सहिष्णुता का होता रहे उत्तरोत्तर विकास : आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

कोबा, गांधीनगर। 16 अक्टूबर, 2025

सहिष्णुता का होता रहे उत्तरोत्तर विकास : आचार्यश्री महाश्रमण

मानव मन के रूपान्तरक जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशमाधिशास्ता युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने आयारो आगम के माध्यम से अमृत देशना प्रदान करते हुए फरमाया कि जैन वाङ्मय में ‘परीषह’ शब्द का उल्लेख मिलता है। जो कष्ट निर्जरा और मार्ग-अच्यवन के लिए सहन किए जाते हैं, वे परीषह कहलाते हैं। उत्तराध्ययन सूत्र में साधु के बाईस परीषहों का वर्णन मिलता है, जैसे – क्षुधा, पिपासा, शीत, उष्ण आदि। जो साधु इन परीषहों को सहन कर लेता है, वह साधु जीवन में सफलता के उच्च शिखर तक पहुँच सकता है।
आचार्यश्री ने कहा कि जैसे रणभूमि में सैनिक प्राणों की आहुति दे दे पर पीछे नहीं हटता, वैसे ही साधु का जीवन भी एक आध्यात्मिक समरांगण है। साधु को परीषहों से संघर्ष करते हुए संयम के मार्ग पर दृढ़ रहना चाहिए। जो साधु कठिनाइयों से विचलित न हो, संयम के पथ पर स्थिर रहे, वही इस जीवन का सच्चा विजेता है। गृहस्थ जीवन में भी कठिनाइयाँ आती हैं। जब मनुष्य इन स्थितियों में समता और शांति बनाए रखते हुए धर्ममार्ग पर अग्रसर रहता है, तो वही उसकी सफलता है। कठिनाइयाँ सामान्य से लेकर महान लोगों तक, सभी के जीवन में आती हैं। ऐसे में सहिष्णुता और स्थिरता ही व्यक्ति की असली शक्ति होती है।
आचार्यश्री ने कहा कि शिक्षा संस्थान – विद्यालय, महाविद्यालय, विश्वविद्यालय आदि – ज्ञान प्रदान करने के साथ-साथ विद्यार्थियों में संस्कार और सहिष्णुता का विकास करें। विद्यार्थियों को कठिन परिस्थितियों में भी नैतिकता, ईमानदारी और सिद्धांतों से डिगना नहीं चाहिए। केवल ज्ञान ही नहीं, बल्कि चरित्र का विकास भी समान रूप से आवश्यक है। कोरा ज्ञान अधूरी उपलब्धि है; ज्ञान के साथ चरित्र का जुड़ना अनिवार्य है। गृहस्थों के लिए भी जहां ज्ञान का महत्व है, वहीं आचरण और मर्यादा का भी अपना विशिष्ट स्थान है। प्रेक्षा विश्व भारती स्थित महाप्रज्ञ विद्या निकेतन के विद्यार्थियों के संदर्भ में आचार्यश्री ने मंगल संदेश दिया कि उनमें उत्तम प्रज्ञा, उत्तम संस्कार और उत्तम आचरण का विकास हो। मंगल प्रवचन के उपरांत आचार्य प्रवर की मंगल सन्निधि में जैन विश्व भारती द्वारा आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी की पुस्तक ‘तेरापंथ दर्शन’ का लोकार्पण किया गया।
इस अवसर पर आचार्यश्री ने मंगल प्रेरणा प्रदान की। तत्पश्चात् महाप्रज्ञ विद्या निकेतन के विद्यार्थियों ने विविध प्रस्तुतियाँ दीं। विद्यालय प्रबंधन समिति के चेयरमैन मनोहर कोठारी, पवन अग्रवाल तथा छात्रा मेघा सन्यासी ने अपनी अभिव्यक्ति दी। इस अवसर पर विद्यालय की वार्षिक पत्रिका का भी लोकार्पण आचार्यश्री की पावन उपस्थिति में हुआ। इसी क्रम में डॉ. बलवंत चोरड़िया द्वारा रचित पुस्तक का भी लोकार्पण किया गया।