स्वाध्याय
धर्म है उत्कृष्ट मंगल
भारतीय संस्कार निर्माण समिति
आचार्यवर ने हरिजन वर्ग के उद्धार के लिए भारतीय संस्कार निर्माण समिति की परियोजना बनाई। इस समिति के माध्यम से हरिजनों को आहार-शुद्धि, व्यसन-मुक्ति, हीन भावना का परित्याग आदि विषयों का प्रशिक्षण दिया गया है।
नया मोड़ और जैन संस्कार विधि
तेरापंथ द्विशताब्दी के अवसर पर आचार्यश्री ने समाज के सम्मुख नया मोड़ का अभिनव अभियान प्रस्तुत किया। इस अभियान का उद्देश्य था-समाज में प्रचलित कुप्रथाओं का प्रोन्मूलन। उस समय समाज व्यापी अनेक कुप्रथाएं थीं। उन कुप्रथाओं में पर्दाप्रथा, मृत्युभोज, मृत्यु के अवसर पर प्रथारूप में रोना, विधवाओं के काले वस्त्र और उनका तिरस्कार, विवाह आदि प्रसंगों पर होने वाले वृहद् भोज, दहेज का ठहराव और प्रदर्शन आदि मुख्य थे। आचार्यवर द्वारा प्रवर्तित 'नया मोड़' के उपक्रम ने रूढ़ियों के उन्मूलन में सन्तोषजनक सफलता प्राप्त की। एक दशक में ही इस परियोजना के अच्छे परिणाम सामने आने लगे।
इसी कार्यक्रम का अन्तिम चरण है जैन संस्कार विधि, जो कि जन्म, मृत्यु और विवाह आदि के प्रसंगों पर उभरने वाली समस्याओं का समुचित समाधान है। समाज के अनेक परिवारों ने इस विधि को ससम्मान अपनाया है।
आचार्यवर ने अपने जीवनकाल में हर दृष्टि से समाज को परिष्कृत और विकसित करने की अविराम कोशिश की है। आचार्यश्री के इन क्रान्तिकारी अभियानों के सामने विरोधों और अवरोधों के अनेक झंझावात भी आए हैं, पर इस महामानव ने उन सबका डटकर मुकाबला किया है। आचार्यश्री तुलसी के समाज सुधार की देन इतिहास के पृष्ठों पर स्वर्णिम अक्षरों में उल्लेखनीय है।
वैमनस्य का विनाश
25 मार्च 1985 (लगभग) को परमाराध्य आचार्य प्रवर का चिताम्बा ग्राम में प्रवास हो रहा था। सायंकालीन अर्हत्-वंदना सम्पन्न हुई। आचार्यवर स्थानीय सभा-भवन के प्रांगण में विराजमान थे। गांव के सभी वर्गों के लोग आचार्यचरण के पुनीत उपपात में उपस्थित थे। आचार्यश्री ने ग्रामवासियों को सम्बोधित करते हुए पूछा-सभा-भवन या निर्माणाधीन स्कूल को लेकर कोई मनमुटाव तो नहीं है?
कई लोग बोले-गुरुदेव ! कजोड़ीमलजी सामरा को लेकर कुछ शिकायत है।
आचार्यश्री– कहो, क्या शिकायत है।
ग्रामवासी– ये गालियां बोलते हैं, भय दिखाते हैं और हमारी क्षमता से अधिक अर्थदान के लिए दबाव डालते हैं। इस गांव में इतनी बड़ी स्कूल का निर्माण सम्भव नहीं है।
कजोड़ीमलजी– गुरुदेव! मुझे इन लोगों से चन्दा लेने का त्याग करवा दो। मैं बाहर से चन्दा इकट्ठा कर स्कूल बना दूंगा।
आचार्यश्री– (ग्रामवासियों की तरफ दृष्टिपात करते हुए) आप लोगों ने अब तक कितना चन्दा दिया?
ग्रामवासी– स्कूल के लिए तो एक नया पैसा भी नहीं दिया।
आचार्यश्री– फिर विरोध का क्या प्रयोजन? कोई कहीं से लाता है, बनाता है, आपको
आपत्ति क्यों? आपको तो गर्वानुभूति करनी चाहिए कि हमारे गांव में एक ऐसा कर्मठ व्यक्ति है, जो गांव की आवश्यकताओं की पूर्ति करता है। ऐसे कर्मशील व्यक्ति का विरोध कर वज्रमूर्खता क्यों कर रहे हो?
इधर बहुत सारे लोग श्रीमान् कजोड़ीमलजी की निष्काम सेवा की सराहना कर रहे थे। आचार्यवर ने कजोड़ीमलजी से कहा- तुम इन्हें गालियां क्यों देते हो?
कजोड़ीमलजी– गुरुदेव! पहले इनसे हाथ जोड़कर प्रार्थना करता हूं। इनके पैरों में अपनी पगड़ी रखता हूं। यह सारा प्रयत्न जब व्यर्थ सिद्ध हो जाता है तो मुझे गुस्सा आ जाता है। तब मैं गालियां बोल देता हूं।
आचार्यश्री– (ग्रामवासियों से) स्कूल में किनके बच्चे पढ़ेंगे?
ग्रामवासी– हमारे।