धर्म है उत्कृष्ट मंगल

स्वाध्याय

-आचार्यश्री महाश्रमण

धर्म है उत्कृष्ट मंगल

अगले क्षणों में जब सादे वेश वाली महिलाएं दृष्टिगोचार हुई, अश्वारोही ने अपशकुन नहीं माना। वह यथावत् आगे बढ़ता रहा। इस घटना ने आचार्यवर के उर्वर मस्तिष्क में समाज सुधार का बीज-वपन किया। उन्होंने सोचा-अपशकुन विधवा अबलाओं का नहीं, अपितु वैधव्य-परिचायक वस्त्रों का होता है। बीज क्रमशः अंकुरित, पल्लवित और पुष्पित हुआ। आचार्यवर ने रूढ़ि-मुक्त समाज के सृजन की नव्य परियोजना बनाई। उन्होंने उन घावों को अपने मृदु हाथों से सहलाया जिनसे मानवता व्यथित थी।
अस्पृश्यता-निवारण
जैन समाज सैद्धान्तिक धरातल पर जातिवाद को नकारता हुआ भी व्यवहार के स्तर पर उसे स्थान देता था। हरिजनों को अस्पृश्य मानता था। वर्ण, जाति आदि के आधार पर ऊंच-नीच का निर्णय करता था। जैन अनुयायियों की ओर तथाकथित नीच मनुष्यों की इस दयनीय दशा को देखकर आचार्यवर के कोमल अन्तःकरण में करुणा की लहर दौड़ पड़ी। उन्होंने कहा-मानव मानव एक हैं, मनुष्य मनुष्य भाई-भाई हैं। कोई किसी का अछूत नहीं है। अछूत हैं जीवन की बुराइयां। उन्होंने अस्पृश्यता निवारण का उपदेश ही नहीं दिया, अपितु स्वयं उसका क्रियान्वयन किया। दशकों पूर्व आपश्री बीकानेर डिवीजन के अन्तर्गत 'छापर' नगर में आवासित थे। आपने अपने एक शिष्य को वहां की हरिजन वस्ती में जाकर धर्मोपदेश करने के लिए कहा। निर्दिष्ट साधु हरिजन मोहल्ले में गए और वहां प्रवचन किया। कथित नीच जाति के लोगों ने मद्य, मांस आदि के सेवन का परित्याग किया। साधु उपदेश देकर वापिस आए तो उनके साथ हरिजनों का एक झुण्ड भी था। पिछड़े वर्ग के लोग जब आचार्यश्री का चरण स्पर्श करने आगे बढ़े तो आपने उनको तनिक भी रोका नहीं, अपितु प्रोत्साहित किया। आचार्यवर यहां तक कहते हैं मैं उस हरिजन घर से भिक्षा भी ले सकता हूं, जहां मदिरा, मांस आदि का सेवन न होता हो। आचार्यश्री ने ऐसे घरों से भिक्षा ली भी है।
नारी जागरण
अणुव्रत आन्दोलन के साथ बाकी दृष्टि से भी कार्य प्रारम्भ हुआ। अखिल भारतीय तेरापंथ महिला मण्डल की स्थापना को गई। उसके बाद स्थानीय महिला मण्डल के अन्तर्गत कन्या मण्डल और युवती मण्डल का भी गठन किया गया। इस परियोजना के माध्यम से शिक्षा, संस्कार, साहस और वक्तृत्व आदि अनेक विषयों पर महिलाओं की उल्लेखनीय प्रगति हुई। कुप्रथाओं के विनाश की तरफ गति हुई।
भावात्मक एकता
बिहार प्रदेश में किसी सज्जन ने आचार्यप्रवर से पूछा- आप हिन्दू हैं या मुसलमान? आचार्यवर ने उत्तर दिया- मेरे चोटी नहीं, अतः मैं हिन्दू नहीं और मैं इस्लाम परम्परा में जन्मा नहीं, इसलिए मुसलमान भी नहीं हूं। मैं तो मानव हूं। आचार्यवर ने भावात्मक एकता को परिपुष्ट करने के लिए एक घोष दिया
– ''पहले इन्सान-इन्सान, फिर हिन्दु या मुसलमान।''
व्यसन-विमुक्ति
आज देश में शराब एक समस्या बन चुकी है। पूज्यश्री इस समस्या के समाधान के लिए सतत प्रयत्नशील रहते हैं। उन्होंने अपनी पदयात्रा के माध्यम से हजारों गांवों का स्पर्श किया है, लाखों मनुष्यों से सीधा सम्पर्क साधा है। एक बड़ी संख्या में लोगों को व्यसन-मुक्त बनाया है।
भारत के राष्ट्रपति ज्ञानी जैलसिंह ने एक बार कहा—'आचार्यश्री तुलसी एक पदयात्री हैं। आप समूचे देश में घूम-घूमकर व्यक्ति, समाज और राष्ट्र के लिए कल्याणकारी कार्य कर रहे हैं। आप सरकार से मदद नहीं लेते प्रत्युत सरकार की मदद कर रहे हैं। आचार्यजी को सरकार की जरूरत नहीं है, सरकार को आचार्यजी की जरूरत है।'
मिलावट निरोध
आज व्यापारिक क्षेत्र में बेमेल मिलावट का बोलबाला है। एक समय था जब व्यक्ति के मन में अपने धर्म के प्रति आस्था थी, वह ऐसा कोई भी काम नहीं करना चाहता, जिससे उसका धर्म कलंकित होता। एक समय था, जब मनुष्य की चिन्तन-प्रणाली राष्ट्र-निर्माण के भावों से ओत-प्रोत थी। वह ऐसा कोई भी आचरण नहीं करता, जिससे राष्ट्रहित क्षतिग्रस्त होते। आज ये दोनों आस्थाएं ह्रास की ओर उन्मुख हैं। फलस्वरूप घी में चर्बी मिलाना, अंगरक्षक द्वारा प्रधानमंत्री की हत्या, कालाबाजारी अपराधों ने जन्म लिया है। देश की इस गम्भीर हालत से आचार्यवर का मानस चिन्तित हुआ। उन्होंने अपने अणुव्रत आन्दोलन के माध्यम से देश में नैतिक वातावरण बनाने का अथक प्रयास किया और लोगों को बेमेल मिलावट न करने के लिए कृत संकल्प बनाया है।