संयम का सुख है देवलोक के सुख से भी बढ़कर : आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

कोबा, गांधीनगर। 26 अक्टूबर, 2025

संयम का सुख है देवलोक के सुख से भी बढ़कर : आचार्यश्री महाश्रमण

संयम रत्न प्रदाता, वीतराग साधक जैन श्वेतांबर तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशमाधिशास्ता युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी की पावन सन्निधि में प्रेक्षा विश्व भारती के वीर भिक्षु समवसरण में हजारों श्रद्धालुओं की उपस्थिति में इस चातुर्मास का दूसरा दीक्षा समारोह आयोजित हुआ। 70 वर्षीय प्रवक्ता उपासक हनुमानमल दूगड़ अपने पूरे परिवार को छोड़कर, भौतिक सुख-सुविधाओं को त्याग आत्मकल्याण और अध्यात्म पथ की ओर अग्रसर हुए। उदित, मुदित और कल्प ने दीक्षार्थी का परिचय प्रस्तुत किया। तत्पश्चात पारमार्थिक शिक्षण संस्था के अध्यक्ष बजरंगलाल जैन ने आज्ञा पत्र का वाचन किया। गुरु चरणों में मुमुक्षु हनुमानमल के पुत्र हेमंत और नितेश ने आज्ञा पत्र उपरित किया। दीक्षार्थी हनुमानमल दूगड़ ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी। तत्पश्चात साध्वीप्रमुखाश्री विश्रुतविभा जी ने अपने उद्बोधन में कहा कि मुनि दीक्षा स्वीकार करने वाला आजीवन प्रत्येक प्रकार की हिंसा का परित्याग करता है। यह बहुत बड़ा संकल्प है। असत्य संभाषण नहीं करना और यावज्जीवन अब्रह्मचर्य, चोरी और परिग्रह का भी त्याग करना बहुत बड़ी बात होती है। जब व्यक्ति की इंद्रियां अंतर्मुखी बन जाती हैं, जब मन की चंचलता समाप्त होने लग जाती है और व्यक्ति के कषाय उपशांत हो जाते हैं तभी वह संन्यास के मार्ग में आगे बढ़ने का प्रयत्न कर सकता है। पावन प्रेरणा पाथेय में आचार्यश्री महाश्रमणजी ने कहा कि संयम का सुख देवलोक के सुख से भी बढ़कर होता है।
जो साधुत्व में रम जाता है वह महान होता है और उसके बाद फिर आत्मिक सुखों के सामने देवलोक के सुख भी तुच्छ हैं। पैसा, पद और प्रतिष्ठा बहुत छोटी चीजें हैं। कोई यह पूछे कि दीक्षा किसकी हो सकती है तो दीक्षा युवा, बाल या वृद्ध किसी भी अवस्था में हो सकती है, किन्तु योग्यता सबसे पहले है। यद्यपि दीक्षा की न्यूनतम आयु सवा आठ वर्ष होती है। हम क्वांटिटी चाहते हैं, परन्तु वह क्वालिटी के साथ होनी चाहिए। सिर्फ संख्या बढ़ाना हमारा लक्ष्य नहीं है। कई साधु-साध्वियां वैरागी तैयार करते हैं, यह अपने आप में बहुत बड़ी बात है। गुरुदेव ने आगे फरमाया कि आज एक भाई की दीक्षा हो रही है। इससे पूर्व में सत्रह दीक्षाएं हुई हैं, इस चातुर्मास की यह अठारहवीं दीक्षा है। नवदीक्षित साधु-साध्वियों में संयम के प्रति जागरूकता रहे। हर कार्य में संयम का प्रयास हो। संयम में मजबूत निष्ठा और चित्त में शांति रहे। जब जहां जैसा भी अवसर हो सेवा के लिए तैयार रहें। बड़ा वह होता है जिसमें नम्रता, क्षमाशीलता, भक्ति और आदर-भाव होता है। हमें स्वभाव को संस्कारों से ऊंचा रखना चाहिए। सभी में आत्म निष्ठा, संघ निष्ठा, आज्ञा निष्ठा, आचार निष्ठा और मर्यादा निष्ठा हो। पूज्य गुरुदेव ने आगामी दीक्षा समारोह की घोषणा करते हुए कहा कि सन् 2026 का चातुर्मास लाडनूं में संभावित है। उस दौरान योगक्षेम वर्ष में तीन दीक्षा समारोहों में 8 फरवरी 2026 को मुमुक्षु खुशी को समणी दीक्षा, 6 मार्च 2026 को मुमुक्षु रचना को साध्वी दीक्षा तथा 23 अप्रैल 2026 को मुमुक्षु चंदन को साध्वी दीक्षा प्रदान करने की घोषणा की। कार्यक्रम के दौरान बीदासर (राजस्थान) का श्रावक समाज बड़ी संख्या में उपस्थित था। सभी चातुर्मास की प्राप्ति के लिए बड़ी आतुरता से प्रतीक्षारत थे। पूज्य गुरुदेव ने द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव की अनुकूलता के आधार पर वि.सं. 2090 अर्थात ईस्वी सन् 2033 का चातुर्मास एवं सन् 2034 का मर्यादा महोत्सव बीदासर में करने की घोषणा की।