मनोज्ञ और अमनोज्ञ दोनों शब्दों को सहन करे साधु : आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

कोबा, गांधीनगर। 23 अक्टूबर, 2025

मनोज्ञ और अमनोज्ञ दोनों शब्दों को सहन करे साधु : आचार्यश्री महाश्रमण

गणाधिपति तुलसी के इतिहास की पुनरावृत्ति करवाने वाले महातपस्वी युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने गणाधिपति पूज्य गुरुदेव श्री तुलसी के 112वें जन्मोत्सव के संदर्भ में समुस्थित जनता को अमृत देशना प्रदान करते हुए फरमाया कि व्यक्ति के जीवन में अनुकूलता और प्रतिकूलता का समागमन हो सकता है। व्यक्ति के जीवन में कभी आरोह की तो कभी अवरोह की स्थिति भी आ जाती है। कभी प्रशंसा से मन आनंदित होता है तो कभी कहीं निंदा भी सुननी पड़ सकती है। साधु को मनोज्ञ और अमनोज्ञ दोनों प्रकार के शब्दों को सहन करना चाहिए।
आचार्य श्री ने फरमाया कि आज कार्तिक शुक्ला द्वितीया है। आज से 111 वर्ष पूर्व लाडनूं में खटेड़ परिवार में एक शिशु ने जन्म लिया। जन्म लेना एक सामान्य घटना है। इसी प्रकार मृत्यु भी एक सामान्य व्यवस्था है। महत्वपूर्ण बात यह है कि जन्म और मृत्यु के बीच के जीवन में व्यक्ति क्या करता है, जीवन कैसा जीता है। आज के दिन जन्मा बालक आगे जाकर आचार्य तुलसी के रूप में प्रख्यात हुआ। पौष कृष्णा पंचमी वि.सं. 1982 में लाडनूं में ही बालक तुलसी ने जीवन के बारहवें वर्ष में संन्यास को स्वीकार कर लिया। उनका आचार्यकाल लगभग साठ वर्षों से अधिक का रहा। तेरापंथ धर्मसंघ के किसी भी आचार्य का इतना लंबा आचार्यकाल नहीं रहा। इस दृष्टि से यह उनके जीवन का एक कीर्तिमान है। हमारे धर्मसंघ के वे पहले आचार्य थे जिन्होंने दक्षिण भारत व कोलकाता तक की यात्रा की। उनका बहुत व्यापक जनसंपर्क था। उनका राजनीति के क्षेत्र में भी वर्चस्व था। भारत के राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह जी भी उनसे मिलने के लिए राजस्थान के एक छोटे से गांव सिरियारी में आए थे। ग्रामीण जनता भी उनके संपर्क में आती थी।
उन्होंने अपने जीवन काल में धर्मसंघ के लिए भी अनेक कार्य किए। उनके आचार्यकाल में ही समण श्रेणी का भी जन्म हुआ था। सर्वप्रथम छह बाइयों की दीक्षा हुई थी, जिनमें वर्तमान साध्वीप्रमुखाजी की भी समणी दीक्षा हुई थी। समण श्रेणी देश और विदेश, दोनों जगह अपना योगदान दे रही है। अणुव्रत आंदोलन भी आज ही के दिन, शुक्ला द्वितीया को प्रारंभ हुआ, केवल माह का अंतर है — फाल्गुन माह। आज के दिन को अणुव्रत दिवस के रूप में मनाया जा रहा है। अणुव्रत के द्वारा कितना व्यापक कार्य हुआ है। अणुव्रत के कार्य को आगे बढ़ाने में वर्तमान में अणुव्रत विश्व भारती सोसाइटी प्रमुख संस्था है। इसके कार्यकर्ता अच्छा पुरुषार्थ करते रहें, नैतिकता और संयम के संदेश को फैलाने में अपनी शक्ति का उपयोग करते रहें।
आचार्यश्री तुलसी में पुरुषार्थ और परिश्रमशीलता देखने को मिलती है। आचार्यश्री तुलसी अपने गुरु कालूगणी के प्रति बहुत अच्छी अभिव्यक्ति करते थे। आचार्यश्री तुलसी ने भिक्षु स्वामी के प्रति कितने-कितने गीतों की रचना की है। उन्होंने अपने जीवन काल में ही आचार्य पद का विसर्जन कर युवाचार्य महाप्रज्ञजी को आचार्य घोषित कर दिया। यह उनके जीवन का सबसे विशिष्ट कार्य रहा। मुझे उनके निकट रहने का अवसर मिला, औरों पर भी उनका कितना उपकार रहा है। मैं गुरुदेव श्री तुलसी के प्रति श्रद्धार्पण करता हूं, समण श्रेणी के प्रति मंगलकामना करता हूं और अणुव्रत के प्रति प्रमोद भावना रखता हूं कि कार्यकर्ताओं का उत्साह बना रहे और वे यथायोग्य अणुव्रत के प्रसार का कार्य करते रहें। आज विश्व हिन्दू परिषद से भी लोग आए हुए हैं। आचार्यश्री तुलसी का विश्व हिन्दू परिषद से भी संपर्क था। अशोकजी सिंहल के साथ भी उनका मिलना हुआ था। कार्यकर्ताओं में अच्छा उत्साह बना रहे।
आचार्यश्री के मंगल प्रवचन से पूर्व नवम साध्वीप्रमुखाश्री विश्रुतविभाजी जी ने नवम आचार्यश्री तुलसी के प्रति अपनी श्रद्धाभिव्यक्ति देते हुए कहा कि गुरुदेव तुलसी का व्यक्तित्व उभयानुकंपी व्यक्तित्व था। उन्होंने अपना विकास किया और अपने परिवार्श्व में रहने वाले साधु-साध्वियों का भी विकास किया। उन्होंने आगमों और दर्शन का गहरा अध्ययन कर, साधु-साध्वियों को अध्यापन करवाकर उनके व्यक्तित्व निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनके जीवन में अनेक विरोध हुए। अणुव्रत के विरोध के बावजूद भी उन्होंने अणुव्रत की मशाल को पूरे भारत में प्रज्ज्वलित किया।
आचार्य प्रवर के मंगल प्रवचन के पश्चात् समण श्रेणी ने गीत का संगान किया। तेरापंथ महिला मंडल ने गीत की प्रस्तुति दी। तेरापंथ किशोर मंडल ने अपनी प्रस्तुति दी। विश्व हिन्दू परिषद अहमदाबाद के मंत्री अमित शाह ने अपनी अभिव्यक्ति दी। आचार्यश्री तुलसी के संसारपक्षीय परिवार की ओर से सुशील खटेड़ व छतरसिंह खटेड़ ने अपनी अभिव्यक्ति दी। दीपक कोठारी ने गीत प्रस्तुत किया। अखिल भारतीय तेरापंथ महिला मंडल की महामंत्री रचना हिरण ने अपनी अभिव्यक्ति दी। अणुव्रत विश्व भारती सोसाइटी द्वारा ‘तुलसी अणुव्रत सिंहनाद’ विशेषांक आचार्यश्री के समक्ष लोकार्पित किया गया। पूज्य गुरुदेव ने अणुव्रत गीत का आंशिक रूप से संगान किया। अणुव्रत पत्रिका के संपादक संचय जैन ने अपनी अभिव्यक्ति दी। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।