ज्ञानशाला दिवस पर विविध आयोजन
साध्वी डॉ. गवेषणाश्रीजी के सान्निध्य में ‘ज्ञानशाला दिवस’ कार्यक्रम का आयोजन जैन तेरापंथ नगर, माधावरम्, चेन्नई स्थिति तीर्थंकर समवसरण में हुआ। साध्वीश्री ने कहा कि ज्ञानशाला के बच्चे कोरा कागज होते है, इन पर जैसा लिखना है, जैसा आकार देना है, दे सकते हैं। बच्चों का सुनहरा वर्तमान, उनका भविष्य संवार देता है। जीवन को सजाने के लिए, संवर्द्धन के लिए, संस्कारों को पाने के लिए ज्ञानशाला महत्वपूर्ण माध्यम है। नचिकेता, ध्रुव, प्रल्हाद,अतिमुक्तक ने 8-10 वर्ष की आयु में ही ईश्वरत्व को उपलब्ध कर लिया था। ज्ञानशाला का तात्पर्य है- ज्ञानी बनना, नम्र बनना, शालीन बनना और लाजबाब बनना। शैशव अवस्था सृजन की अवस्था है। साध्वी मयंकप्रभाजी ने कहा कि ज्ञानशाला में जानने, करने और कुछ बनने के लिए आते है। यह व्यक्तित्व विकास का बहुत बड़ा माध्यम है। साध्वी मेरुप्रभा जी ने ‘भेजो भेजो ज्ञानशाला में भेजो’ गीतिका प्रस्तुत की। साध्वी दक्षप्रभाजी ने सुमधुर गीतिका प्रस्तुत की। इससे पूर्व कार्यक्रम की शुरुआत ज्ञानशाला प्रशिक्षिकाएं बहनों के मंगलाचरण से हुई। तेरापंथ सभा के उपाध्यक्ष प्रवीण बाबेल ने स्वागत भाषण दिया। ज्ञानशाला की आंचलिक सहसंयोजिका कविता सोनी व ज्ञानशाला व्यवस्थापक राजेश सांड ने अपने विचार रखे। माधावरम, विल्लीवाक्कम, पैरम्बूर ज्ञानशाला के बच्चों ने 'अर्हम अर्हम की वन्दना' गीत से संयुक्त प्रस्तुति दी। मोगपेर, वडपलनी, व्यासरपाडी और नॉर्थ टाउन ज्ञानशाला के ज्ञानर्थियों ने पच्चीस बोल के प्रथम चार बोल पर प्रस्तुति दी। पल्लावरम और ताम्बरम ज्ञानशाला ने ज्ञानशाला की अतीत से वर्तमान तक की विकास यात्रा की मनमोहक प्रस्तुति दी। कार्यक्रम की सुचारु व्यवस्था में इन्द्रा रांका, कविता मेड़तवाल, विजयलक्ष्मी सियाल, चन्द्रप्रकाश छल्लाणी, सुरेश रांका, मंत्री पुखराज चोरडिया एवं माधावरम् ट्रस्ट की पूरी टीम का सराहनीय सहयोग रहा। कार्यक्रम का कुशल संचालन संगीता धोका एवं विनीता बैद ने किया। आभार ज्ञापन नीलम आच्छा ने दिया। 13 ज्ञानशालाओं से लगभग 160 ज्ञानार्थी एवं 60 प्रशिक्षिकाएं इस कार्यक्रम में सम्मिलित हुए।