गुरुवाणी/ केन्द्र
प्रतिकूल और अनुकूल परिस्थिति में समता का भाव है साधना : आचार्यश्री महाश्रमण
जैन श्वेतांबर तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशम अधिशास्ता, महातपस्वी युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने आयारो आगम के माध्यम से पावन संबोध प्रदान करते हुए फरमाया कि सहन करना एक महान साधना है। व्यक्ति को प्रतिकूल परिस्थितियों को समभाव से सहन करना चाहिए और अनुकूल परिस्थितियों में भी शांत रहने का प्रयास करना चाहिए — यही सहिष्णुता का लक्षण है। उन्होंने कहा कि जीवन में कठिनाइयाँ न आएँ, यह संभव नहीं है। बड़े-बड़े महान व्यक्तियों के जीवन में भी संघर्ष और विपरीत स्थितियाँ आती रही हैं। कठिनाई आने पर उसका बचाव करना तो उचित है, परंतु मन में समता और मनोबल बनाए रखना और भय से बचना भी साधक का कर्तव्य है। आचार्यश्री ने कहा कि प्रतिकूल परिस्थितियों में भी निर्भीकता, समता और शांति का भाव रखना साधना का अंग है। साधना में सफलता के लिए समता का विकास आवश्यक है। साधु के लिए तो सहनशीलता अनिवार्य है, किंतु गृहस्थ जीवन में भी सहनशक्ति का विकास उतना ही आवश्यक है। सहिष्णुता गृहस्थ जीवन में शांति और क्षेम का आधार है।
उन्होंने कहा कि जीवन में अनुकूलता और प्रतिकूलता दोनों आती रहती हैं। व्यक्ति को दोनों ही परिस्थितियों में समता, शांति और सहिष्णुता बनाए रखने का प्रयास करना चाहिए। भगवान महावीर के जीवन से इसका अनुपम उदाहरण मिलता है — चाहे चण्डकौशिक सर्प का परीषह हो, शूलपाणि यक्ष की परीक्षा या ग्वाले का व्यवहार, हर परिस्थिति में भगवान महावीर समता में स्थित रहे। इसी प्रकार आचार्य भिक्षु का जीवन भी समता और सहनशीलता का जीता-जागता उदाहरण है। आचार्यश्री ने कहा कि कठिनाई का आना सामान्य बात है, पर उसे समता भाव से सहन करना ही बड़ी साधना है। पारिवारिक, सामाजिक या स्वास्थ्य संबंधी कठिनाइयों के बीच भी मन की शांति बनाए रखना और यथाशक्ति तप साधना करते रहना चाहिए। मतभेद या विचारभेद भले हों, पर मनभेद नहीं होना चाहिए। जीवन में आपसी सामंजस्य और सौहार्द का भाव बना रहना चाहिए।
उन्होंने कहा कि व्यक्ति को शब्दों की कठोरता को भी सहन करने का अभ्यास करना चाहिए। मानसिक सहिष्णुता का विकास उतना ही आवश्यक है जितना शारीरिक सहनशीलता का। शरीर को भी इतना मजबूत बनाना चाहिए कि वह कठिनाइयों को सहजता से सह सके। जीवन में सहनशीलता ही स्थिरता और समता की आधारशिला है। मंगल प्रवचन के उपरांत पूज्य गुरुदेव ने सघन साधना शिविर के शिविरार्थियों को पुनः अपनी जिज्ञासाएँ प्रस्तुत करने का अवसर दिया और उन्हें समाधान प्रदान किया। यह जिज्ञासा-समाधान सत्र शिविरार्थियों के साथ-साथ उपस्थित श्रद्धालुओं के लिए भी अत्यंत लाभप्रद रहा। इस अवसर पर मुनि मदनकुमारजी ने अपनी अभिव्यक्ति दी। मदनपुरा और बीदासर ज्ञानशाला के ज्ञानार्थियों ने भावपूर्ण प्रस्तुतियाँ दीं। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।