चाहिए। रात में अथवा दिन में कभी भी चलना हो तो ईर्या समिति का अपनी ओर से प्रयास रहना चाहिए कि किसी जीव जन्तु की हिंसा न हो जाए। अतः अपनी चर्या में, कार्यों में जागरूकता वृद्धिंगत होती रहनी चाहिए। साधु-जीवन के सभी कार्यों में अच्छा प्रशिक्षण प्राप्त हो जाए।
अपने कार्यों में स्वावलम्बी बनने का अभ्यास करना चाहिए। अपना कोई भी कार्य हो, उसे स्वयं करने का प्रयास होना चाहिए। अपने कार्यों में दक्षता का विकास करने का प्रयास हो। विहार, आदि के समय साधु अपना बोझ भी स्वयं वहन करें। नवदीक्षित साधु-साध्वियां इन कार्यों पर विशेष ध्यान देने का प्रयास करें। साधु संयम संपन्न हो तथा अन्य पापों से भी निवृत्त रहे। इन विषयों पर समणियों को भी ध्यान देने का प्रयास रहना चाहिए। आचार्य प्रवर ने चतुर्दशी के संदर्भ में हाजरी के क्रम को संपादित किया तथा चारित्र आत्माओं को विभिन्न प्रेरणाएं प्रदान की। मुनि मेघ कुमारजी व मुनि आर्ष कुमारजी ने लेखपत्र का उच्चारण किया।पूज्य गुरुदेव ने दोनों को कल्याणक बख्शीश करवाए। तदुपरान्त उपस्थित साधु-साध्वियों ने अपने-अपने स्थान पर खड़े होकर लेखपत्र का उच्चारण किया। साध्वीवृंद ने गीत का संगान किया।