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विनीत, आत्मानुशासी, सुश्रृंखल बन जीवन में कठिनाइयों का करें सामना : आचार्यश्री महाश्रमण
महातपस्वी युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने आगम वांग्मय पर आधारित अपनी अमृतदेशना में कहा कि जो व्यक्ति अविनीत, अनुशासनहीन, उच्छृंखल और उद्दण्ड होता है, उसे विपत्ति प्राप्त होती है; जबकि विनीत, आत्मानुशासी और सुश्रृंखल व्यक्ति को संपत्ति और सफलता की प्राप्ति होती है। आचार्यश्री ने कहा कि जीवन में विपत्तियां और संपत्तियां दोनों आ सकती हैं, परंतु दुर्गुणों के कारण प्राप्त विपत्ति त्याज्य होती है। कभी-कभी अच्छे कार्य करते हुए भी कठिनाइयां आती हैं—ऐसी स्थिति में व्यक्ति को समता भाव, साहस, मनोबल और सूझबूझ के साथ उनका सामना करना चाहिए। उन्होंने स्पष्ट किया कि एक प्रकार की विपत्ति दुर्गुणों और अनुशासनहीनता के कारण आती है, जबकि दूसरी विपत्ति शुभ कर्म करते हुए भी आती है। इसलिए व्यक्ति को अविनीत और उच्छृंखल नहीं बनना चाहिए।
राजतंत्र हो या लोकतंत्र, अनुशासन दोनों के लिए आवश्यक है। दूसरों पर अनुशासन लगाने से पहले स्वयं पर अनुशासन होना चाहिए। 'निज पर शासन, फिर अनुशासन।' मन, वचन, शरीर और इंद्रियों पर नियंत्रण ही आत्मानुशासन है। बोलने से पूर्व विचार करें – क्या बोलें, कैसे बोलें और क्यों बोलें। वाणी में मृदुता और मर्यादा होनी चाहिए। इंद्रिय अनुशासन का अर्थ है – आंख से बुरा न देखो, कान से बुरा न सुनो, मुख से बुरा न बोलो और मस्तिष्क से बुरा न सोचो। अच्छा देखना, सुनना, बोलना और सोचना – ये चार बातें जीवन को सही दिशा देती हैं।
आचार्यश्री ने कहा कि जो व्यक्ति अच्छे कार्य करता है वह विनीत होता है, और जो बुरे कार्य करता है वह अविनीत होता है। संयम और तप ही आत्मानुशासन के वास्तविक साधन हैं। अणुव्रत आंदोलन आत्मानुशासन का ही आंदोलन है, जो व्यक्ति को अहितकर चीजों से दूर रहने, ईमानदारी और प्रामाणिकता से जीवन जीने की प्रेरणा देता है। यदि व्यक्ति के जीवन में अच्छे संस्कार हों तो जीवन, चेतना और भाव – तीनों विशुद्ध हो जाते हैं, और यदि परलोक है तो वह भी उज्जवल हो सकता है।
परम पूज्य आचार्यश्री की मंगल सन्निधि में जैन विश्व भारती मान्य विश्वविद्यालय का 16वां दीक्षांत समारोह आयोजित हुआ, जिसमें विद्यार्थियों को पीएचडी सहित विभिन्न डिग्रियां प्रदान की गईं। विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बच्छराज दूगड़ ने समारोह की अध्यक्षता की। इस अवसर पर केंद्रीय संस्कृति एवं पर्यावरण मंत्री गजेन्द्र सिंह शेखावत ने जैन दर्शन के अनेकांत, अहिंसा, सत्य, अपरिग्रह और संयम के सिद्धांतों को जीवन में अपनाने की प्रेरणा दी। कुलपति प्रो. दूगड़ ने विश्वविद्यालय की प्रगति रिपोर्ट प्रस्तुत की और स्वागत भाषण दिया। मंच संचालन प्रो. आनंद प्रकाश त्रिपाठी एवं राजेश ओझा ने किया।