शक्ति और बुद्धि का उपयोग करें आत्म विकास के लिए : आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

कोबा, गांधीनगर। 14 अक्टूबर, 2025

शक्ति और बुद्धि का उपयोग करें आत्म विकास के लिए : आचार्यश्री महाश्रमण

अखण्ड परिव्राजक, महातपस्वी, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने ‘आयारो’ आगम के माध्यम से अमृत देशना प्रदान करते हुए फरमाया कि जब व्यक्ति विषयासक्त हो जाता है, तो उसका शरीर और मन दोनों प्रभावित हो जाते हैं। तीव्र आसक्ति के कारण व्यक्ति अपने ऊपर नियंत्रण खो बैठता है — वह अनुचित आहार लेता है, आवश्यकता से अधिक भोग करता है, और परिणामस्वरूप उसका शरीर दुर्बल हो जाता है। शरीर की दुर्बलता व्यक्ति को पीड़ा देती है और वह अच्छे कार्यों में भी समर्थ नहीं रह पाता।
आचार्यश्री ने कहा कि जीवन में श्रेष्ठ कार्य करने के लिए स्वस्थ शरीर, दृढ़ मनोबल और शांत मानसिक स्थिति का होना अत्यंत आवश्यक है। जब साधन-सामग्री, शारीरिक बल और मानसिक संतुलन तीनों का समन्वय हो, तभी व्यक्ति सूझ-बूझ से उत्तम कर्म कर सकता है। किंतु इससे भी अधिक महत्त्वपूर्ण यह है कि व्यक्ति अपनी शक्ति का उपयोग किस दिशा में करता है। शक्ति का उपयोग विनाशकारी कार्यों में भी किया जा सकता है और रचनात्मक, लोक-कल्याणकारी कार्यों में भी। यह मनुष्य के विवेक पर निर्भर करता है कि वह अपनी शक्ति और बुद्धि का उपयोग किस उद्देश्य के लिए करता है। बुद्धि का प्रयोग यदि समस्याएँ सुलझाने, समाजहित और आत्म-विकास के लिए किया जाए, तो उसका उपयोग सार्थक बनता है।
आचार्यश्री ने प्रेक्षाध्यान की महत्ता पर प्रकाश डालते हुए कहा कि प्रेक्षाध्यान आत्मा की शुद्धि और आध्यात्मिक विकास का उत्कृष्ट साधन है। इसके अभ्यास से व्यक्ति मानसिक शांति प्राप्त कर सकता है और आत्मा में स्थित रहने की कला सीख सकता है। प्रेक्षाध्यान राग-द्वेष से मुक्त होकर अहिंसा के मार्ग पर अग्रसर होने का अभ्यास कराता है। जीवन को पवित्र और संतुलित बनाए रखने का यह एक प्रभावी उपाय है।
आचार्य प्रवर की मंगल सन्निधि में अंतर्राष्ट्रीय प्रेक्षाध्यान शिविर का मंचीय कार्यक्रम आयोजित हुआ। इस अवसर पर रूस के कुरगन व क्रसनादार के साधकों ने सामूहिक रूप से प्रेक्षाध्यान गीत प्रस्तुत किया। एस्टोनिया की डियाना, यूक्रेन की इयोला, सर्बिया की ओल्गा, श्रीलंका के नरेन कुमार, नेपाल के किशोर सिंह शाही, कुरगन की इलेना और प्रिया बांढिया सहित विभिन्न देशों के साधकों ने अपने अनुभव साझा किए।
प्रेक्षा इंटरनेशनल एवं अहमदाबाद चातुर्मास प्रवास व्यवस्था समिति के अध्यक्ष अरविंद संचेती ने भी अपनी भावनाएँ व्यक्त कीं। इस अवसर पर आचार्यश्री ने कहा कि जैन दर्शन आत्मा और शरीर को भिन्न मानता है — आत्मा शाश्वत है और शरीर नश्वर। प्रेक्षाध्यान का यह आध्यात्मिक प्रयोग आचार्य तुलसी के समय से प्रारंभ हुआ था और यह आत्मकल्याण का अत्यंत प्रभावी माध्यम है। इस उपक्रम का संचालन प्रेक्षाध्यान के आध्यात्मिक पर्यवेक्षक मुनि कुमारश्रमणजी द्वारा किया गया।