असत् संस्कारों से मुक्त होकर सत् संस्कारों को अपनाएं : आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

कोबा, गांधीनगर। 13 अक्टूबर, 2025

असत् संस्कारों से मुक्त होकर सत् संस्कारों को अपनाएं : आचार्यश्री महाश्रमण

अध्यात्म जगत के महासूर्य युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने ‘आर्हत वाङ्मय’ के माध्यम से पावन देशना प्रदान करते हुए फरमाया कि यह सृष्टि अनंत जीवों से भरी पड़ी है। चौरासी लाख योनियों में विचरते असंख्य प्राणियों में मनुष्य जीवन सर्वश्रेष्ठ माना गया है। मनुष्य में ज्ञान, विवेक, श्रुत और शील की जो चेतना है, वह अन्य किसी प्राणी — चाहे देव ही क्यों न हों — में संभव नहीं। मनुष्य अपनी साधना द्वारा पराकाष्ठा तक पहुँच सकता है, यहाँ तक कि सर्वज्ञ भी बन सकता है। आचार्य प्रवर ने कहा कि मनुष्य में जो सोचने, जानने और कर्म करने की क्षमता है, वही उसकी पहचान है। परंतु यदि वही मनुष्य गलत संस्कारों, दुर्व्यसनों या अधम प्रवृत्तियों में पड़ जाए, तो वह अपने वैशिष्ट्य को खो देता है।
मनुष्य के भीतर अहिंसा और सद्भाव की भावना भी हो सकती है, और हिंसा तथा असद्भाव की प्रवृत्ति भी। यही कारण है कि उपनिषदों में प्रार्थना की गई — 'तमसो मा ज्योतिर्गमय, असतो मा सद्गमय, मृत्योर्मा अमृतं गमय।' अर्थात् — हे प्रभु! हमें अंधकार से प्रकाश की ओर, असत् से सत् की ओर, और मृत्यु से अमरत्व की ओर ले चलो। आचार्यश्री ने कहा कि हिंसा, झूठ, छल, कपट जैसे असत् संस्कारों से मुक्त होकर हमें अहिंसा, सत्य, ईमानदारी और नैतिकता जैसे सत् संस्कारों को अपनाना चाहिए। जैन तत्त्वविद्या के अनुसार संस्कार दो प्रकार के होते हैं — एक, मोहनीय कर्म के औदयिक भाव के संस्कार (जैसे क्रोध, अहंकार, हिंसा आदि) और दूसरे, मोहनीय कर्म के विलय के संस्कार (जैसे अहिंसा, समता, क्षमा आदि)। हमें प्रयास करना चाहिए कि हम गलत संस्कारों से निकलकर श्रेष्ठ संस्कारों की ओर अग्रसर हों।
उन्होंने कहा कि जीवन में अहिंसा, संयम और तप ही धर्म के वास्तविक प्रतीक हैं। किसी भी प्राणी को अकारण पीड़ा न देना, और दूसरों के साथ वैसा ही व्यवहार करना जैसा हम अपने लिए चाहते हैं, यही सच्चा धर्म है। यदि जीवन को हम भवन मानें तो उसमें ज्ञान का प्रकाश और सदाचार की सुगंध भरी रहनी चाहिए। विद्यार्थियों के भीतर भी ज्ञान का आलोक और शील-संस्कारों की सौंधी महक बनी रहनी चाहिए।
आचार्यश्री की मंगल सन्निधि में अणुव्रत विश्व भारती सोसाइटी द्वारा ‘ऐलिवेट’ कार्यक्रम का आयोजन हुआ, जिसमें बड़ी संख्या में एनसीसी कैडेट्स उपस्थित रहे। कार्यक्रम में अणुविभा के चीफ ट्रस्टी तेजकरण सुराणा, सारिका जैन, एनसीसी के कैडेट महक जायसवाल और कृषक पांचाल ने अपनी भावनाएँ व्यक्त कीं। गुजरात एनसीसी के जोनल हेड केतन बलिराम पाटिल, मेजर जनरल रायसिंह गोदारा और पंजाब के डीजीपी जितेंद्र जैन ने नशामुक्ति और संयम पर अपने विचार साझा किए। अंत में आचार्यश्री ने पावन पाथेय प्रदान करते हुए कहा कि नशे अनेक प्रकार के होते हैं — चाहे पदार्थों का हो या विचारों का। किसी भी अहितकारी आदत से स्वयं को दूर रखना चाहिए। नशे को मिटाने से पहले ‘ऐलिवेट’ जैसे सकारात्मक संस्कारों को अपनाना आवश्यक है। आचार्यश्री ने कैडेट्स को नशामुक्त जीवन का संकल्प दिलाया। कार्यक्रम का संचालन अशोक कोठारी ने किया।