भगवान महावीर से सीखें सहिष्णुता : आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

कोबा, गांधीनगर। 21 अक्टूबर, 2025

भगवान महावीर से सीखें सहिष्णुता : आचार्यश्री महाश्रमण

अखंड परिव्राजक, तीर्थंकर के प्रतिनिधि युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने ‘आयारो’ आगम के माध्यम से पावन देशना प्रदान करते हुए फरमाया कि जीवन में कैसा भी परीषह हो जाए, उस कठिनाई, उपद्रव, परीषह को समता भाव से सहन करना चाहिए, यह साधु का धर्म है।' भगवान महावीर ने कितना कुछ सहन किया होगा? उनका साधना काल साधिक बारह वर्षों का रहा। उस समय में प्रभु के सामने अनेक स्थितियां आई थीं। उनके देवकृत, तिर्यंचकृत और मनुष्यकृत कठिनाइयां आईं। सामने परीषह, उपद्रव आए। इन उपसर्गों, कष्टों, परीषहों को सहन करना साधना है। भगवान महावीर ने लगभग तीस वर्षों तक गार्हस्थ्य जीवन जिया। लगभग साढ़े बयालीस वर्ष का उनका श्रमण पर्याय रहा और उसी के अंतर्गत उन्हें तीर्थंकरत्व भी प्राप्त हुआ। तीर्थंकर या केवल ज्ञान होने के बाद के तीस वर्षों का समय जनोद्धार और जीवोद्धार के कार्य का समय रहा, प्रवचन देने का समय रहा, कितनों को बोध प्रदान करने का समय रहा। भगवती सूत्र और आगम वांग्मय में कितने प्रश्नों का समाधान प्रभु ने दिया है और उसमें उन्होंने कितना समय लगाया है। प्रश्नकर्ता के रूप में गौतम स्वामी जैसे शिष्य उनके पास थे।
भगवान महावीर के ग्यारह गणधर थे और उनमें इन्द्रभूति गौतम का नाम भगवती और अन्य आगम वांग्मय में जगह-जगह पर आता है। साधना काल में प्रभु प्रायः मौन रहे होंगे, पर तीर्थंकरत्व के बाद का समय वाणी के उपयोग का समय रहा। पहले तपस्या का समय रहा होगा, बाद में उन्होंने आहार भी किया होगा। भगवान महावीर की देशना और प्रवचन कितने कल्याणकारी हो सकते हैं। आज कार्तिक कृष्णा अमावस्या है और यह भगवान महावीर से जुड़ी हुई तिथि है। आज की रात्रि में प्रभु महावीर ने मोक्ष प्राप्त किया था। कार्तिक कृष्णा अमावस्या भगवान महावीर की निर्वाण तिथि है तो गौतम स्वामी की केवल ज्ञान प्राप्ति की तिथि है। दोनों बातें साथ में जुड़ी हुई हैं। यह अमावस्या भगवान महावीर से जुड़कर मानो धन्य हो गई। महापुरुषों के रहने से लोगों को राह मिल सकती है, चाह मिल सकती है, और वाणी सुनने से भीतर में उत्साह का संचार हो सकता है।
तीर्थंकर महावीर इस भरत क्षेत्र के, इस अवसर्पिणी के चौबीसवें और अंतिम तीर्थंकर हुए। उनका तीर्थ अभी भी, आज भी चल रहा है। हमें भी भगवान महावीर के तीर्थ में सम्मिलित होने का अवसर मिला है। हम इस जिनशासन में दीक्षित हैं और मानो एक विमान में बैठे हैं, हमें पार पहुंचना है। हम भगवान महावीर की बराबरी तो नहीं कर सकते, परंतु जितना संभव हो सके समता भाव रखने का प्रयास करना चाहिए। भगवान महावीर का आयुष्य चाहे लंबा नहीं था, परंतु उनकी तेजस्विता, केवल ज्ञान संपन्नता और तीर्थंकरत्व बड़ी चीजें हैं। अतः जितना संभव हो सके सहन करने का प्रयास करना चाहिए। आचार्य प्रवर ने भगवान महावीर से संदर्भित जप का प्रयोग करवाया। पूज्य प्रवर के मंगल उद्बोधन के पश्चात् साध्वीवर्याजी ने अपने संबोधन में कहा कि अभी प्रकाश पर्व चल रहा है। प्रकाश बाहरी अर्थात् भौतिक और भीतरी दोनों प्रकार का हो सकता है। भीतरी प्रकाश चैतन्य का प्रकाश है, केवल ज्ञान का प्रकाश है। चैतन्य का प्रकाश प्राप्त करने के लिए हमें आत्मीय गुणों को विकसित करना होगा और आत्मिक गुणों के विकास के लिए हमें आध्यात्मिक वातावरण में रहना होगा। अध्यात्म की प्रेरणा देने वाला चतुर्विंशतिस्तव का अंतिम पद्य है, जिसके माध्यम से हम आत्मिक विकास कर सकते हैं।