गतिशील ही प्राप्त कर सकता है गंतव्य : आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

कोबा, गांधीनगर। 22 अक्टूबर, 2025

गतिशील ही प्राप्त कर सकता है गंतव्य : आचार्यश्री महाश्रमण

ज्ञानयोगी युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमण ने अमृत देशना प्रदान करते हुए फरमाया कि ‘आयारो’ आगम में कहा गया है, 'धर्म को जानकर मुनि श्रमण धर्म का पालन करते हैं।' धर्म को जान लेना भी एक उपलब्धि है। जीवन में धर्म कितना उतरता है, यह दूसरी बात है। किसी चीज को हम अच्छी तरह जान लेते हैं और उस पर श्रद्धा हो जाती है, यदि वह धर्म का क्षेत्र है तो कभी न कभी हम धर्म का पालन भी करेंगे, यदि सम्यक् श्रद्धा और सम्यक् ज्ञान हो गया है। धर्म का बोध तीर्थंकरों से प्राप्त हो सकता है। उनसे बड़ा कोई ज्ञानी दुनिया में संभव नहीं लग रहा है। अध्यात्म के अधिकृत प्रवक्ता और अनुत्तर प्रवक्ता तीर्थंकर होते हैं। अतः तीर्थंकर जो धर्म निर्दिष्ट करते हैं, उसे जानकर उसका अनुसरण करने का प्रयास करें। एक साथ यदि अनुसरण न हो पाए तो थोड़ा-थोड़ा करके धर्म के क्षेत्र में आगे बढ़ने का प्रयास करना चाहिए। गतिशील ही गंतव्य को प्राप्त कर सकता है, अगतिशील आगे नहीं बढ़ सकता। गति के लिए धर्मास्तिकाय का सहयोग अपेक्षित होता है और मंजिल पर पहुंचने के बाद ठहरना हो तो अधर्मास्तिकाय का सहयोग रहता है।
हम शास्त्रों का स्वाध्याय करते हैं, प्रवचन सुनते हैं, तत्त्व चर्चा करते हैं, इनसे हमें धर्म बोध, तत्त्व बोध प्राप्त हो सकता है। कई लोग तत्त्व को जानते हैं, पर उसे आचरण में नहीं ला सकते। कईयों में आचरण में लाने की भावना है, पर उन्हें तत्त्व बोध प्राप्त नहीं होता है। जिनमें ज्ञान भी है और आचरण की दक्षता भी है, ऐसे लोग दुनिया में विरले होते हैं। भगवान महावीर अतीन्द्रिय ज्ञान संपन्न थे और फिर अणगार धर्म के आचरण में भी लग गए और बढ़ते-बढ़ते अंतिम मंजिल, परम मंजिल मोक्ष को भी प्राप्त हो गए। अतः व्यक्ति पहले जाने और फिर उसका आचरण करने का प्रयास करे। क्या, क्यों, कैसे — इन तीन प्रश्नों का उत्तर मिलने पर कई बातों की हमें उपलब्धि हो सकती है। अपनी जिज्ञासा का समाधान इन तीन प्रश्नों के आधार पर तार्किक बुद्धि से करने का प्रयास करना चाहिए। अतः हमें अपने जीवन में धर्म को जानकर, सम्यक् ज्ञान, सम्यक् श्रद्धा से युक्त होकर, जितना संभव हो सके धर्म को अपने आचरण में, भावों में लाने का प्रयास करना चाहिए।
सघन साधना शिविर के संदर्भ में पूज्य गुरुदेव ने शिविरार्थियों को प्रेरणा पाथेय प्रदान करते हुए कहा कि यह बालक-बालिकाओं का शिविर है। इस शिविर से प्रेरणा और संदेश मिले कि आत्मा निर्मल बने, आचरण संयमयुक्त बन जाए और जीवन में अच्छी स्थिति बने। बालक-बालिकाओं का अच्छा विकास हो और उनमें ज्ञान चेतना जागे। सघन साधना शिविर के बालक-बालिकाओं को पूज्य गुरुदेव ने अपनी जिज्ञासाओं को अभिव्यक्त करने की अनुमति दी तो बालक-बालिकाओं ने अपनी जिज्ञासाओं को प्रस्तुत किया और पूज्य गुरुदेव ने उन्हें मंगल समाधान प्रदान किया। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।